एक ऐसे ऋषि जिन्होंने कभी नही देखी थी स्त्री, लेकिन जब देखा तो फिर..
यह तब की बात है जब विभांडक ऋषि अपनी तपस्या में लीन थे उनकी घोर तपस्या और बढ़ती हुई शक्ति को देखकर स्वर्ग के देवता काफी परेशान हो गए थे. जिसके फलस्वरुप उन्होंने निर्णय किया कि वह विभांडक ऋषि की तपस्या को भंग करेंगे. विभांडक ऋषि की तपस्या को भंग करने के लिए देवताओं ने स्वर्ग से एक उर्वशी नाम की अप्सरा को उनके पास भेजा हुआ. अप्सरा अत्यंत खूबसूरत थी उसकी आकर्षण से विभांडक ऋषि का तप भंग हो गया और दोनों में संभोग हुआ. जिसके फलस्वरुप एक पुत्र का जन्म हुआ ऋषि श्रृंग ही वह पुत्र थे. पुत्र को जन्म देते ही उस अप्सरा का कार्य कहां समाप्त हो गया है और वह वहां से स्वर्ग की ओर चली गई. छल और कपट की भावना से भरपूर विभांडक ऋषि ने क्रोध में आकर पूरी संसार की स्त्रियों को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया. इसके बाद हुए अपने पुत्र को लेकर एक जंगल की ओर चले गए. अपने साथ हुए इस छल के कारण उन्होंने प्रण किया कि जीवन भर अपने पुत्र को किसी स्त्री की छाया तक भी नहीं पड़ने देंगे. और यही कारण था कि ऋषि श्रृंग ने कभी किसी स्त्री को देखा ही नहीं था खाते हैं.
क्रोधित होकर विभांडक ऋषि जिस जंगल की ओर गए थे उसके पास एक नगर था. उनका क्रोध उस जंगल में जाने के बाद और बढ़ने लगा जिसका असर नगर पर पड़ने लगा. वहां आकाल से मातम छाने लगा जिस से परेशान होकर नगर के राजा रोमपाद ने अपने मंत्रियों ऋषि मुनियों को बुलवाया. दुविधा का समाधान ऋषि मुनि ने ऋषि श्रृंग का विवाह बताया. उनके अनुसार ऋषि श्रृंग यदि विवाह कर लें तो विभांडक ऋषि को मजबूर होकर अपना क्रोध त्यागना पड़ेगा और सारी समस्या का हल निकल जाएगा. राजा रोमपाद ने खुशियों के इस प्रस्ताव को स्वीकार और जंगल की ओर कुछ खूबसूरत दासियों को भेजा. राजा रोमपाद को लगा कि ऋषि श्रृंग पहली बार में ही दासियों को देखकर मोहित हो जाएंगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. जिसने आज तक किसी स्त्री को नहीं देखा था वे कैसे समझते यह नारी जाती है या पुरुष जाति. यही कारण था दासियों को अपनी ओर आकर्षित करने में काफी समय लगा. लेकिन एक दिन दासियों को ऋषि श्रृंग को अपनी ओर मोहित करने में कुछ सफलता हासिल हुई. अब ऋषि श्रृंग उन दासियों के साथ उनके नगर जाने के लिए भी तैयार हो गए. जब विभांडक ऋषि को इस बारे में पता चला तो वह अपने पुत्र को ढूंढते हुए राजा के घर में जा पहुंचे. जहां उनका क्रोध शांत करने के लिए राजा ने अपनी पुत्री का विवाह ऋषि श्रृंग से कर दिया.
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पुराणों में उल्लेख की गई एक कथा के अनुसार जब राजा दशरथ को पुत्र की प्राप्ति नहीं हो रही थी. तो उन्होंने एक महान यज्ञ करवाया था, उसका नाम अश्वमेघ यज्ञ रखा था. इसी अश्वमेघ यज्ञ की मदद से उन्हें पुत्र के रुप में भगवान श्री राम की प्राप्ति हुई थी. अश्वमेघ यज्ञ के दौरान राजा दशरथ को महर्षि विभांडक के पुत्र के ऋषि श्रृंग की कहानी सुनाई गई थी. इस यज्ञ से संबंधित एक बात और प्रचलित है कि इसकी भविष्यवाणी बहुत पहले ही कर दी गई थी. इतना ही नहीं यह भी कहा जाता है कि राजा रोमपाद ने ऋषि श्रृंग से अपनी जिस दत्तक पुत्री का विवाह किया था. वह कोई और नहीं बल्कि अयोध्या के महाराज दशरथ की पुत्री और श्री राम की बहन शांता जी थी.