बगैर सरकारी मदद के ग्रामीणों ने बनाया पुल, लोगों ने अपने बाहुबल पर भरोसा जताया और बना लिया अपनी उम्मीदों का पुल

जब गुहार लगाकर थक गए, मिन्नतों से भी बात नहीं बनी तो कुछ ऐसा भी हुआ कि लोगों ने अपने बाहुबल पर भरोसा जताया और बना लिया अपनी उम्मीदों का पुल।

उत्तर प्रदेश के सीतापुर में मिश्रिख तहसील के पनरभू गांव में गोमती नदी पर पुल बनाने के लिए ग्रामीणों ने नेताओं और अधिकारियों से कई बार मुलाकात कर मदद की अपील की, लेकिन जब कोई नतीजा नहीं निकला तो उन्होने खुद लकड़ी-बांस का पुल बना लिया। अब इस पुल का फायदा 25 गांव के लोगों को मिल रहा है और 15 किमी लंबा चक्कर काटने से भी छुटकारा मिल गया है।

यह थी समस्या-

कहानी उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले की है। यहां मिश्रिख तहसील के संदना थाना क्षेत्र का पनरभू गांव गोमती नदी के किनारे बसा है। नदी पर पुल न होने कारण लोगों को तमाम जरूरतों के लिए लंबा चक्कर काटना पड़ता था।

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सबसे बड़ी मुश्किल तो बीमार व्यक्तियों का इलाज कराने में आती थी। हरदोई जिले के हरैया कस्बे के अस्पताल तक जाने के लिए 15 किमी का सफर तय करना पड़ता था। बच्चों को अच्छे स्कूल में भेजने की ख्वाहिश भी पूरी नहीं हो पा रही थी।

अपने हाथ-अपना विकास-

पुल बनाए जाने की मांग करते हुए लोग हार चुके थे। परेशान होते रहने के अलावा कोई विकल्प शेष था तो वह था- अपने हाथ-अपना विकास। पनरभू के ग्रामीणों ने इसे ही चुना। आइडिया दिया गांव के ही डॉ. बंशी लाल ने। उन्होंने लकड़ी के पुल की योजना बनाई। यह प्लान ग्रामीणों को भा गया।

इस तरह शुरू हुआ काम-

पुल बनाने में लकड़ी की बल्लियां, बांस, रस्सी व तार का इस्तेमाल किया गया है। बाजार से यह पूरा सामान खरीदना पड़ता तो करीब 75 हजार रुपये का खर्च आता, लेकिन सामूहिक प्रयास से सब जुटा लिया गया। लोगों ने अपने बाग व खेतों से लकड़ी की बल्लियां व बांस काटकर दिए। तार और रस्सी खरीदने के लिए आपस में पांच हजार रुपये का चंदा किया।

छह दिन में बनकर हुआ तैयार-

सीतापुर के पनरभू व हरदोई के रामपुर बड़ेरा के ग्रामीणों ने श्रमदान कर छह दिन में पुल बना डाला। काम 25 जनवरी को शुरू हुआ था। अब पुल बनने से दो दर्जन से अधिक गांव के लोगों को इसका लाभ मिलेगा।

सिवाय आश्वासन के कभी आगे नहीं बढ़ी बात-

ग्रामीणों ने अपनी समस्या कई बार जनप्रतिनिधियों के सामने रखी। एक बार रामलाल राही के केंद्रीय गृहराज्य मंत्री रहते ग्रामीणों ने उनसे मांग की थी। उनके प्रयास से पुल की नपाई कराई गई, लेकिन वे चुनाव हारे तो पुल प्रकरण फिर ठंडे बस्ते में चला गया।

पक्के पुल की मांग अब भी कायम-

पक्के पुल को लेकर ग्रामीणों की मांग हालांकि अब भी कायम है। उनका कहना है कि वे जल्द ही सांसद अंजू बाला और मिश्रिख विधायक रामकृष्ण भार्गव से मिलकर पक्का पुल बनवाने की मांग करेंगे।

इन ग्रामीणों ने किया योगदान-

पनरभू गांव के डॉ. बंशी लाल, प्रेमकुमार, रामू श्रीवास्तव, छोटू यादव, जयपाल, जगदीश, दुर्गेश, सविर्दर, सुधीर, पंकज, छोटे कश्यप, अमित कश्यप, गौतम कश्यप, ज्ञानेंद्र, शुआराम, रमेश, मंगनू, शिवगोपाल, रंगेलाल, राम नरेश मौर्य, सुनील कुमार का योगदान रहा। इसके अलावा हरदोई जिले के रामपुर बड़ेरा निवासी राजू, रामदास, रामभजन, राजकुमार व शिवकुमार ने भी पुल निर्माण में योगदान दिया।

बेहतर शिक्षा की राह हुआ आसान-

अब बच्चे अच्छे स्कूलों में पढ़ सकते हैं। राजधानी लखनऊ जाने के लिए भी हरैया से ही बस मिलती थी। पुल बनाने के पीछे चिकित्सा, शिक्षा व मूलभूत सुविधाओं के लिए अब 15 की जगह बमुश्किल तीन किमी का सफर ही करना पड़ेगा। इससे 25 गांव के लोगों को लाभ मिलेगा।

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