पुरखों का भी होता है खाता

चारों धर्मों में स्थित पंडे-पुजारियों के पास हर वह जानकारी मिल जाती है, जिसका हमारे कुल से संबंध रहता है। तीन पीढ़ियों में से किसी भी व्यdf2-112_30_09_2015क्ति द्वारा तीर्थांटन किए जाने के आधार पर उनके कुल का लेखा-जोखा आसानी से तैयार हो जाता है।

भारतीय सनातन धर्म परंपरा में मानव जीवन के अंतर्गत संस्कृति समभाव की परिपाटी चली आ रही है। जिसके अंतर्गत चतुर्यग की व्यवस्था शास्त्र प्रदत्त है। जिसमें सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग, कलियुग इन चार युग की व्यवस्था शास्त्र में लिखित है।

इसी के अंतर्गत 71 पीढ़ी की अवधारणा भी बताई गई है। अर्थात् एक वंश का या एक कुल का 71 पीढ़ी तक निरंतर अनुगमन करना शास्त्र में बताया गया है किंतु यह सभी व्यवस्थाएं युगादि काल से अर्थात् सतयुग, त्रेता, द्वापर तथा कलियुग के कालक्रम के अनुसार पीढ़ियों में समय का तथा आयु का अंतर आता है।

इस दृष्टि से शास्त्र ने प्रथम तीन पीढ़ियों को विशेष मान्यता दी है। जिसमें पिता, पितामह और प्रपितामह के लिए श्राद्ध संदर्भ स्थापित किया है। अन्यथा गणितीय आधार से देखें तो मनुष्य की विंशोत्तरी आयु 120 वर्ष की मानी गई है किंतु कालांतर के अनुसार औसत निकाले तो 7 हजार सौ वर्ष की एक वंश व्यवस्था बताई गई है।

किंतु कालांतर तथा युग सूक्ष्मता के आधार पर पूर्व से लेकर वर्तमान तक यदि अध्ययन करें तो मनुष्य की आयु धीरे-धीरे क्षीण हो रही है। इसलिए उत्तर वैदिक काल में प्रदत्त ऋषि मुनियों ने भविष्य की गणना को देखते हुए तीन पीढ़ियों को विशेष रूप से मान्यता दी।

यही वजह है कि चारों धर्मों में स्थित पंडे-पुजारियों के पास हर वह जानकारी मिल जाती है, जिसका हमारे कुल से संबंध रहता है। तीन पीढ़ियों में से किसी भी तीर्थांटन करने वाले व्यक्ति के आधार पर उसका लेखा-जोखा आसानी से तैयार हो जाता है।

यही वजह है कि वर्तमान पीढ़ी जो आज अपने पुराने लोगों को भूल चुकी है, वह भी वहां जाने के बाद अपने कुल, गौत्र और अन्य परिवारजन के बारे में जानकारी हासिल कर सकते हैं।

 
 
 

 

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