प्रकृति और संस्कृति का अनूठा संगम-राजसमंद

राजस्थान की राजधानी जयपुर से 350 किलोमीटर दूर दिल्ली-मुंबई राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है राजसमंद जिला। यहां सब कुछ है, जिस जगह को आप देखते ही कह सकते हैं-‘वाह’! अगर आप इतिहासप्रेमी हैं तो राजस्थान के मेवाड़ अंचल की आन, बान, शान का प्रतीक कुम्भलगढ़ दुर्ग, देवगढ़ का महल और सरदारगढ़ का किला देखकर आप इतिहास के पन्नों में खो सकते हैं। कांकरोली में भगवान श्री द्वारिकाधीश, नाथद्वारा में श्रीनाथजी तथा गढ़बोर में श्री चारभुजानाथ के दर्शन कर एक अलग अनुभूति होगी। यहां राजस्थान के वीर योद्धा महाराणा प्रताप के शौर्य एवं बलिदान की कहानी सुनाती हल्दी घाटी की मिट्टी को छूकर आपका रोम-रोम रोमांचित हो उठेगा। यही नहीं, ऊंचे पहाड़ की चोटी पर धीमी गति से चलने वाली ट्रेन से खामलीघाट से गोरमघाट तक का सुहाना सफर हमेशा याद रखेंगे आप…

राजनगर से राजसमंद

फरवरी 1676 में महाराणा राजसिंह द्वारा आयोजित प्रतिष्ठा समारोह में गोमती नदी के जल प्रवाह को रोकने के लिए बनाई गई झील का नाम राजसमंद, पहाड़ पर बने महल का नाम राजमंदिर और शहर का नाम राजनगर रखा गया, जिसे अब राजसमंद कहा जाता है।

दुनिया की सबसे ऊंची शिव प्रतिमा

नाथद्वारा में दुनिया की सबसे ऊंची यानी 351 फीट की शिव प्रतिमा का निर्माण-कार्य अंतिम चरण में है। इसे दुनिया की सबसे ऊंची शिव प्रतिमा होने का दावा किया जा रहा है। इसे 20 किलोमीटर दूर से भी देखा जा सकेगा। कहते हैं 250 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाले तूफान में भी यह सुरक्षित रह सकेगी। इस शिव प्रतिमा परिसर में दर्शकों के मनोरंजन के साथ-साथ अन्य कई प्रकार की सुविधाएं भी उपलब्ध होंगी।

लुभाता है झील का नैसर्गिक सौंदर्य

जिस राजसमंद झील के नाम पर इस शहर का नामकरण हुआ, वह बेहद खूससूरत है। महाराणा राजसिंह द्वारा सन् 1669 से 1676 तक के बीच बनाई गई यह झील मेवाड़ की विशालकाय झीलों मे से एक है। गोमती नदी को दो पहाडि़यों के बीच में रोककर इस झील का निर्माण किया गया था। कांकरोली व राजनगर इसी झील के किनारे स्थित हैं। राजसमंद का प्रमुख आकर्षण है झील की पाल पर बनी ‘नौचौकी’। यहां संगमरमर से बने तीन मंडपों की छतों, स्तंभों तथा तोरणद्वारों पर की गई नक्काशी एवं मूर्तिकला लाजवाब है। तीनों मंडपों में प्रत्येक में नौ का कोण और प्रत्येक छतरी की ऊंचाई नौ फीट है। झील की सीढि़यों को हर तरफ से गिनने पर योग नौ ही होता है। इस पाल पर नौ चबूतरे (जिन्हें चौकी कहते हैं) बने होने के कारण इस का नाम नौचौकी हो गया। राजसिंह ने इस झील के लिए मेवाड़ के इतिहास का भी संग्रह करवाया और तैलंग भट्ट मधुसूदन के पुत्र रणछोड़ भट्ट ने उसके आधार पर ‘राजप्रशस्ति’ नामक महाकाव्य लिखा, जो पाषाण की बड़ी-बड़ी 25 शिलाओं पर खुदवाया गया।

