GST को लेकर गहराया बड़ा संकट, केंद्र के पास नहीं बचा…

अपनी शुरुआत से करीब तीन साल में ही ‘एक देश एक टैक्स’ का बहुप्रचारित सिस्टस वस्तु एवं सेवा कर (GST) गहरे संकट में फंस गया है. केंद्र सरकार ने पहली बार सार्वजनिक तौर पर यह स्वीकार किया है कि जीएसटी के तहत निर्धारित कानून के तहत राज्यों की हिस्सेदारी देने के लिए उसके पास पैसे नहीं है. जीएसटी सिस्टम 1 जुलाई 2017 को लागू किया गया था.

लॉकडाउन से पहले ही हालत खस्ता थी

गौरतलब है कि कोरोना संकट या लॉकडाउन से काफी पहले अगस्त 2019 में ही देश की आर्थिक हालत इतनी खस्ता थी कि जीएसटी कलेक्शन राज्यों को दिए जाने वाले हिस्से का आधा भी नहीं हो पाया था. ऐसी हालत में एक ही रास्ता दिख रहा है ​कि या तो कुछ वस्तुओं पर टैक्स बढ़ाए जाएं या छूट के दायरे में शामिल वस्तुओं को जीएसटी के तहत लाया जाए.

वित्त सचिव के बयान पर विवाद

गौरतलब है कि वित्तीय मामलों पर गठित एक संसदीय समिति के विपक्षी दलों के सदस्य वित्त सचिव अजय भूषण पांडे के एक कथित बयान को लेकर भड़के हुए हैं. बीजेपी नेता जयंत सिन्हा के नेतृत्व वाली वित्तीय मामलों की स्थायी समिति की पहली बैठक में शामिल होने वाले कांग्रेस और अन्य दलों ने कहा कि अजय भूषण पांडे ने समिति को यह बताया है कि, ‘केंद्र सरकार जीएसटी फॉर्मूले में तय नियम के मुताबिक अब राज्यों की हिस्सेदारी देने की स्थिति में नहीं है.’

यह मीटिंग काफी समय से लंबित थी. मीटिंग में विपक्षी दलों के सदस्यों ने इस मसले को उठाया कि पिछले कई महीनों से केंद्र सरकार राज्यों का हिस्सा नहीं दे रही है जिसकी वजह से उन्हें कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.

क्या है केंद्र-राज्यों में जीएसटी शेयर करने का फॉर्मूला

जीएसटी कानून के मुताबिक यह तय किया गया था कि इस सिस्टम को लागू करने से राज्यों को राजस्व का जो नुकसान होगा उसकी भरपाई केंद्र सरकार करेगी. आधार वर्ष 2015-16 को मानते हुए यह तय किया गया कि राज्यों के इस प्रोटेक्टेड रेवेन्यू में हर साल 14 फीसदी की बढ़त को मानते हुए गणना की जाएगी. पांच साल के ट्रांजिशन पीरियड तक केंद्र सरकार महीने में दो बार राज्यों को मुआवजे की रकम देगी. लेकिन पेच यह है कि जीएसटी कानून में कहा गया है कि राज्यों को मिलने वाला सभी मुआवजा जीएसटी फंड यानी संग्रह से दिया जाएगा.

पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था, ‘अगर रेवेन्यू पूल में कोई कमी होती है जीएसटी काउंसिल इसे दूर करने का कोई रास्ता निकाल सकता है.’

विपक्षी दलों का कहना है ​कि खासकर वे राज्य इस समय भारी वित्तीय संकट का सामना कर रहे हैं जिन्हें कोरोना से निपटने, प्रवासियों की मदद और बेरोजगारी को दूर करने के लिए भारी खर्च करना पड़ रहा है. विपक्षी दल वित्त सचिव के बयान से काफी नाराज हैं. उनका कहना है कि ‘सरकार राज्यों के प्रति अपनी जवाबदेही से कैसे मुकर सकती है.’

