गुलजार बाजार-2 माफिया लूटे मजा, किसान भुगते सजा

 
 

उत्तर प्रदेश मे मंडी माफिया किसानों की परेशानी का कारण बने हुए है। इसकी शिकायतें पिछले तमाम वर्षों से सरकार से की जा रही है लेकिन इन पर लगाम नही लगाई जा सकी। यह माफिया अब भी सक्रिय हैं। सरकारी मंडियों मे जाने का मतलब है किसान का लुट जाना। सरकारी गल्ला खरीद के नाम पर इतना बड़ा खेल हो रहा है की यदि इसकी जांच हो तो बहुत बड़ा घोटाला सामने आएगा। इन्ही कारणों से किसानों को बाजार पसंद है, वहां पर प्रतिस्पर्धा का खुला मैदान है।

मंडियों में किसानों से जिस तरह का व्यवहार किया गया है उससे किसान परेशान हुआ। कमोवेश यही हाल पुरे उत्तर प्रदेश का है, जहां पर किसानों के फर्जी कागज लगाकर गेहूं, धान व अन्य अनाज की खरीद दिखा दी जाती है। जो मंडियां किसानो की सुविधा के लिए बनाई गई थी वहु उन्हें ठगने का अड्डा बन गई। किसान औने-पौने मे दाम मे बेचकर चला जाये। इसके लिए कई कई दिनों तक किसान क्रय केंद्रों पर खड़े रहते हैं।
बंथरा के किसान रामस्नेही कहते हैं कि छोटे किसानो के लिए सरकारी मंडियां ठीक नहीं हैं। पहले तो मंडी के बाहर ही कई लोग किसान को घेर लेते हैं कि बहुत अच्छी कीमत दिला देंगे । जब किसान भीतर आढ़तिया के पास पहुंचता है तो टका सा जवाब दे देता है। आजकल बहुत मंडी चल रही है दान बहुत ही नीचे चल रहे हैं। अब किसान के सामने रास्ता नहीं होता कि वह अपना नाज कहाँ ले जाए। सरकारी खरीद का हाल और भी कठिन है। किसानो से प्रति कुंतल के हिसाब से वसूली होती है।
बांदा के अतर्रा में तो एक ऐसा मामला सामने आया कि एक ट्रक धान कि खरीद हो गई। उसका भुगतान भी हो गया।। धान मिल भी पहुंच गया। उसका चावल भी बन गया लेकिन धरती पर कुछ भी नहीं हुआ। यह सब सिर्फ कागजों में हुआ। धान खरीद का समय आ चुका है। और इसी जिले के नरैनी मे 10 कुंतल चना खरीदा गया। वह भी उस किसान के नाम से जिसने एक विश्वा भी चना नही बोया था। आखिर किसान मंडियों में क्यों नहीं जाना चाहते, इस सवाल का जवाब ढूंढा था। चौकाने वाले तथ्य सामने आये।
सीतापुर के हरगांव के किसान सुशील सुशिल दीक्षित बताते हैं कि उन्होंने मंडी में काम भी किया है और किसान भी हैं। सरकारी मंडियों में विचौलियों मंडी के कर्मचारियों और व्यापारियों का ऐसा जाल है कि उससे निपटना बहुत कठिन है। वह बताते हैं कि सरकारी मंडी मे समय से भुगतान नहीं करते और किसानो को दौड़ाते रहते हैं। लखनऊ के ही पाण्डेगंज के एक व्यापारी बताते है कि निजी मंडियों में किसान के पास मोलभाव का खुला मैदान होता है। उसके अनाज का लगभग 80 प्रतिशत तत्काल भुगतान हो जाता है।
इस बात का उत्तर ढूढना चाहिए कि आखिर राज्य में गेहूं और धान की खरीद लक्ष्य से पिछड़ती क्यों है। 2018 मे योगी सरकार ने सरकारी खरीद पर सख्त रख अपनाया और इसका परिणाम सामने आया। जबरदस्त खरीद हुई। किसानो का कहना है कि जब तक मंडियों से किसानो को ठगने वाले माफियाओं को किनारे नही लगाया जाएगा, िितब तक किसानो का भला नही हो सकता।
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