बड़ी चुनौती: पारिवारिक मोह छोड़ें या जिताऊ चेहरा तलाशें?

लोकसभा चुनाव के लिए तारीखों की घोषणा के साथ ही चुनावी बिसात बिछना तेज हो गया है और 26 सीटों पर काबिज भारतीय जनता पार्टी और तीन सीटों पर काबिज कांग्रेस के लिए अपने-अपने लक्ष्य की पूर्ति करने के लिए जिताऊ चेहरों की तलाश करना आसान नहीं है। जहां तक लोकसभा चुनाव का सवाल है इक्का-दुक्का अपवादों को छोड़कर जीत-हार कर परचम भाजपा या कांग्रेस ही लहराती रही है। हमेशा कांग्रेस पर परिवारदार का आरोप लगाने वाली भाजपा में इस समय सबसे बड़ी समस्या परिवारवाद ही है, क्योंकि उसके नेता अपने बेटे-बेटियों या नाते-रिश्तेदारों को चुनावी समर में उतारना चाहते हैं। भाजपा में कोई अपने बेटे-बेटियों के लिए टिकिट मांग रहा है तो कोई भाई के लिए और ऐसे-ऐसे तर्क दिए जा रहे हैं जिससे कि उनका पक्ष मजबूत हो। विधानसभा चुनाव में हारे कुछ भाजपा और कांग्रेस नेता लोकसभा में अपनी किस्मत आजमाने के मकसद से टिकटों की दावेदारी कर रहे हैं तो कुछ ऐसे लोग जो विधानसभा की गाड़ी चूक गये थे वे लोकसभा चुनाव की गाड़ी में अपनी किस्मत आजमाने के लिए जमीन आसमान एक कर रहे हैं। भाजपा के सामने सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह आधे से अधिक यानी लगभग 16 लोकसभा सदस्यों का टिकट काटे तो ही शायद अपने लक्ष्य के कुछ करीब पहुंच सके, लेकिन ऐसा करना उसके लिए आसान नहीं होगा। वह कुछ की सीटें भी बदल सकती है तो बाकी कितनों को बेटिकट कर पायेगी इस पर ही उसकी चुनावी संभावनाएं निर्भर करेंगी। कांग्रेस के सामने टिकट काटने का तो कोई संकट नहीं है क्योंकि पिछले लोकसभा चुनाव में जीते उसके दो उम्मीदवार ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ में से कमलनाथ विधायक का चुनाव लड़ेंगे और वहां नये चेहरे के रुप में उनके बेटे नकुलनाथ चुनावी समर में ताल ठोकेंगे। देखने वाली बात यही होगी कि दोनों ही पार्टियां कितने उम्मीदवारों को पैराशूट से उतारेंगी और वास्तविक मजबूत जनाधार वाले नेताओं को उनके वाजिब हक से वंचित करेंगी।
इन दिनों कांग्रेस और भाजपा दोनों ही पार्टियों में प्रत्याशियों को लेकर माथापच्ची अंतिम चरण में है और हो सकता है कि इस बार कांग्रेस में प्रत्याशियों की घोषणा होने के बाद भाजपा अपने पत्ते खोले। यह भी हो सकता है कि जितने चरणों में चुनाव हो रहा है उतने ही चरणों में वह अपने उम्मीदवारों के नाम सामने लाये। कांग्रेस भी कुछ क्षेत्रों में भाजपा के पत्ते खुलने का इंतजार करने की रणनीति पर आगे बढ़ सकती है। कांग्रेस के सामने जबलपुर, भोपाल, इंदौर,रीवा, विदिशा, खरगोन, धार, देवास, उज्जैन सहित लगभग डेढ़ दर्जन ऐसे क्षेत्र हैं जहां जीतने वाले दमदार चेहरे उसके पास नहीं हैं और यहां उसे उम्मीदवारों के चयन में ज्यादा मशक्कत करना पड़ रही है। वहीं भाजपा के सामने भी लगभग एक दर्जन से कुछ अधिक सांसदों के स्थान पर नये चेहरों की तलाश एक बड़ी समस्या बनी हुई है। भाजपा व कांग्रेस दोनों में ही ऐसे नेताओं की लम्बी कतार है जो अपने बेटे-बेटियों या पत्नियों के लिए टिकट का दावा कर रहे हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आरंभ से कह रहे हैं कि उनकी पत्नी साधना सिंह टिकट की दावेदार नहीं हैं लेकिन इसके बावजूद विदिशा क्षेत्र के लोग साधना सिंह को ही प्रत्याशी बनाये जाने की जोरशोर से मांग कर रहे हैं। पूर्व मंत्री रामपाल सिंह का भी यही मानना है कि साधना सिंह को ही यहां से उम्मीदवार बनाया जाए क्योंकि वे सबसे मजबूत उम्मीदवार होंगी। टिकट के लिए दांवपेंच भाजपा में ही नहीं कांग्रेस में भी चल रहे हैं। दोनों ही पार्टियों में नाते-रिश्तेदारों को टिकट दिलाने की होड़ लगी हुई है।
सुबह सबेरे से साभार

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