गुस्सा किसी भी समस्या का समाधान नहीं होता

angry_face_2015930_134546_04_09_2015जब हम चीजों को उस तरह से नहीं संभाल पाते, जैसे उन्हें संभालना चाहिए और जब हालात बेकाबू होते लगते हैं, तो हमें सक्रिय हो जाने का एक ही तरीका आता है, और वह है अपने अंदर गुस्सा पैदा करना। क्योंकि आम तौर पर हम आलस्य की अवस्था में है, या यों कहें कि सोए हुए हैं। तो जगने का, कुछ कर गुजरने का हमें एक ही तरीका आता है – गुस्सा।

हमारा यह गुस्सा चाहे एक इंसान पर उसके बर्ताव की वजह से हो, या समाज में बढ़ रही अव्यवस्था और अपराध की वजह से हो, बात एक ही है। जैसे ही हम गुस्से में आते हैं, हम दुनिया को विभाजित कर देते हैं। खुद को दुनिया से अलग देखते हैं।

जब आप किसी से नाराज हैं, जब आप किसी चीज के खिलाफ होते हैं, तो आप आधी दुनिया को खत्म कर देना चाहते हैं। यह समस्या का हल नहीं है। यह तो एक असहाय और कमजोर आदमी का हथियार है। इंसान इतना ज्यादा कमजोर इसलिए हो गया है, क्योंकि वह समय पर काम नहीं करता। जब चीजों को सुधारा जाना चाहिए, हम नहीं सुधारते, सोते रहते हैं। और फिर जब सब कुछ बेकाबू हो जाता है, तो लगता है कि हम असहाय हैं। तब हमें गुस्से के अलावा कुछ और नहीं सूझता।

आपको लगता है कि इससे मदद मिलेगी, लेकिन सोचिए अगर कोई ऐसी हालत है जिसे संभालना आपको आता हो तो क्या आप नाराज होंगे? चूंकि आप यह नहीं जानते कि उस हालत को कैसे संभाला जाए, इसलिए आप गुस्सा होते हैं। कभी-कभी आपको गुस्सा करने से नतीजे निकलते नजर आते हैं।

इसलिए आपको लगता है कि लोगों को बदलने का यही तरीका है, इससे काम बन जाएगा। जब आप युवा थे, तो आपके माता-पिता आपको एक खास रास्ते पर चलाना चाहते थे, लेकिन आप अलग ही रास्ते जा रहे थे। याद कीजिए उन पलों को जब आपके पिताजी या माताजी गुस्से में भरकर आपके ऊपर चीखते-चिल्लाते थे।

तब क्या आप उनकी तारीफ करते थे? नहीं, आप हमेशा उनका विरोध करते थे। उन्होंने अपनी बात मनवाने के लिए आपको कई बार प्यार से समझाया, लेकिन जब उससे बात नहीं बनी, तो हो सकता है एक दो बार वे आपके ऊपर चिल्लाए हों। लेकिन सोचिए अगर वे रोजाना आप पर गुस्से से भड़कते, तो क्या होता?

आप भी उनसे भिड़ जाते। फिर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि रिश्ते में वे आपके कौन लगते हैं। जब आपके ऊपर कोई गुस्सा करता है तो आपको अच्छा नहीं लगता, लेकिन फिर भी आपको लगता है कि दुनिया की समस्याओं का हल गुस्से से ही निकल सकता है। किसी असहाय आदमी का यह अंतिम सहारा है। यह कमजोर आदमी का हथियार है, जो अपने या अपने आसपास के जीवन के लिए कुछ भी नहीं करता।तो समस्या पैदा करके आपको समाधान नहीं ढूंढना चाहिए। हम इतने ज्यादा असंवेदनशील हो गए हैं कि कुछ भी हो जाए, हम समाधान नहीं खोजते। फिर गुस्सा हमें एक सदगुण मालूम पड़ता है। यह कोई सद्गुण नहीं है, यह तो ऐसा है मानो किसी इंसान ने खुद ही अपना दर्जा घटा लिया हो, यह तो तौहीन है। दरअसल, जब आप गुस्सा होते हैं तो आप इंसान ही नहीं रह जाते।

यह बड़ी अफसोस की बात है। मेडिकल आधार पर हम आपको यह बात साबित कर सकते हैं कि अगर आप पांच मिनट के लिए गुस्सा हो जाएं और इस गुस्से की वजह चाहे जो भ्ाी हो, तो आपका खून आपको बता देगा कि आप अपने शरीर में जहर घोल रहे हैं। खुद के शरीर में जहर घोलना क्या यह कोई अच्छी बात हो सकती है? गुस्से में होने के लिए आपको जागरूक होने की जरूरत नहीं है, लेकिन आप अगर गुस्से से बचना चाहते हैं तो आपको जागरूक होना पड़ेगा।

जैसे ही आप जागरूक हो जाते हैं, तो सबको साथ लेकर चलने की काबिलियत आपके अंदर आ जाती है और तब आप खुद ही समस्या का हल बन जाते हैं। आजकल हम अपनी बुद्धिमत्ता का इस्तेमाल समस्या का हल निकालने में नहीं कर रहे, बल्कि समस्याएं पैदा करने में कर रहे हैं। जब समस्याएं हमें परेशान करती हैं, जब हम असहाय हो जाते हैं, तो हमें तेज गुस्सा आता है और हम समझते हैं कि यही एक तरीका है।देखिए, कहीं न कहीं आपके और तमाम दूसरे लोगों के दिमाग में यह गलत ख्याल बैठ गया है कि लोगों को जगाने का मतलब है, उनके भीतर गुस्सा पैदा करना। जागने का मतलब है ज्यादा जागरूक हो जाना। नींद से जाग्रत अवस्था में आ जाना। यही अचेतन अवस्था से चेतना की अवस्था की ओर बढ़ना है। जागने का मतलब हमेशा ज्यादा चेतनापूर्ण होना, जागरूक होना है। जब आप गुस्से में होते हैं, तो आप जागरूक नहीं होते।

 
 
 
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