बिलासपुर में बेजा कब्जा : जरूरत है लगातार अभियान की

bb_2015105_14422_05_10_2015ईकोर्ट के निर्देश पर शहर में इन दिनों बेजा कब्जा हटाने के लिए अभियान चलाया जा रहा है। शाम होते ही उनकी धड़कनें बढ़ जाती हैं जो मकान व दुकान के सामने बेजा कब्जा कर रखे हैं । नगर निगम व जिला प्रशासन का अमला सड़कों पर निकलकर बेजा कब्जा हटा रहा हैं ।
 
इस दौरान कहीं दुकानों के सामने के शेड निकाल रहे हैं तो कहीं नालियों पर बनीं सीढ़ियां तोड़ रहे हैं ।थोड़ी बहुत तोड़फोड़ के बाद अमला आगे बढ़ जाता है। कुछ समय बीतते ही व्यवसायी फिर धीरे-धीरे पैर पसारने लगते हैं। व्यवसायी इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हैं कि इस तरह का अभियान कई सालों से चल रहा है ।
 
दो-चार दिन अमला सक्रिय रहता है उसके बाद फिर सब ठंडा पड़ जाता है । वास्तव में शहर को बेजा कब्जा मुक्त करने के लिए दृढ़इच्छा शक्ति की जरूरत है लेकिन आज शहर का जो हाल है उसे देख कर क्या ऐसा नहीं लगता कि शहर एक लुंज-पुंज तंत्र के हाथों गिरवी है?
 
वास्तव में अतिक्रमण के लिए निगम व जिला प्रशासन के अफसर जिम्मेदार हैं, जो समय रहते कार्रवाई नहीं करते । जनप्रतिनिधि भी अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते। अपने वोट बैंक के लिए बेजा कब्जा को प्रश्रय देते हैं।
 
अवैध कब्जों और अवैध निर्माण का बाकायदा अर्थशास्त्र होता है, इनका राजनीतिशास्त्र भी होता है और इसका सीधा रिश्ता एक ऐसे तंत्र से है जो न्यायपूर्ण कार्रवाई करने में नाकाम है जो कमजोर है, जिसकी राजनीतिक पकड़ नहीं है उससे कब्जे या निर्माण ढहाने में किसी हौसले की जरूरत नहीं पड़ती है, लेकिन जहां हौसले की जरूरत पड़ती है वहां तंत्र लाचार दिखता है उसे राजनीतिक सत्ता से अपेक्षित ताकत नहीं हासिल है।
 
शहर अगर अवैध कब्जों और अवैध निर्माणों से अटा पड़ा है तो यह संदेश भी साफ है कि इसके लिए जो जिम्मेदार है, वह तंत्र भ्रष्ट है! क्या इस छबि को दुरुस्त करने में किसी भी रुचि होगी?
 
यह मसला सिर्फ ईंट-पत्थरों और कांक्रीट का नहीं है । इसका रिश्ता एक व्यवस्थित शहर से है । इसका रिश्ता हमारे पर्यावरण से है, साफ-सुथरी हवा और पानी से है। इसका रिश्ता एक सभ्य समाज और सुशासन से भी है। व्यवस्थित शहर की यह जरूरत बड़े-बड़े व्यवसायिक कॉम्पलेक्स से लेकर शहर की भीड़ भरी बेतरतीब सड़कों तक नजर आता है! लेकिन शहर तो मानो कुछ नेताओं और कुछ अफसरों की सनक के भरोसे है ।
 
ये ऐसे सनक है जो बेहिसाब पेड़ कटवा देती है, जिसकी रुचि शहर के कृत्रिम सौंदयीकरण में करोड़ों फूंक देने में होती है । जिसे शहर के नष्‍ट होते जलस्रोत नहीं दिखते। जिसे अवैध निर्माण तो चुन चुनकर ही नजर आते हैं।
 
शहर के वास्‍तविक विकास के लिए जनहित की जिस समग्र दृष्टि की जरूरत है वो ना निर्माण से दिखती है ना तोड़ने में । ये सनक भी गरीबों को उजाड़ने में भी नहीं हिचकती लेकिन जो समर्थ हैं उनके आगे यह हाथ जोड़े खड़ी रहती है। शहर को इससे बचाने की जरूरत है। शहरी विकास के लिए भी एक संवेदनशील न्‍याय प्रिय और व्‍यापक जनहित की दृष्टि चाहिये
 
 
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