जानिए किस कारण विजयदुर्ग को जीत पाना मुश्किल था

सिंधुदुर्ग जिले के देवगढ़ तालुका में बना है विजयदुर्ग किला। ऐसा माना जाता है कि 13वीं सदी में राजा भोज द्वितीय ने इसे बनवाया था। तीन ओर समुद्र से घिरे होने की वजह से इसे ‘जिब्राल्टर ऑफ द ईस्ट’ के नाम से भी जाना जाता है। छत्रपति शिवाजी महाराज ने सन् 1653 में आदिल शाह से इस किले को जीता था। पहले इस किले का नाम ‘घेरिया’ था लेकिन जीत के बाद इसका नाम बदलकर विजयदुर्ग रखा गया। साथ ही किले के अंदर एक हनुमान मंदिर का भी निर्माण कराया गया था।

किले की बनावट

जीत के बाद शिवाजी महाराज ने 17 एकड़ जमीन पर इसका विस्तार करवाया था। दुश्मन सेना आसानी से प्रवेश न कर सके इसके लिए मुख्य द्वारा के सामने एक खाई थी। बावजूद इसके ये किला लगातार पुर्तगालियों, डचों और ब्रिटिशों के हमले का शिकार होता रहा। सन् 1756 तक ये मराठा शासन के अधीन रहा।

किले की दीवारें 8 से 10मीटर ऊंची हैं जो बड़ी-बड़ी काली चट्टानों से बनी हुई हैं। किले में 27 बुरूज हैं। उत्तर कि ओर इसका मुख्य द्वार है। किले में अंदर बड़ी सी पानी की टंकी, तोपें, कैदखाना और अनाज रखने के लिए गोदाम भी देखने को मिलेंगे। किले में दो खुफिया रास्ते भी हैं। किले के अंदर कुछ गुफाएं भी बनी हुई हैं।

रत्नागिरी

रत्नागिरी आकर आप खूबसूरत नजारों का मजा ले सकते हैं। यहां का रत्नागिरी फोर्ट देखने लायक है। इसके अलावा कहा जाता है कि पांडव अपने 13 सालों के अज्ञातवास के दौरान कुछ समय के लिए यहां भी रूके थे।

सिंधुदुर्ग किला

विजयदुर्ग से कुछ ही दूरी पर है सिंधुदुर्ग किला जो महाराष्ट्र के अद्भुत और विशाल किलों में से एक है। सिंधुदुर्ग में शिवाजी के हाथ-पैरों के निशान देखने को मिलेंगे।

कुंकेश्वर

कुंकेश्वर में भगवान शिव का बहुत ही प्रसिद्ध मंदिर है। इस पवित्र स्थल को ‘कोंकण काशी’ के नाम से भी जाना जाता है। इसके अलावा यहां के आम भी बहुत मशहूर हैं। इतनी सारी वजहें हैं यहां घूमने की, ऐसे में इसे मिस तो बिल्कुल भी न करें।

तरकली

दक्षिण कोंकण में तरकली बहुत ही पॉप्युलर और खूबसूरत डेस्टिनेशन है। जहां आकर आप कई तरह वॉटर स्पोर्ट्स और मालवनी फूड को एन्जॉय कर सकते हैं

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