बड़ा खुलासा: बर्फ की चट्टान से नहीं बल्कि इस वजह से डूबा था टाइटैनिक!

RMS टाइटैनिक दुनिया का सबसे बड़ा वाष्प आधारित यात्री जहाज था. वह साउथम्पटन (इंग्लैंड) से अपनी प्रथम यात्रा पर, 10 अप्रैल 1912 को रवाना हुआ. चार दिन की यात्रा के बाद, 14 अप्रैल 1912 को वह एक विशाल हिमखंड से टकरा कर डूब गया जिसमें 1,517 लोगों की मौत हुई जो इतिहास की सबसे बड़ी शांतिकाल समुद्री आपदाओं में से एक है. टाइटैनिक के डूबने से पहले के घंटों में असल में क्या हुआ, इस बारे में कई मिथक और कहानियां हैं. और ज्यादातर लोगों की जानकारी ऐतिहासिक तथ्यों पर नहीं बल्कि इस घटना पर बनी फिल्मों का नतीजा हैं. वहीं माना ये जाता है कि विशाल बर्क की चट्टान से टकरा जाने से ही टाइटैनिक पानी में समा गया लेकिन अब एक अलग ही थ्योरी सामने आई है. जिसमें बर्क की चट्टान को जहाज के डूबने का कारण नहीं माना गया है. आइए जानते हैं इसके बारे में…

मशहूर जहाज टाइटैनिक आइसबर्ग से टकराने के कारण नहीं, बल्कि आग के कारण उत्तरी अटलांटिक सागर में डूब गया था. यह दावा विशेषज्ञों की एक टीम ने किया था. अभी तक यह माना जाता रहा है कि टाइटैनिक समुद्र की सतह के नीचे बने एक आइसबर्ग के साथ टकराकर डूब गया था. लेकिन शोधकर्ताओं ने कहा है कि यह आग तीन हफ्तों तक लगी रही और किसी ने भी इस पर ध्यान नहीं दिया. इसी आग के कारण जहाज क्षतिग्रस्त हो गया था. फिर जब सफर के दौरान आइसबर्ग के साथ इसकी टक्कर हुई, तो कमजोर होने के कारण वह डूब गया.

पत्रकार सेनन मोलोने ने जहाज के मुख्य इलेक्ट्रिकल इंजिनियर्स के जरिए ली गई तस्वीरों का अध्ययन किया. ये तस्वीरें लेने के बाद टाइटैनिक बेलफास्ट शिपयार्ड में भेज दिया गया था. मालोने का कहना है कि उन्होंने इन तस्वीरों में पतवार के दाहिनी ओर 30 फुट लंबे काले निशान देखे. यह निशान जहाज की लाइनिंग के उस हिस्से के ठीक पीछे है, जहां आइसबर्ग टकराया था. उन्होंने कहा, ‘हम अब जहाज के उस हिस्से की तलाश कर रहे हैं, जहां पर आइसबर्ग टकराया था. उस इलाके में पतवार का जो हिस्सा है, उसमें कोई क्षति या कमजोरी है या नहीं, हम इसे देखेंगे.’

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विशेषज्ञों का कहना है कि शायद किसी आग के कारण पतवार के पास यह निशान बना. यह आग शायद जहाज के बॉइलर रूम के पीछे बने तीन-मंजिला ईंधन स्टोर में लगी होगी. 12 लोगों की एक टीम ने यह आग बुझाने की भी कोशिश की, लेकिन आग उनके काबू से बाहर थी. इसके कारण जहाज का तापमान 1,000 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया. इसके बाद जब टाइटैनिक आइसबर्ग से टकराया, तब तक आग के कारण स्टील से बनी इसकी पतवार काफी कमजोर हो गई थी. इसी वजह से आइसबर्ग के साथ टकराने पर जहाज की लाइनिंग टूट गई. टाइटैनिक बनाने वाली कंपनी के अध्यक्ष जे. ब्रूस ने जहाज पर सवार अधिकारियों को निर्देश दिया था कि इस आग के बारे में यात्रियों को कुछ ना बताएं.

पत्रकार सेनन मोलोने ने अपने रिसर्च के बारे में चैनल 4 पर दिखाई गई एक डॉक्युमेंट्री में बताया है. मोलोने ने दावा किया है कि जहाज पर लगी आग से हुए नुकसान को यात्री ना देख सकें, इसलिए जहाज को साउथंपटन स्थित बर्थ पर रखा गया था. वहीं टाइटैनिक की आधिकारिक जांच में कहा गया था कि जहाज का डूबना प्राकृतिक हादसा था. लेकिन अब जो चीजें सामने आ रही हैं उससे पता चलता है कि आग, बर्फ और आपराधिक लापरवाही के कारण टाइटैनिक के साथ यह हादसा हुआ था.

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