जल्दबाजी में लागू हुआ कानून!

इस समिति के एक सदस्य ने आजतक-इंडिया टुडे को बताया, ‘केंद्र सरकार जीएसटी कानून को लागू करने के लिए काफी जल्दबाजी में थी. अब संसाधनों की कमी यह बताती है कि यह कानून काफी जल्दबाजी में लाया गया और गलत ढंग से लागू किया गया. इस महामारी से जो आर्थिक संकट आया उसने इसकी खामी को उजागर कर दिया और केंद्र सरकार को तो कभी यह नहीं सूझता कि हालात को कैसे संभाला जाए.’

सूत्रों के मुताबिक वित्त सचिव ने समिति को बताया है कि जीएसटी एक्ट में ऐसे प्रावधान हैं जिनके मुताबिक राज्य सरकारों को मुआवजा देने के लिए कोई नया फॉर्मूला बनाया जा सकता है. इस बारे में अंतिम निर्णय जीएसटी कौंसिल को लेना है और उसकी अगली बैठक जुलाई में ही होने वाली थी, लेकिन यह अभी तक नहीं हो पाई.

क्या है सरकारी खजाने की हालत

वित्त मंत्रालय ने एक बयान में बताया है कि सरकार ने वित्त वर्ष 2019-20 में मार्च महीने के जीएसटी मुआवजे के लिए 13806 करोड़ रुपये जारी किए हैं. सरकार का कहना है कि वित्त वर्ष 2019-20 के लिए कुल मुआवजा दे दिया गया है.

सरकार द्वारा तैयार एक बैकग्राउंड नोट के अनुसार मौजूदा वित्त वर्ष यानी 2020-21 में केंद्र सरकार ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को जीएसटी मुआवजे के रूप में 15,340 करोड़ रुपये जारी किए हैं, जबकि कोरोना संकट की वजह से जीएसटी कलेक्शन में भारी गिरावट आई है.

बचे हुए हैं कम्पेनसेशन सेस के पैसे!

सूत्रों के मुताबिक वित्त वर्ष 2019-20 में केंद्र सरकार ने राज्यों को जीएसटी मुआवजे के रूप में 120,498 करोड़ रुपये जारी किए हैं, जबकि उसे कम्पेनसेशन सेस के रूप में महज 95,000 करोड़ रुपये हासिल किए हैं. इसके पहले 2018-19 में केंद्र सरकार ने 95,081 करोड़ रुपये का कम्पेनसेशन सेस हासिल किया था और राज्यों को 69,275 करोड़ रुपये दिए थे. इसी तरह 2017-18 में केंद्र ने 62,611 करोड़ रुपये का कम्पेनसेशन सेस हासिल किया था और राज्यों को 41,146 करोड़ रुपये जारी किये थे. इस तरह 31 मार्च 2019 तक की बात करें तो सरकार के पास इस मद से 47,271 करोड़ रुपये बचे हुए थे.

कोरोना से काफी पहले एक अगस्त 2019 से ही सरकार को यह आभास हो गया था कि राज्यों को मुआवजा देने के लिए कम्पेनसेशन सेस संग्रह काफी नहीं है. कम्पेनसेशन सेस संग्रह हर महीने 7,000 से 8,000 करोड़ रुपये हो रहा था, जबकि राज्यों को हर महीने 14,000 करोड़ रुपये देने पड़ रहे थे. हालांकि इसकी भी अपनी सीमाएं हैं. अगर सरकार कुछ वस्तुओं पर कम्पेनसेशन सेस बढ़ा भी दे तो राजस्व में सालना 2000 से 3000 करोड़ रुपये की ही बढ़त होगी.

सूत्रों का कहना है कि नवंबर 2019 तक सभी राज्यों को पूरा कम्पेनसेशन सेस दिया गया और किसी राज्य के साथ कोई भेदभाव नहीं हुआ. यह पारदर्शी तरीके से राज्यों तक पहुंचा दिया जाता है.

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