चकित करती है पिछवाई पेटिंग

यहां वर्षभर कोई न कोई आयोजन होता ही रहता है, इसलिए पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है। कांकरोली एवं नाथद्वारा में प्रतिवर्ष अप्रैल माह में गणगौर का मेला लगता है। हल्दीघाटी व कुम्भलगढ़ में प्रताप जयंती पर मेला लगता है। नाथद्वारा और कांकरोली में जन्माष्टमी पर भव्य उत्सव का आयोजन किया जाता है। दीपावली के दूसरे दिन मनाया जाने वाला अन्नकूट उत्सव तो काफी प्रसिद्ध है। गढ़बोर चारभुजा में देवझूलनी एकादशी पर मेला लगता है। कुंवारिया ग्राम में तथा देवगढ़ में लगने वाले पशुमेले भी प्रसिद्ध है। कुम्भलगढ़ दुर्ग पर आयोजित होने वाला फेस्टिवल भी पर्यटकों में खूब लोकप्रिय है, जो यहां हर वर्ष दिसंबर माह में आयोजित किया जाता है। इस तीन दिवसीय उत्सव में जाने-माने शास्त्रीय नृत्य कलाकार भाग लेते है। इस वर्ष यह इसी माह के 1 से 3 तारीख को मनाया गया। यहा की चित्रकला भी अनूठी है। नाथद्वारा के श्रीनाथजी मंदिर में प्रतिमा के पीछे सजाई जाने वाली पिछवाई पेंटिंग देखकर आप दांतों तले अंगुली दबा लेंगे। पिछवाई का मतलब है देव-स्वरूप के पृष्ठ भाग में टांगा जाने वाला चित्रित पर्दा। कांकरोली के श्री द्वारिकाधीश मंदिर में बनाए जाने वाले जल चित्र भी अपनी तरह के नायाब होते हैं।

संगमरमर भी है खास पहचान

राजसमंद के आर्थिक एवं भौतिक विकास में संगमरमर पत्थर के खनन व्यवसाय का विशेष योगदान है। यहां संगमरमर की अनेक खानें हैं, जिनसे मार्बल पत्थर आते हैं और यहां से विदेश में भी इनका निर्यात होता है। राजसमंद से नाथद्वारा मार्ग तथा गोमती मार्ग पर आप दोनों तरफ संगमरमर पत्थरों का स्टॉक देख सकते हैं। बेहतर गुणवत्ता बेहतर के कारण ही यहां के मार्बल की खूब मांग रहती है।

टॉय ट्रेन की यादगार यात्रा

बेशक आपने शिमला, दार्जिलिंग, ऊटी और माथेरान की टॉय ट्रेन यात्रा की होगी, लेकिन खामलीघाट से गोरमघाट का हसीन सफर भी यादगार बन सकता है। मावली से मारवाड़ जंक्शन मीटर गेज रेलवे लाइन पर राजसमंद जिले में देवगढ़ के पास स्थित है यह रेलमार्ग। बारिश के मौसम में तो इसका रोमांच चरम पर होता है। दरअसल, यह पहाड़ी मार्ग बहुत खूबसूरत है। बारिश के दिनों में हरी-भरी पहाडि़यों के बीच से गुजरते हुए, यू-आकार की पुलिया एवं टनल से निकलते हुए रेल जब धीमी गति से अपना सफर तय करती है तो ऐसा लगता है, जैसे जन्नत बस यहीं है। यानी गोरमघाट में प्राकृतिक जल प्रपात तथा एक मंदिर भी दर्शनीय है। टॉडगढ़ अभयारण्य क्षेत्र में होने के कारण यहां आपको जंगली पशु भी देखने को मिल जाएंगे।

यहीं है ऐतिहासिक रणस्थली हल्दी घाटी

महाराणा प्रताप और मुगल सम्राट अकबर के बीच हुए ऐतिहासिक युद्ध की मूक साक्षी है हल्दी घाटी। इतिहास प्रसिद्ध यह रणस्थली नाथद्वारा से लगभग 15 किमी दूर खमनोर की तरफ जाने वाली सड़क पर है। अपने स्कूल की किताबों में महाराणा प्रताप के स्वामीभक्त घोड़े चेतक के बारे में तो बढ़ा ही होगा। चेतक ने स्वामी के प्राणों की रक्षा करते हुए यहीं अपने प्राणी की आहूति दी थी। चेतक की याद में यहां एक स्मारक भवन बना हुआ है। यहां की मिट्टी के हल्दी जैसे रंग होने के कारण इसे हल्दी घाटी कहा जाता है। हल्दी घाटी दर्रे के नीचे बादशाही बाग और रक्त तलाई है। जिसके बारे में कहा जाता है कि युद्ध के दौरान यह रक्त से भर गई थी। हर साल प्रताप जयंती पर मेला लगता है।

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