कन्याकुमारी के इस गाँव में बच्चों से पूंछा गया बड़े होकर क्या बनोगे, मिला ये खतरनाक जवाब..

विज्ञान में सफलता और असफलता से उतना फर्क नहीं पड़ता, जितना उसके लिए किए गए संघर्ष और समर्पण से. ऐसे ही समर्पण और संघर्ष की कहानी का जीता जागता उदाहरण हैं इसरो के चेयरमैन डॉ. कैलाशावदिवु सिवन. डॉ. सिवन के लिए इसरो (Indian Space Research Organisation – ISRO) जैसे बड़े संस्थान का नेतृत्व करना इतना आसान नहीं है. न ही वे आसानी से इस पद पर पहुंचे हैं. अपने पिता से साथ खेतों में काम करना, नंगे पैर स्कूल जाना, छोटे सरकारी स्कूल में पढ़कर इसरो के चेयरमैन तक बनने में संघर्षों की आग में तपकर आगे बढ़े हैं डॉ. सिवन.

कन्याकुमारी का सरक्कलविलाई गांव, जहां सिवन पैदा हुए, जहां पले-बढ़े वो आज उनपर जान लुटाता है. उन्हें प्यार करता है. इस गांव के बच्चे डॉ. सिवन से प्रेरणा लेते हैं. इस गांव में डॉ. सिवन की मेहनत, संघर्ष और सफलता की ही बातें होती हैं. इसके अलावा कोई चर्चा होती ही नहीं है. इस गांव में रहने वाला डॉ. सिवन का परिवार, उनके स्कूल के दोस्त और गांव के युवाओं को इसरो चीफ और उनके काम पर गर्व है. इस गांव के लोगों को किसी भी मिशन की सफलता और असफलता से फर्क नहीं पड़ता.

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इस गांव के बच्चे कहते हैं कि डॉ. सिवन से हम यह सीखते हैं कि कोई भी काम कठिन नहीं है. कोई भी लक्ष्य हासिल किया जा सकता है. हम सब सिर्फ उनकी तरह पढ़ लिखकर आगे बढ़ना चाहते हैं. गांव के एक युवा प्रवीण ने कहा कि यहां ज्यादातर लोग डॉ. सिवन को रोल मॉडल मानते हैं. पहले उन्हें कोई नहीं जानता था, लेकिन इसरो की वजह से अब उन्हें हर कोई जानता है. हमें गर्व होता है कि हम उसी गांव से हैं, जहां डॉ. सिवन रहते हैं. इस गांव में आप किसी भी बच्चे से पूछो कि आप बड़े होकर क्या बनोगे? जवाब मिलता है – डॉ. सिवन.

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