संत ने महिला को दी गुस्सा शांत करने की दवा, और फिर..

किसी भी चीज की अति यानी ज्यादा होना नुकसानदेह होता है। इसीलिए कहा गया है- ‘अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप। अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।’ इसका आशय यह है कि जो लोग ज्यादा बोलते हैं, उन्हें मूर्ख समझा जाता है। वहीं कम बोलने वाले को लोग गूंगा या बेवकूफ समझते हैं। जब बारिश अधिक होती है, जो फसलें बर्बाद हो जाती हैं और जब धूप ज्यादा पड़ती है, तो जमीन बंजर हो जाती है।

मगर, इस अति के अलावा एक और चीज है, जो दूसरों को ही नहीं बल्कि खुद के लिए भी नुकसानदेह होती है। वह है गुस्सा यानी क्रोध। गुस्सैल व्यक्ति चिल्लाकर सामने वाले को तो परेशानी में डाल ही देता है, अपना भी नुकसान कर लेता है। मगर, इस पर काबू करना इतना मुश्किल भी नहीं है, जितना लोग समझते हैं।

एक महिला के लिए भी अपने गुस्से को काबू करना काफी मुश्किल था। गुस्से में वह अपने सामने पड़ने वाले हर किसी को उल्टा-सीधा बोल देती थी। उसकी इस आदत की वजह से पड़ोसी, नाते-रिश्तेदार और यहां तक कि घर के लोग भी उससे दूर हो गए। हालांकि, गुस्सा शांत होने के बाद उसे अपनी गलती का एहसास होता था, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी होती थी।

आज के दिन ये राशिवाले रहे सावधान, शनिदेव की पड़ सकती है कुदृष्टि

एक दिन महिला को पता चला कि शहर में एक नामी संत आए हैं। वह महिला उनसे मिलने गई। महिला ने कहा महाराज मेरे क्रोध करने की आदत की वजह से सभी मुझसे दूर हो गए हैं। मुझे अपनी गलती का एहसास भी होता है, लेकिन जिस वक्त यह होता है परिस्थितियां मेरे नियंत्रण में नहीं होती हैं, मैं क्या करूं।

Back to top button