जहर खा के इस छात्रा ने मरते-मरते भी दे दी दो लोगो को जिंदगी

जरा सी बात पर उसने भले ही जहर खा कर अपनी जिंदगी खत्म कर ली हो लेकिन जाते-जाते दो को जिंदगी दे गई शकुंतला। शंकुतला ने माता पिता से हुई बहस के बाद कीटनाशक पी लिया था, आनन फानन में उसे अस्पताल पहुंचाया गया लेकिन बचाया नहीं जा सका। लेकिन शंकुतला की किडनी ने दो लोगों को नई जिंदगी जरूर दे दी है।
जहर खा के इस छात्रा ने मरते-मरते भी दे दी दो लोगो को जिंदगी

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सफ्दरजंग अस्पताल में यूरोलोजी और रीनल ट्रांसप्लांट के हेड प्रोफेसर डॉ. अनूप कुमार कहते हैं, शायद यह दुनिया का पहला मामला है जब किसी ने अपनी जिंदगी को खत्म करने के लिए जहर खाया हो और उसके अंग का प्रत्यारोपण किया गया हो।

शकुंतला की किडनी जिस 39 वर्षीय महिला को दी गई उसकी तीन साल पहले किडनी फेल हो गई थी और वो डायलिसिस पर थी। वह दो साल से ज्यादा जिंदा नहीं रह सकती थी। लेकिन किडनी प्रत्यारोपण के बाद अब वह अपनी पूरी जिंदगी जी सकती है।

परिवार वाले अपने रिश्तेदारों का अंगदान नहीं करते हैं

 वहीं  दूसरी किडनी राम मनोहर अस्पताल के एक मरीज को प्रत्यारोपित किया गया।शंकुतला के दिल और लिवर का उपयोग नहीं किया जा सका। जहर का असर लिवर तक हो जाने के कारण लिवर का प्रत्यारोपण नहीं किया जा सका। भारत में दो लाख से अधिक लोगों को अंगप्रत्यारोपण की जरूरत है लेकिन 10 फीसदी लोगों का भी प्रत्यारोपण नहीं पाता है।
परिवार वाले अपने रिश्तेदारों की मृत्यु या ब्रेन डेड घोषित किए जाने के बाद भी उनका अंगदान नहीं कर पाते हैं।  भारत में अभी भी लोगों को ब्रेन डेड का कांसेप्ट नहीं पता है। ब्रेन डेड मरीजों के अंग को दान किया जा सकता है।  

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अंग दान करने के मामले में अव्वल स्पेन है जहां दस लाख लोगों पर 34 से अधिक लोग अंगदान करते हैं। वहीं फ्रांस, इटली और अमेरिका में भी अंगदान करने वालों की संख्या काफी है। भारत में हर दिन नेशनल ऑर्गेन एंड टिशू ट्रांसप्लांटेशन ऑरगेनाइजेशन की वेबसाइट से करीब 1407 और फोन पर 61 लोग अंगदान की जानकारी लेते हैं। लेकिन अंगदान के मामले में अभी भी भारत पिछड़ा हुआ है।  

 
 
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