यदि जिंदगी में सफलता चाहिए तो यहां है वो रहस्य

फूhadappa_17_10_2015ल जब कली होता है तो हम उसकी सुगंध एवं सौंदर्य का आनंद नहीं उठा सकते और उसे खींच-खींच कर खोलने में तो कोई समझदारी नहीं है। हमें उसके सहज विकास के लिए धैर्य पूर्वक प्रतीक्षा करनी होगी, तभी हम उसके सौंदर्य एवं सुगंध का आनंद ले सकते हैं। यहां धैर्य की आवश्यकता है।

मुझे यहां किसी की सुनाई हुई एक कथा याद आती है। एक सड़क किनारे बने अति भव्य मंदिर के पास एक पत्थर पड़ा था। एक दिन वह बोला, मैं भी एक पत्थर हूं और वो भी जो मंदिर में मूर्ति बनकर बैठा है वो भी पत्थर है। फिर सब लोग मुझ पर पांव रख कर चढ़ जाते हैं। और उसकी पूजा करते हैं।

यह सुनकर मंदिर की मूर्ति बोली, ‘तुम तो केवल आज मेरी पूजा होते हुए देखते हो। यहां पहुंचने के पूर्व शिल्पकार ने अपनी छैनी से मेरे शरीर पर हजारों प्रहार किए। उस समय मैनें हिले-डुले बिन उफ तक नहीं की। इसीलिए आज असंख्य लोग यहां आकर मेरी पूजा करते हैं। वह उस पत्थर का धैर्य था जिसने उसे पूजनीय बनाया।’

ठीक इसी तरह आध्यात्मिक जीवन में प्रगति के लिए भी सर्वोत्तम गुण है धैर्य। कुंती और गांधारी से भला कौन परिचित नहीं होगा। उनकी कथा धैर्य और अधैर्य का एक स्पष्ट उदाहरण है। जब कुंती ने गांधारी से पहले बालक को जन्म दिया तो गांधारी खिन्न हो उठीं। क्योंकि वो चाहती थी कि उसका पुत्र सम्राट बने और पुत्र अभी जन्मा ही नहीं। वह घबरा उठी, और उसने अपना धैर्य खो दिया।

तब गांधारी ने अपने पेट पर घूंसा मारकर प्रसव के लिए वाध्य किया। तब गर्भ से बाहर एक मांस का टुकड़ा आया। जिसे उसने सौ भाग करके सौ घड़ो में डालकर रख लिया। कहते हैं इस इस प्रकार वह सौ संतान की माता बनी।

उसमें प्रतीक्षा हेतु धैर्य ही नहीं था। फिर अधैर्य से उत्पन्न हुई संतान अधैर्य का बीज बनी। जबकि धैर्य की संतान ने विजयश्री प्राप्त की। ठीक इसी तरह जब सु्प्त बालक का धैर्य जगाया जाएगा तो सरलता, भोलापन भी स्वतः जग जाएगा। हममें हर चीज से सीखने की इच्छा ही उदय हो जाएगा।

फिर धैर्य तथा एकाग्रता भी अपने आप आ जाएंगे। ज्यों-ज्यों हमारे भीतर यह बलवान होंगे। फिर अहंकार का कोई स्थान नहीं होगा। इसलिए आप सभी जीवन में नौसिखिए का भाव रहना चाहिए। जीवन में वास्तविक सफलता की प्राप्ति का यही रहस्य है।

 
 
 
Back to top button