इस उक्ति में किसी धर्म की आलोचना नहीं, बल्कि सत्यसनातन धर्म के परिज्ञानात्मकता का पुर्ण वर्णन हुआ हैं
नोट:-ध्यान रखें यह उक्ति किसी धर्म या पन्थ को न्यून बनाने के लिए नहीं अपितु सत्यसनातन धर्म के परिज्ञानात्मकता को संक्षेप में समझने हेतु है।
रामोविग्रहवान धर्म:
राम साक्षात धर्म ही हैं।
वास्तव में जो धर्म की रक्षा करते हैं धर्म भी उसकी रक्षा करता है।
अस्तु धर्मो रक्षित रक्षितः
जो महानुभाव भगवान के 24 अवतारों के प्रसंग को जानते हैं वे वैदिक संस्कृति को नहीं छोड़ते।
साईं एक सच्चे संत थे न कि भगवान ।
वेद में इनका वर्णन नहीं हैं कृपया वेद विहित कर्म करें
यदि वैदिक संस्कृति के अनुपालक हैं तो सबको भगवान व ईष्ट बनाने से बचें।
गीता में भगवान श्री कृष्ण ने स्पष्ठ कहा है
है श्लोक
स्वधर्मो निधनं श्रेयः पर धर्मों भयावहः।
सभी धर्मों का सम्मान करें किन्तु अपने धर्म के लिए पूर्ण समर्पण रखें ,यदि आवश्यकता हो तो धर्म रक्षार्थ मृत्यु का वरण श्रेष्ठ है।
ये हमारा सत्य सनातन धर्म ही प्रथम धर्म है।
प्रथमतः मानव बने ।
धर्माचरण करें।
वैदिक सत्य सनातन धर्म को समझें।
घर में रखी ये वस्तुएं मनुष्य को बनाती है कर्जदार, एक बार जरुर पढ़ ले…
1 परमात्म तत्व क्या है?
2 हम क्यों जन्मे हैं जन्म का उद्देश्य क्या है केवल पशुवत पेट और प्रजनन या स्वयं का ज्ञान?
3 संसार क्या है?
4 महापुरुषों का संसार के प्रति निज अनुभव क्या है?
5 महात्मा,सन्त किसे कहते हैं ?
6 जीव और भगवान में क्या भेद है।
ये सारी चीजें किसी सद्गुरु की चरण शरण में निश्पृह भाव से सेवा करके परमात्मा व गुरु की अहैतुकी कृपा से ही ठीक ढंग से जान पाना संभव है।
तब हम सब किसी निर्णय पर कुछ कह सकते हैं
अस्तु अल्प ज्ञान व समाज का देख कर किसी व्यक्ति , वस्तु ,स्थान , व भगवान को बना लेना यह उचित नहीं हैं।
आचार्य स्वमी विवेकानन्द
श्री अयोध्याम
संपर्क 9044741252