महाराष्ट्र में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन का भविष्य बीएमसी चुनावों के नतीजों पर टिका

जब उद्धव ठाकरे ने 26 जनवरी को ऐलान किया कि 21 फरवरी को होने जा रहे नगर निगम और जिला परिषद के चुनावों में शिवसेना ‘अकेले उतरेगी’, तब वे इस बात के प्रति आश्वस्त दिखाई दे रहे थे कि उनकी पार्टी भारी-भरकम बजट वाले बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) में अपनी 22 साल पुरानी हुकूमत को बनाए रखेगी. मगर शिवसेना के काम करने के तरीके से वाकिफ अंदरूनी जानकार बताते हैं कि यह आखिरी वक्त पर लिया गया फैसला था. ठाकरे बीएमसी के चुनावों में बीजेपी के साथ जाना चाहते थे, लेकिन पार्टी के बड़े नेताओं ने उन्हें ऐसा करने से रोका, क्योंकि उन्हें लगता था कि बीजेपी ने सेना की कीमत पर राज्य में अपना आधार बढ़ा लिया है. महाराष्ट्र में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन का भविष्य बीएमसी चुनावों के नतीजों पर टिका
महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार में पर्यावरण मंत्री और शिवसेना के वरिष्ठ नेता रामदास कदम कहते हैं, ”बीजेपी के नेता बार-बार उन्हें (ठाकरे को) ‘माफिया’ कहते थे. हम अपने नेता के खिलाफ ऐसी गलत जबान बर्दाश्त नहीं कर सकते.”

ठाकरे को उम्मीद है कि उनकी पार्टी को मुंबई में किए गए विकास के जबरदस्त कामों का फायदा मिलेगा. चुनावों में उनका नारा है, ‘जे बोलतो ते करून दखावतो’ (मैं जो कहता हूं उसे पूरा करता हूं). वे खासकर पीने के पानी के लिए बिछाए गए पाइपों की तरफ ध्यान दिलाते हैं और पानी निकालने की उन बेहतर सुविधाओं की तरफ भी, जिसकी वजह से शहर को पहले की तरह मॉनसून में पानी के जबरदस्त भराव से बचाया जा सका है.

मगर पार्टी को भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर काफी आलोचना का सामना भी करना पड़ रहा है. उस पर सड़क बनाने के कामों में और मुंबई के कचरे के निपटारे की भीषण चुनौती से निबटने में भारी भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं. जाहिर है, बीजेपी इसका फायदा उठाने की जुगत में है. बीएमसी का उसका पूरा चुनाव अभियान ही शिवसेना के मातहत हुए भ्रष्टाचार पर टिका है. बीजेपी के नेता विनोद तावड़े निशाना साधते हुए कहते हैं, ”हमारा उसूल है पारदर्शिता. हम पारदर्शी प्रशासन के साथ मुंबई का विकास करना चाहते हैं.”

ठाकरे मानते हैं कि बीएमसी चुनावों के नतीजों से देश की वित्तीय राजधानी में मतदाताओं के मिजाज का पता चलेगा और यह मोदी सरकार के नोटबंदी के कदम पर जनादेश होगा. शिवसेना खामोशी से गुजराती कारोबारियों के असरदार समुदाय को अपने पाले में लाने की कोशिशों में जुटी है. यह समुदाय परंपरागत तौर पर बीजेपी का समर्थक रहा है. अलबत्ता इस बार वे उन्हें याद दिला रहे हैं कि 1992-93 के दंगों में किस तरह शिव सैनिकों ने उनकी दुकानों को बचाया था और वे इस एहसान का बदले में वोट चाह रहे हैं. ठाकरे के नजदीकी सूत्र ज्यादा गुजरातियों को चुनाव में उतारने की बात कर रहे हैं. वे कहते हैं, ”शिवसेना का हर छठा उम्मीदवार गुजराती होगा.”

सियासी पंडितों का कहना है कि महाराष्ट्र में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन का भविष्य बीएमसी चुनावों के नतीजों पर टिका है. वे कहते हैं कि अगर सेना बीएमसी का चुनाव हार जाती है, तो ठाकरे देवेंद्र फडऩवीस सरकार से समर्थन वापस लेने में जरा भी नहीं झिझकेंगे.

 
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