सुप्रीम कोर्ट में फेल हो जाएगा नागरिकता संशोधन बिल? जानिए क्यों और कैसे

नई दिल्‍ली। नागरिकता संशोधन बिल भले ही लोकसभा और राज्‍यसभा से पास हो गया हो, लेकिन अभी इसके रास्‍ते में कुछ रोडे और आने वाले हैं। दरअसल यह बिल अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। ऐसे में अब ये सवाल बेहद आवश्‍यक हो जाते हैं कि क्‍या यह बिल कानूनी मामले में टिक पाएगा ? क्‍या यह बिल संविधान का उल्‍लंघन करता है? ऐसे ही कई सवालों पर एक समाचार चैनल ने कुछ एक्‍सपर्ट्स से उनकी राय ली है।

लॉ कमिशन और नीति आयोग के पूर्व मेंबर प्रोफेसर मूलचंद शर्मा का इस बिल को लेकर कहना है कि अगर इस बिल को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद पास करने की बजाय सुप्रीम कोर्ट के हवाले कर दें, तो ठीक होगा। धर्म के आधार पर नागरिकता की बहस 1950, 1971 में भी हुई थी लेकिन संसद ने इसे नकार दिया था। हम क्या कर रहे हैं, ये धर्म के आधार पर वर्गीकरण है।

प्रोफेसर शर्मा ने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने कई जजमेंट्स में कहा है कि राइट टू डिग्निटी एक फंडामेंटल राइट है। नैतिक मूल्यों को पहले भी परिभाषित किया जा चुका है, लेकिन आप उसे छीन रहे हो।

वहीं लोकसभा के पूर्व सेक्रेटरी और कानूनी जानकार पीडीटी आचार्य ने भी इस कानून पर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने कहा कि जैसा बिल अभी दिख रहा है, वह सिर्फ आर्टिकल 14 का ही नहीं बल्कि आर्टिकल 5, आर्टिकल 11 का भी उल्लंघन करता है जोकि नागरिकता के अधिकार को परिभाषित करता है।

इसके साथ ही देश के पूर्व चीफ जस्टिस के जी बालकृष्णन ने इस बिल को लेकर कहा कि जिस तरह धर्म के आधार पर प्रताड़ित लोगों को सरकार स्वीकार रही है, वह बड़ा दिल दिखाना हुआ। लेकिन कानूनी नजरिए से इस पर बहस हो सकती है। इस बिल को सुप्रीम कोर्ट से होकर गुजरना होगा, क्योंकि नागरिकता को लेकर कई तरह के नियम होते हैं, जिन्हें पूरा करना जरूरी है।

वहीं पूर्व सॉलिसिटर जनरल मोहन परासरण ने इस बिल की आलोचना की है और इसे असंवैधानिक करार दिया है। मोहन परासरण ने कहा कि ये बिल कानून का उल्लंघन करता है, ये मनमानी है जिसका कानून से कोई वास्ता नहीं है।

उनके अलावा सुप्रीम कोर्ट में त्रिपुरा पीपुल्स फ्रंट द्वारा दायर याचिका की अगुवाई करने वाले वकील मनीष गोस्वामी ने कहा है कि क्योंकि ये बिल धर्म के आधार पर लाया गया है जो सीधे तौर पर संविधान का उल्लंघन है।

क्या है बिल?

बता दें कि लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों में नागरिकता संशोधन बिल पास हो गया है। इस बिल के तहत अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आने वाले प्रताड़ित हिंदू, जैन, पारसी, सिख, ईसाई और बौद्ध शरणार्थियों को भारत की नागरिकता मिलने में आसानी होगी। पहले नागरिकता के लिए भारत में 11 साल रुकना पड़ता था, लेकिन अब बिल में बदलाव करके इसे 6 साल कर दिया गया है।

क्‍यों हो रहा है विरोध

कांग्रेस, टीएमसी समेत विपक्ष की कई पार्टियों ने आरोप लगाया है कि ये बिल भारत के मूल विचारों के खिलाफ है और आर्टिकल 14 का उल्लंघन करता है। वहीं, सरकार की ओर से तर्क दिया गया कि इस बिल को हर पैमाने पर परखा गया है, ना ही ये बिल संविधान के खिलाफ है और ना ही अल्पसंख्यकों के खिलाफ है। गुरुवार को कई संगठनों ने नागरिकता संशोधन बिल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर कर दी है।

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