लखनऊ. सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने गुरूवार को अपने पिता मुलायम सिंह को आगरा में 5 अक्टूबर को होने वाले राष्ट्रीय अधिवेशन में आने का न्योता दिया है। बताया जा रहा है कि मुलायम से अखिलेश की यह आधिकारिक मुलाकात 6 महीने बाद हुई है। पॉलिटिकल एक्सपर्ट प्रदीप कपूर कहते हैं, “कोई बड़ी बात नहीं है मुलायम राष्ट्रीय अधिवेशन में पहुंच जाए,लेकिन यह तय है कि अब मुलायम के राजनैतिक जीवन पर सवाल खड़े होने लगे हैं। एक्सपर्ट ने इसके पीछे उन्होंने 5 वजह गिनाई।
अखिलेश का विरोध
– मुलायम सिंह ने भले ही पुत्र मोह में अखिलेश यादव को यूपी का सीएम बना दिया था, लेकिन वह अखिलेश को पूरे 5 साल बच्चा ही समझते रहे।
-ऐसे कई मौके आए जब उन्होंने अखिलेश को सार्वजानिक रूप से फटकार लगाई। 15 जून 2013 में जब मीडिया ने मुलायम से यूपी की कानून व्यवस्था पर सवाल किया, उन्होंने कहा था कि मैं सीएम होता तो 15 दिन में कानून व्यवस्था सुधार देता।
-मुलायम लगातार अखिलेश का विरोध करते रहे जिससे अखिलेश की कमजोर छवि ही बनकर यूपी में निकली। यही वजह है कि सपा सरकार में कई पॉवर सेंटर बनने की बात भी सामने आई।
– नतीजा 2017 चुनावों में जहाँ अखिलेश फेल हुए, वही, मुलायम को भी फेल माना गया ।
अखिलेश के पीछे जासूस लगाये
– जब अखिलेश यादव सीएम बने, मुलायम की एक खास अफसर सीएम की प्रमुख सचिव बनी। माना जाता था कि बतौर सीएम अखिलेश पर नजर रखने के लिए उनकी तैनाती सीएम ऑफिस में की गयी थी।
– जानकारों का मानना है कि अखिलेश भी उनके सामने असहज हो जाते थे।
– यही नहीं अखिलेश पर नजर रखने के लिए अपने भरोसे के एक नेता को भी लगाया, लेकिन समय बदला। आज वह नेता अखिलेश के पक्ष में खड़ा है ।
– इससे यही मैसेज गया कि अखिलेश को फ्री हैण्ड काम करने के लिए नहीं दिया गया है। इससे अखिलेश पर तो दाग नहीं लगा लेकिन सपा सरकार बदनाम जरूर होती रही ।
मुलायम बतौर मुखिया कॉन्फिडेंस खो चुके हैं
– यादव परिवार के 15 महीनों के झगड़े में कई बार ऐसा सम आया, जब मुलायम सभी को एक टेबल पर बिठाकर यह कह सकते थे कि पार्टी हम अखिलेश को सौंप रहे हैं। जानकार कहते हैं, थोड़ा न नुकुर के बाद सब मुलायम की बात मान भी लेते, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया ।
– इसके पीछे रीजन यह है कि वह जहां पिता की हैसियत से फैसला लेना होता था, वहां राष्ट्रीय अध्यक्ष बने रहे। जहां राष्ट्रीय अध्यक्ष बनकर फैसला लेना होता था, वहां पिता बने रहे। जैसे अखिलेश यादव को पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाना और फिर पार्टी से बाहर करना जैसे फैसलों ने अखिलेश-मुलायम और उनके समर्थकों के बीच दूरी ही बढ़ाई।
– यही वजह है कि वह बतौर मुखिया अपना कांफिडेंस खो चुके हैं।