देवउठनी एकादशी का व्रत रखने से प्राप्त होगा, सैकड़ों राजसूय यज्ञ का फल

हरि प्रबोधिनी एकादशी आज मनाई जा रही है। इसे हरि उठनी या देवउठनी एकादशी भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार महीने के बाद अपनी निद्रा त्यागते हैं, नींद से उठते हैं। कार्तिक शुक्ल के इस पावन पर्व पर तुलसी जी की भी पूजा की जाती है और उनका विवाह किया जाता है। कहा जाता है कि इस एकादशी व्रत से अश्वमेध यज्ञ और सैकड़ों राजसूय यज्ञ के फलों की प्राप्ति होती है।

इसी दिन से विवाह आदि शुभमुहर्त शुरू हो जाते हैं। इस दिन भक्तों द्वारा व्रत रखा जाता है और भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। 

पावन पर्व पर विष्णु जी की पूजा नए गुड़, शकरकंद, गन्ने आदि से भोग लगाकर की जाती है। आस्थावान इस दिन निर्जल व्रत भी रखते हैं। इसके साथ ही किसान अपने खेत में गन्ने के थान की पूजा कर सुख समृद्धि की कामना करते हैं।

क्यों किया जाता है तुलसी विवाह?

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार माता तुलसी ने भगवान विष्णु को नाराज होकर श्राप दे दिया था कि तुम काला पत्थर बन जाओ। इसी श्राप की मुक्ति के लिए भगवान ने शालीग्राम पत्थर के रूप में अवतार लिया और तुलसी से विवाह किया। तुलसी को माता लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। 
तभी से ही तुलसी विवाह किया जाने लगा। तुलसी की पूजा में तुलसी को सुहागिन महिलाएं सुहाग की चीजें और लाल चुनरी अर्पित करती हैं। 

महत्वपूर्ण तिथि और शुभमुहूर्त 

एकादशी तिथि प्रारंभ – 25 नवंबर 2020, बुधवार को सुबह 2.42 बजे से

एकादशी तिथि समाप्त – 26 नवंबर 2020, गुरुवार को सुबह 5.10 बजे

द्वादशी तिथि प्रारंभ – 26 नवंबर 2020, गुरुवार को सुबह 5.10 बजे से

द्वादशी तिथि समाप्त – 27 नवंबर 2020, शुक्रवार को सुबह 7.46 बजे

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