जंगल राज से अलग बिहार का एक और सच

bihar-voters-1-1-55f2e4dd0f7fd_exlstजंगल राज और गो मांस विवाद से अलग बिहार का एक और सच है हर सुबह और दोपहर में साईकिलों पर सवार नीली, गुलाबी, लाल स्कूली पोशाक में स्कूल आती जाती लडकियों की लंबी लंबी कतारें।
गावों गलियों मोहल्लों से निकल कर सड़कों पर साईकिल चलाती दस साल से 16-17 साल की उम्र की बच्चियों के झुंड इस कथित पिछड़े राज्य के हर जिले और दूर-दराज इलाके में सड़कों पर मिल जाते हैं।
चाहे वो राष्ट्रीय राजमार्ग हों, राज्य मार्ग हों या फिर गावों और कस्बों को मुख्य मार्ग से जोडऩे वाली ग्रामीण सड़के हों। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की लोकप्रियता की बड़ी वजह यह भी है। 
अलसुबह पटना से निकलकर हाजीपुर, वैशाली, छपरा, बाढ़, जहानाबाद, समस्तीपुर, आरा, मोतिहारी, बेगूसराय, नवादा, नालंदा किसी भी इलाके के लिए निकलिए सड़कों पर स्कूल जाती इन लड़कियों के झुंड और कतारें देखकर यह अहसास होता है कि बिहार में शिक्षा खासकर महिला शिक्षा की दिशा में एक मौन क्रांति हुई है।
लंबे समय तक बंदूक और गोली की कथित क्रांति और जाति युद्ध से आहत रही बिहार की धरती पर हुई इस खामोश महिला सशक्तीकरण का असर जनमानस पर साफ दिखता है।
वैशाली जिले के कुमार वाईपुर गांव के पास साईकिल सवार और पैदल स्कूल से लौटती छात्राओं के एक झुंड से भेंट होती है। छात्राएं पास के ही गावों से हैं और स्कूल से लौट रही हैं।
उनके स्कूल में करीब साढ़े चार हजार छात्र छात्राएं हैं जिनमें आधे से ज्यादा लड़कियां हैं। जबकि दस साल पहले तक ग्रामीण स्कूलों में नाम मात्र की छात्राएं ही होती थीं।

हल्की लाल रंग की स्कूली वर्दी पहने लडकियां बताती हैं कि उन्हें यह वर्दी और साईकिल सरकार की तरफ से स्कूल की मार्फत मिली है। इसकी वजह से ही उनके माता पिता ने उनका दाखिला स्कूल में करवाया है और अब वह बेहद खुश हैं।
इन छात्राओं के मासूम चेहरों पर शिक्षा पाने की खुशी और घर से बाहर निकल कर खुली हवा में सांस लेने से पैदा हुआ आत्मविश्वास साफ झलकता है।
छात्राएं बताती हैं कि यह सब उन्हें राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार की वजह से मिला है। पास ही कुछ झोपड़ी नुमा कच्चे घर हैं। बस्ती अति पिछड़ी जातियों की है। कुछ महिलाएं अपनी बच्चियों के साथ खड़ी हैं।
एक महिला पूरनमासी कहती हैं कि हम तो नहीं पढ़ सके लेकिन हमारी बच्ची पढ़ रही है। यह कम खुशी की बात नहीं है। तभी एक बुजुर्ग परशुराम मिश्रा आ जाते हैं।
बताते हैं यह कि यह गांव राज्य के दिग्गज नेता रहे पूर्व रेल मंत्री ललित नारायण मिश्र का ननिहाल है। परशुराम मिश्रा सरकारी नौकरी से सेवा निवृत्त हुए हैं।
चुनावी चर्चा में उनकी सहानु भूति भाजपा तरफ झलकती है। कहते हैं गांव में सवर्ण ज्यादा हैं जो भाजपा के साथ जाएंगे। लेकिन साथ ही जोड़ देते हैं कि बच्चियों की शिक्षा के लिए नीतीश कुमार ने जो किया वह किसी भी मुख्यमंत्री ने नहीं किया।
 

 

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