कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से शुरू होने वाला महापर्व छठ आज से नहाय खाय के साथ हुआ आरंभ….

कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से शुरू होने वाला महापर्व छठ आज से नहाय खाय के साथ आरंभ हो गया। जो तीन नवंबर की सुबह तक चलेगा। छठ पूजा के लिए दून के बाजारों में पहले ही तैयारी कर ली थी। इससे बाजारों में भी रौनक बनी हुई है।

बिहारी महासभा के अध्यक्ष लल्लन यादव ने बताया कि एक नंवबर को खरना, दो नवंबर को डूबते सूर्य को अर्घ्य और तीन नवंबर को कार्तिक शुक्ल सप्तमी को उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा।

स्नान के बाद प्रसाद का सेवन

लल्लन यादव ने बताया कि छठव्रती और अन्य श्रद्धालु सुबह के समय सर्वप्रथम अपने घरों और आस-पास की सफाई में जुटे। स्नान करके छठव्रतियों ने चावल, चना, दाल और लौकी की सब्जी का प्रसाद बनाया। इसके बाद पूजा की गई। पूजा के बाद छठव्रतियों का प्रसाद ग्रहण करने का सिलसिला शुरू हो गया।

घाट किनारे की सफाई कर बनाई प्रतिमा

नहाय खाय से एक दिन पूर्व लोगों ने रायपुर मालदेवता रोड, टपकेश्वर, मद्रासी कॉलोनी और प्रेमनगर, द्वीपनगर, पंडितवाड़ी स्थित घाट किनारे की सफाई की। श्रद्धालुओं ने सफाई करने के बाद सूर्यपिंड की प्रतिमा बनाई। इसकी छठव्रती विधि-विधान से पूजन में जुट गए।

पूजा सामग्री को बाजारों में भी रही भीड़  

छठ पूजा को ध्यान में रखते हुए बाजार में पूजा सामग्री की खरीदारी करने वाले ग्राहकों की आवाजाही शुरू हो गई। महिलाएं बांस के सूप, डाला, दौर, चकोदरा, गन्ना, नारियल, अर्तकपात खरीदती नजर आई। दुकानदार पप्पू ने बताया कि टोकरी की शुरुआती कीमत 150 रुपये, सूप की 80 रुपये और डगरा की शुरुआती कीमत 150 रुपये से शुरू है। इसके अलावा महिलाएं मटका, दीए, ढक्कन का सेट भी खरीदती नजर आई। जिसकी कीमत 80 रुपये से शुरू है।

एक नवंबर को आरंभ होगा 36 घंटे का व्रत

एक नवंबर की सुबह छठव्रती और श्रद्धालु घर और पड़ोस की सफाई करेंगे। स्नान करके छठव्रती स्वंय रोटी, चावल का पिट्ठा, शक्कर की खीर बिना नमक वाला प्रसाद बनाएंगे। प्रसाद मिंट्टी के बर्तन में चूल्हे की आंच पर बनाया जाएगा।

संध्या काल में छठव्रती घर में मिंट्टी की चुकड़ी, ढकना में प्रसाद, कसेली, पान का पत्ता, सिंदूर रखकर छठी मैया और सूर्य देवता की पूजा अर्चना करेंगी। इसी के साथ छठव्रतियों का 36 घंटे के लिए निर्जला व्रत आरंभ हो जाएगा।

सूर्याअस्त से पूर्व छठव्रती देंगे सूर्य को अर्घ्य 

दो नवंबर को सांय काल में छठव्रती सिर पर प्रसाद से भरे सूप रखकर घाट तक जाएंगी। जहां पर सूर्य देव को जल अर्पित कर अर्घ्य देंगे। इस दिन महिलाएं प्रसाद में गेंहू, घी, शक्कर का ठेकुआ, चावल, घी शक्कर के लड्डू प्रसाद के रुप में तैयार करेंगी।

तीन नवंबर को होगा छठ पूजा का समापन

तीन नवंबर को अल सुबह छठव्रती छठ घाट पर सूप, ड़ाला, दौर लेकर सूर्य भगवान को अ‌र्घ्य देंगी। छठव्रति छठ घाट पर बने सूर्यपिंड के पास बैठकर भगवान सूर्य और छठ मैया की पूजा अर्चना करेंगे।

शुभ मुहुर्त

आचार्य डॉ संतोष खंडूरी ने बताया कि दो नवंबर यानि पूजा वाले दिन सूर्योदय का शुभ मुहुर्त छह बजकर 33 मिनट। सूर्यास्त का समय 5 बजकर 35 मिनट, षष्ठी तिथि आरंभ होने का समय दो नवंबर की रात के 12 बजकर 52 मिनट, षष्ठी की तिथि समाप्त होने का समय तीन नवंबर को एक बजकर 30 मिनट तक है।

इसलिए की जाती है छठ पूजा

छठ पूजा के लिए अलग-अलग कथाएं प्रचलित हैं। इनमें एक राजा प्रियवद की है जो काफी लोकप्रिय है। माना जाता है कि राजा प्रियवद निसंतान थे। उन्होंने अपनी पीड़ा महर्षि कश्यप से सांझा की। इस दौरान उन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ करने को कहा। यज्ञ में आहुति के लिए बनाई गई खीर खाने से उनकी पत्नी रानी मालिनी को पुत्र की प्राप्ति हुए। लेकिन पुत्र मृत पैदा हुआ।

राजा प्रियवद पुत्र को लेकर शमशान पहुंचे और पुत्र वियोग में अपने प्राण त्यागने लगे। तभी ब्रह्मा पुत्री देवसेना प्रकट हुई। उन्होंने कहा कि वह मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई है इसलिए उनका नाम षष्ठी रखा गया है। जो कोई विधि विधान से उनकी पूजा करता है वह उनकी मांगे पूरी करती है। राजा प्रियवद ने षष्ठी के कहे अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को माता का व्रत रखा और उन्हें पुत्र प्राप्ति हुई।

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