क्या आपका बच्चा करता है खुद से बातें? जानें इसके फायदे और नुकसान

हममें से अधिकतर लोग मुश्किल हालात में खुद से बात करते हैं। बच्चे भी खुद से बातें करते हैं। अकेले में खुद से ही कुछ कहकर खुद ही उत्तर देना क्या उनके लिए सामान्य है? दिल्ली की रहने वाली रीना की बेटी सौम्या दूसरों बच्चों से उतनी बात नहीं करती, जितना कि खुद से करती है। रीना कई बार सौम्या को समझा चुकी है, लेकिन वह खुद से ही बातें करती रहती है। रीना इससे परेशान हो चुकी है, इसलिए उसने यह समस्या अपनी दोस्त हेमलता से साझा की। हेमलता ने रीना को बताया कि शोधकर्ताओं के अनुसार, इंटेलिजेंस और बच्चों का खुद से बात करना, दोनों का आपस में गहरा संबंध है।

खुद से बात करने की आदत उनके भाषायी विकास में भी बहुत योगदान करती है और उनके व्यवहार को विकसित करने में भी मदद करती है। हेमलता की बात से रीना तो संतुष्ट हो गई, लेकिन सवाल यह है कि क्या हेमलता सही कह रही है?

आत्मसंवाद कौशल

जब बच्चे खुद से बातें करते हैं तो इसके कई लाभ होते हैं। यह उनके आत्मसंवाद कौशल को विकसित करता है, जो कि उनमें स्वतंत्रता और स्वाधीनता की भावना को विकसित करता है। साथ ही इससे उनकी सोचने की क्षमता बढ़ती है और वे अपनी परेशानियों और परिस्थितियों को खुद हल करना सीखते हैं, जो भविष्य में मददगार साबित हो सकता है।

अभिव्यक्ति की क्षमता

जो बच्चे खुद से बात करते हैं, वे अपने विचारों को स्पष्ट ढंग से व्यक्त कर पाते हैं। अपने विचारों को मन में बोलकर बच्चे उसे सरल शब्दों में कहना भी सीखते हैं। इसके अलावा वे स्वतंत्र रूप से अपने विचारों को रखना भी सीखते हैं, वह भी बिना डरे। इतना ही नहीं, बच्चों का खुद से बात करना उन्हें एक मिलनसार व्यक्ति के रूप में विकसित होने में भी मदद करता है, जिसका मतलब है कि वे भविष्य में किसी भी अन्य व्यक्ति से आसानी से बात कर सकते हैं।

व्यक्तित्व विकास जरूरी

खुद से बात करने वाला बच्चा अपनी सोच को स्थिर करने की क्षमता रखता है, जिससे उसके व्यक्तित्व का विकास होता है। यह इस बात को भी दर्शाता है कि आपका बच्चा मानसिक रूप से स्वस्थ है, साथ ही वह बुद्धिमान भी है। खुद से बात करना उन्हें सकारात्मक और नकारात्मक विचारों को समझने में भी मदद करता है। सिर्फ यही नहीं, बच्चों का खुद से बात करना उनके दिमाग को लॉजिकल यानी तार्किक तरीके से काम करने में भी मदद करता है।

खुद पर नियंत्रण

खुद से ही बातें करना बच्चों को अपने आप पर नियंत्रण करना भी सिखाता है। इससे उन्हें किसी भी विषय के विभिन्न पहलुओं को समझने में मदद मिलती है और उनकी सोच में एक नई दिशा का निर्धारण होता है। जब वे अपने विचारों और भावनाओं को स्वयं से साझा करते हैं तो पहले खुद उस बात का मतलब समझने का प्रयास करते हैं और उसके बाद ही अन्य व्यक्ति से कहते हैं। यह उन्हें अपने लक्ष्यों को सही दिशा में रखने और प्रभावी रूप से उन लक्ष्यों पर काम करने में मदद करता है।

अंतर को पहचानें

मनोवैज्ञानिक मेघा शर्मा बताती हैं, खुद से बात करने की क्रिया किसी भी उम्र में एक सामान्य व्यवहार का लक्षण है। इससे बच्चों की भाषा का विकास होता है, तनाव का स्तर कम रहता है, एकाग्रता में सुधार होता है, समस्या-समाधान के कौशल में सुधार होता है और बच्चे अपनी भावनाओं को संतुलित कर पाते हैं। लेकिन यदि आपका बच्चा हल्लुसिनेशन यानी कि अवास्तविक चीजें भी जब उसे वास्तविक लगती हैं और वह उनसे बातचीत करने लगता है, तो आपको एक स्वास्थ्य पेशेवर से मदद लेनी चाहिए।

ये सिजोफ्रेनिया जैसी मानसिक स्थिति का संकेत दे सकती हैं। इन स्थितियों में आपको उनके आत्मसम्मान में सुधार के तरीके खोजने चाहिए। साथ ही उनके अधिक सकारात्मक और उत्साहवर्धक होने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर से बात करानी चाहिए।

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