अगर आपको पता चल जाये कि आप कब और कैसे मरने वाले हैं तो…
आप मुकद्दर के कितने ही बड़े सिकंदर क्यों न हों, आप और आप के जानने वाले सारे लोगों की एक न एक दिन मौत होगी ही।कुछ मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक, ये हकीकत अक्सर लोगों के जहन में कौंधती और परेशान करती रहती है। इस सच्चाई से ही इंसान चलता है। हमारी रोजमर्रा की बहुत-सी बातें, जैसे पूजा-पाठ करना, सब्जियां और दूसरी सेहतमंद चीजें खाना, वर्ज़िश करना, किताबें पढ़ना और लिखना, नई कंपनियां बनाना और परिवार बढ़ाना, इसी हकीकत को झुठलाने की कोशिश होती हैं।
जो लोग सेहतमंद होते हैं, उनके अवचेतन मन में मौत का ख्याल तो रहता है, मगर वो जहन से उतरा रहता है। अमरीका की पेन्सिल्वेनिया यूनिवर्सिटी के डॉक्टर क्रिस फ्यूडटनर कहते है कि, “हम अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में इतने मशगूल होते हैं कि मौत की सच्चाई को भूल जाते हैं। जो चुनौतियां सामने होती हैं, उनसे निपटने में ही हमारी ज़्यादातर ऊर्जा खर्च होती है।” क्या हो कि ये अनिश्चितता खत्म हो जाए? हमारी मौत का दिन, वक़्त और तरीका हमें पता चल जाए, तो क्या होगा?
हालांकि, ये नामुमकिन है। फिर भी, अगर हम तय मौत के तय दिन और वक़्त को जान जाएं, तो शायद हम इंसान बेहतर काम करने या अपनी जिंदगी को नए मायने देने के लिए ज़्यादा प्रेरित हों। पहले तो हमें मौत के मनोविज्ञान को समझना होगा।
1980 के दशक में दुनिया के कई देशों में इस बात की रिसर्च की गई कि मौत का एहसास किस तरह लोगों के बर्ताव पर असर डालता है। इसकी चिंता और परेशानी से हमारे व्यक्तित्व पर कैसा असर पड़ता है? न्यूयॉर्क की स्किडमोर कॉलेज की मनोविज्ञान की प्रोफेसर शेल्डन सोलोमन कहती हैं, “हम बाकी जीवों की तरह ही सांस लेने वाले, खाने और मलत्याग करने वाले और खुद के बारे में महसूस करने वाले मांस के लोथड़े ही तो हैं, जो किसी भी वक़्त खत्म हो सकते हैं।”