भारत को तेल की आपूर्ति करने वाला दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक बना ईरान
ईरान के तेल का रिप्लेसमेंट हासिल करना भारत के लिए कोई बड़ी समस्या नहीं है। इराक, सऊदी अरब और कुवैत ईरान की कमी को पूरा कर सकते हैं। हालांकि इस प्रक्रिया में कीमतों में चरणबद्ध तरीके से इजाफा हो सकता है क्योंकि ये मुल्क शायद वैसे ऑफर न दें जो ईरान दे रहा है। भारतीय रिफाइनरियों की तकनीकी क्षमता काफी समृद्ध है। इस वजह से वह विभिन्न तरह के क्रूड की प्रोसेसिंग में भी सक्षम हैं।
इन सबके बीच भारत की असल चुनौती तेहरान के साथ अपने वर्षों पुराने रिश्ते को बचाने और अफ-पाक नीति के तहत आने वाले चाबहार प्रॉजेक्ट से जुड़े वित्तीय/सामरिक हित हैं। आपको बता दें कि 2010-11 में ईरान सऊदी के बाद भारत के लिए दूसरा सबसे बड़ा तेल निर्यातक था, लेकिन बाद में यह मुल्क सातवीं पोजिशन पर पहुंच गया। दरअसल तेहरान के न्यूक्लियर कार्यक्रमों पर लगाम लगाने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ईरान पर कई प्रतिबंध लगा दिए थे।
इस दौरान भारत ने अमेरिका द्वारा दी गई छूट की शर्तों को पूरा करने के लिए धीरे-धीरे ईरानी तेल के आयात को कम कर दिया। जुलाई 2015 में ईरान के साथ समझौता होने के बाद प्रतिबंध हटाए गए। इसके बाद भारत ने भी धीरे-धीरे ईरान से तेल आयात को बढ़ाया। इस बीच 2017-18 में भारत की सरकारी रिफाइनरियों ने आयात को कम किया। भारतीय कंपनियों के समूह द्वारा फरजाद-बी गैस फील्ड खोजने के बाद ईरान इसका कॉन्ट्रैक्ट देने में लेटलतीफी कर रहा था, जिसके जवाब में ऐसा किया गया।
अब एक बार फिर ईरान के साथ भारत का तेल रिश्ता समस्याओं से घिरा नजर आ रहा है। ओबामा के इतर ट्रंप ईरान को माफी देने के लिए मूड में बिल्कुल भी नजर नहीं आ रहे हैं। रिलायंस इंडस्ट्रीज और रूस के रोजनेफ्ट के नेतृत्व में चल रही नयारा, देश की दो बड़ी प्राइवेट रिफाइनरियों ने ईरान से तेल आयात को बंद कर दिया है। तेल मंत्रालय ने सरकारी रिफाइनरियों से भी कहा है कि अगर इन प्रतिबंधों में भारत को छूट नहीं मिली तो वे भी तेल आयात के वैकल्पिक उपायों को तैयार रखें।