जाने आखिर क्यों हनुमान जी ने खुद समुन्द्र में फेंक दी थी रामायण ?

ये तो सब जानते है कि पवनपुत्र हनुमान जी को राम भक्त के नाम से भी जाना जाता है. जी हां रामायण में भी आपने देखा होगा कि हनुमान जी कई जगहों पर राम जी की मदद करते है और उन्हें सीता से मिलवाने में मदद करते है. वही श्रीराम भी हनुमान जी को अपने भाई की तरह ही मानते थे. अब यूँ तो हनुमान जी की वीरता से हर कोई वाकिफ है, लेकिन आज हम आपको हनुमान जी के एक ऐसे किस्से से वाकिफ करवाना चाहते है, जिसके बारे में शायद ही लोग जानते होंगे. गौरतलब है कि ये किस्सा रामायण से ही जुड़ा हुआ है. दरअसल रामायण में एक बार ऐसी घटना हुई थी, जहाँ हनुमान जी ने अपने हाथो से लिखी हुई रामायण को उठा कर खुद समुन्द्र में फेंक दिया था. जी हां बता दे कि ये रामायण महर्षि वाल्मीकि द्वारा नहीं लिखी गयी थी.

अब जाहिर सी बात है कि इस रामायण को खुद हनुमान जी ने लिखा था तो इसका नाम भी हनुमद रामायण था. यानि इसे हनुमद रामायण के नाम से जाना जाता था या यूँ कहे कि आज भी जाना जाता है. अगर हनुमद रामायण शास्त्रों की माने तो लंका पर विजय पाने के बाद ही राम और सीता जी अयोध्या वापिस लौट आये थे. वही राम जी के राज्याभिषेक के बाद हनुमान जी भी हिमालय पर शिव जी की आराधना करने के लिए चले गए थे. बस इसी अवधि के दौरान उन्होंने हिमालय की पर्वत शिलाओं पर अपने नाखुनो से ही श्रीराम जी की पूरी जीवनी लिख डाली. ऐसे में इसी रामायण को हनुमद रामायण का नाम दिया गया.

मगर बाद में जब महर्षि वाल्मीकि जी अपने द्वारा लिखी गयी रामायण भगवान् शंकर को दिखाने पहुंचे, तो उन्होंने हनुमान जी द्वारा लिखी गयी रामायण को भी गौर से देखा. जिसे देखने के बाद महर्षि वाल्मीकि जी काफी निराश और उदास हो गए थे. दरअसल महर्षि वाल्मीकि जी का कहना था कि उन्होंने कड़ी मेहनत करने के बाद ये पूरी रामायण लिखी है, लेकिन ये रामायण हनुमान जी द्वारा लिखी गयी रामायण के मुकाबले कुछ भी नहीं है. इसके इलावा उन्हें ये डर भी सता रहा था कि हनुमान जी की रामायण पढ़ने के बाद कही उनके द्वारा लिखी गयी रामायण का अपमान न हो जाए.

ऐसे में हनुमान जी ने बहुत सोच विचार करने के बाद एक कदम उठाया और अपने द्वारा लिखी गयी रामायण को त्यागने का फैसला किया. जी हां बता दे कि हनुमान जी ने खुद के द्वारा लिखी गयी रामायण को यानि हनुमद रामायण पर्वत शिला को अपने कंधो पर उठाया और उन्हें श्रीराम का नाम लेकर ही पर्वत में फेंक दिया. इसके बाद हनुमान जी ने महर्षि वाल्मीकि से कहा कि आज के बाद से आपकी रामायण ही समाज में पहली रामायण के नाम से प्रसिद्ध होगी और तभी से हर व्यक्ति महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखी गयी रामायण को ही ज्यादा तवज्जु देता है.

 
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