चुनावी माहौल में क्या गुल खिलाएगा किसान आन्दोलन

अविनाश भदौरिया
कृषि बिल पर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच घमासान जारी है। पंजाब, हरियाणा समेत कई राज्यों में किसान आंदोलित हैं और किसान संगठनों ने 25 सितंबर को भारत बंद का ऐलान किया है। मौजूदा हाल को देखते हुए तो ऐसा लगता है कि जैसे केंद्र की मोदी सरकार से कहीं चूक हो गई है जिसके चलते उसे बड़ा नुकसान हो सकता है लेकिन सोचने की बात यह भी है कि जो पार्टी (बीजेपी) अपने हर एक कदम को बड़ी प्लानिंग और टाइमिंग के साथ आगे बढ़ाती है क्या वह उस समय कोई गलती करेगी जब इसी साल के भीतर दो राज्यों बिहार और पश्चिम बंगाल में चुनाव होने हो।
यह दोनों ही राज्य बीजेपी के लिए अच्छी खासी अहमियत रखते हैं फिर पार्टी कोई फैसला बिना सोचे समझे और जल्दबाजी में कैसे ले सकती है ? प्रश्न तो यह भी उठता है कि जब देशभर में किसान सड़कों पर उतर कर पास हुए कृषि बिल का विरोध कर रहे हैं तब बंगाल और बिहार के किसान उतने सक्रीय नजर क्यों नहीं आ रहे ?
फ़िलहाल यह तो सभी लोग समझते ही हैं कि सियासत में संख्या बल सबसे अहम होता है। देश में 14.5 करोड़ किसान परिवार हैं। इसका मतलब करीब 50 करोड़ लोग। ये वो लोग हैं जो गांवों में रहते हैं और सबसे ज्यादा वोट करते हैं। इसलिए सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही किसानों को लुभाने की कोशिश में रहते हैं।
शायद यही वजह है कि प्रधानमंत्री से लेकर कृषि मंत्री और बीजेपी अध्यक्ष तक सभी महत्वपूर्ण लोग लगातार सफाई पर सफाई दे रहे हैं कि एमएसपी कायम रहेगी और मंडियां बंद नहीं होगी। वहीं विपक्षी दल भी इस मुद्दे को भुनाने के लिए एड़ी छोटी का जोर लगाए हुए हैं और कृषि बिल का विरोध कर रहे किसानों को पूरा समर्थन दे रहे हैं। अब कृषि कानूनों की चुनावी फसल कौन काटेगा यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा लेकिन इस पूरे मसले पर किसानों, सत्ता पक्ष के नेताओं और पत्रकारों का क्या कहना है उसे भी समझते हैं।
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इस विषय में जुबिली पोस्ट की डिबेट में बीजेपी प्रवक्ता अश्विन शाही ने कहा कि किसानों को विपक्षी पार्टी गुमराह कर रही हैं जबकि ये विधेयक उनके हित में हैं।
बीजेपी प्रवक्ता की इस बात का जबाव देते हुए भाकियू प्रवक्ता धर्मेन्द्र मलिक ने कहा कि, नॉन पॉलिटिकल संगठन मुद्दे की लड़ाई लड़ते हैं। हमने तीस वर्ष में कई सरकारों को आते जाते देखा है, हमेशा हक़ की लड़ाई लड़ी है। कांग्रेस को भी हमने विदा किया, जब 1987 का आन्दोलन हुआ तो किसानों में आक्रोश था, कांग्रेस स्टेट और केंद्र में थी। तब से आज तक कांग्रेस की राज्य में वापसी नहीं हो पाई। उन्होंने कहा कि, कल कांग्रेस सत्ता में होगी तो वो भी कहेगी की बीजेपी भड़का रही है।
धर्मेन्द्र मलिक ने आगे कहा कि, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना आई तो बड़े ढोल धमाके के साथ कहा गया कि किसान का वेलफेयर होगा लेकिन जब पता लगा कि सारे पैसे कंपनी लूट के ले गई तो उसे स्वैच्छिक करना पड़ा।
उन्होंने कहा कि, सरकार कह रही है कि एमएसपी रहेगा, हम कह रहे हैं कि एमएसपी रहना चाहिए तो फिर फर्क किस बात का है। उन्होंने कहा कि आप दो लाइन का आर्डिनेंस लाइए उसमें दो बातें लिख दिजिए कि हिंदुस्तान में न्यूनतम समर्थन मूल्य है वो कानूनी अधिकार होगा उसके नीचे जो खरीद होगी उस पर कार्रवाई होगी और दूसरा ये लिख दीजिए कि फसलों जो खरीद एफसीआई द्वारा होती रही है वो जारी रहेगी और एफसीआई को और फसलों पर ले के आया जायेगा तो हमें कोई दिक्कत ही नहीं आप इसकी चिट्ठी जारी करवाओ शाम तक किसान विरोध वापस ले लेंगे।
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उन्होंने कहा कि यह पूरा मामला डब्ल्यूटीओ से जुड़ा है। कांग्रेस हो या बीजेपी दोनों का दर्शन एक है ये उदारीकरण की शुरुआत नरसिम्हा राव के समय से शुरू हुई थी बस फर्क यह है कि कांग्रेस की नीतियों को बीजेपी बड़ी तेजी से आगे बढ़ा रही है तब पूर्ण बहुमत की सरकार नहीं होती थी तो सहयोगी दलों से बातचीत करके हल निकल आता था लेकिन अब तो बीजेपी की सरकार बहुमत की सरकार है तो अपनी मनमानी की जा रही है, सांसदों को प्रश्न पूछने तक का अवसर नहीं दिया जा रहा।
वहीं पंजाब के किसान नेता हरेन्द्र सिंह लखपाल ने बताया कि एमएसपी से उन्हें फसल का अच्छा दाम मिल जाता है लेकिन इसके ख़त्म होने के बाद लूट शुरू हो जाएगी। उन्होंने बिहार का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां के किसानों को अपनी फसलों का रेट कैसा मिल रहा है उसे देख लें।
हरेन्द्र सिंह ने पैन कार्ड धारक द्वारा फसल खरीद करने को लेकर भी सवाल खड़ा किया। उन्होंने कहा कि बड़े बड़े पूंजीपति हैं जो बैंक का रुपया लेकर भाग गए सरकार उन्हें पकड़ नहीं पाई ऐसे में ये किसान कैसे कोई पूंजीपति को पकड़ लेगा, वो हमारी करोड़ों की फसल खरीदेगा और भाग जाएगा फिर हम इधर उधर चक्कर काटते रह जाएंगे बस।
सिंह ने बताया कि पंजाब में 25 हजार अढतिया है उनके सहायक 50 हजार है और एक लाख लेबर आदमी है, ऐसे में प्राइवेट मंडी बनने से लाखों लोग बेरोजगार हो जाएंगे।
वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस ने कहा कि ये विधेयक वैसा ही है जैसे नोटबंदी से कालाधन ख़त्म हो गया, जीएसटी से कारोबार बढ़ गया और लॉकडाउन से कोरोना भाग गया वैसे ही इससे किसान खुशहाल हो जाएगा।
सिद्धार्थ कलहंस ने कहा कि ये कैसा हास्यस्पद तर्क दिया जा रहा है कि किसान अब फसल कहीं भी बेचेगा। उन्होंने कहा कि किसान अभी तक भी स्वतंत्र था कहीं भी फसल बेचने को उसे कही कोई रोक नहीं थी लेकिन 86 फीसदी छोटा और सीमान्त किसान क्या 100 किलोमीटर दूर अपना गेहूं बेचने के लिए जाएगा ?
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