बिहार में RTI कानून बना मजाक, सूचना मांगने वालों पर फर्जी केस कर रहे अफसर

पटना। बिहार में सूचना के अधिकार के तहत सूचना मांगने वाले लोगों पर भ्रष्ट अफसरों के अत्याचार का डंडा बरसने लगा है। राज्‍य में पंचायत से लेकर सचिवालय तक ऐसी प्रताडऩा के 352  मामले सामने आ चुके हैं। यह आंकड़ा मार्च से सितम्बर 2018 के बीच का है। कई आला अधिकारी भी स्वीकारते हैं कि लोकहित की  योजनाओं में बरती गई अनियमितताओं को दबाने-छिपाने वाले पदाधिकारी या कर्मचारी सूचना मांगने वालों के खिलाफ हमलावर रूख अख्तियार कर लेते हैं और उनपर फर्जी केस करने या कराने से भी पीछे नहीं रहते।

रंगदारी व धमकी से जुड़े ज्यादा मामले
12 साल पहले की बात है। तब बिहार में लोक सूचना का अधिकार कानून (आरटीआइ) को लागू करते समय सरकारी तत्परता की देश भर में सराहना हुई थी। इसके वास्ते कई अफसरों को पुरस्कृत तक किया गया था। आज स्थिति उलट गई। वजह है कि अब इसी राज्य में नागरिकों के सूचना-अधिकार का हनन सबसे ज्यादा हो रहा है।

राष्ट्रीय स्तर पर कई बार पुरस्कृत हो चुके नामचीन आरटीआइ कार्यकर्ता शिवप्रकाश राय बताते हैं, ‘बिहार में सूचना मांगने वालों पर ही नहीं बल्कि सूचना का अधिकार पर अफसर अत्याचार कर रहे हैं। पंचायत से लेकर जिला मुख्यालय तक भ्रष्ट अफसर सूचना मांगने पर जेल भेजवाने की धमकी देते हैं।’

वे कहते हैं कि अभी तक 18-19 आरटीआइ कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है। रंगदारी और धमकी से जुड़े ज्यादातर फर्जी केस सूचना मांगने वालों पर दर्ज कराए गए हैं। हालत यहां तक बिगड़ चुकी है कि  भ्रष्टाचार साबित कर देने जैसी सूचना मांगने वालों को झूठे मुकदमों में फंसाया जा रहा है। ऐसे लोगों को जेल भेज देने की भी धमकी दी जा रही है।

रंगदारी मांगने के फर्जी मुकदमे
खगडिय़ा के अलौली प्रखंड के वीरेन्द्र मंडल, मधबुनी के राजनगर प्रखंड के मनीष झा, सारण के अमनौर प्रखंड के अरविन्द कुमार, नवादा के हिसुआ प्रखंड के जगदीश शर्मा, नालन्दा के रहुई प्रखंड के रामसेवक महतो, लखीसराय के वीरमणि मिश्र, मुजफ्फरपुर के हायाघाट के अभय कुमार, मुंगेर के प्रकाश चन्द्र और बक्सर के शिवप्रकाश राय समेत 83 आरटीआइ कार्यकर्ताओं पर रंगदारी मांगने के फर्जी मुकदमें अफसरों ने दर्ज कराया। इनमें अधिकांश मामले न्यायालय और राज्य सूचना आयोग में आए हैं। राज्य के  मुख्य सूचना आयुक्त एके सिन्हा ने माना है कि ऐसे कुछ मामले उनके सामने आए हैं जो बेहद गंभीर हैं। बेशक, ऐसे केस में पुलिस अफसरों को खास सावधानी बरतनी होगी।

गृह सचिव व डीजीपी की शिकायत सेल नहीं हुई कारगर
ऐसा नहीं है कि राज्य सरकार ने अपने नागरिकों को सूचना का अधिकार देने के साथ उनकी सुरक्षा की कभी परवाह नहीं की है। वर्ष 2010 में सरकार ने राज्य के गृह सचिव और पुलिस महानिदेशक की अगुवाई में एक सेल का गठन किया था। इस सेल को जिम्मेदारी दी गई थी कि वह आरटीआइ कार्यकर्ताओं के उत्पीडऩ से संबंधित शिकायतों पर तत्काल कार्रवाई करे। लेकिन यह सेल निष्क्रिय ही रहा।

जिसकी शिकायत उसी को जांच का जिम्‍मा 
सबसे मजेदार बात तो यह है कि आरटीआइ कार्यकर्ता ने जब इस सेल में अपनी शिकायत दर्ज कराई तो उस शिकायत को उन्हीं पदाधिकारियों के पास जांच के नाम पर भेज दिया गया, जिनके खिलाफ आरटीआइ कार्यकर्ताओं ने शिकायत दर्ज कराई थी।

स्थिति दुर्भायपूर्ण 
पटना हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट अरविन्द कुमार सिंह का कहना है कि जिस बिहार में ‘जानकारी’ नाम से की गई सरकारी व्यवस्था के तहत टेलीफोन  पर आवेदन स्वीकार किया जाता हो, जहां मांगी गई सूचना आसानी से उपलब्ध कराने की पहल की गई हो, वहां आज सूचना के अधिकार की ऐसी दुर्दशा बड़ा ही दुर्भाग्यपूर्ण है। 

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