एक टांग पर डेढ़ किमी दूर ये 6 साल की बच्ची जाती थी स्कूल, खबर छपते ही जागे लोग और…

6 साल की बच्ची एक टांग पर डेढ़ किमी तक स्कूल जाती थी। खबर छपते ही लोग जागे और फिर वो हुआ, जिसके बारे में उसने शायद सपने में भी न सोचा हो।

 

बात हो रही है, पंजाब के मानसा की स्थानीय रतिया रोड पर अनाज मंडी के पास झुग्गियों में रहने वाली 6 साल की मीरा की, जो एक टांग पर डेढ़ किमी दूर स्कूल आती-जाती है। बच्ची के जज्बे को सलाम करते हुए लोगों ने उसकी कहानी दुनिया तक पहुंचाई। खबर छपते ही लोग जागे और बच्ची को नई टांग मिल गई। पढ़ाई के प्रति मीरा की लगन और जज्बे को देखकर मल्ली वेलफेयर क्लब और पंजाब का एक एनजीओ सामने आया।

उन्होंने बच्ची को सहयोग करने के लिए नगद सहायता प्रदान की और इसके अलावा मीरा के लिए एक आर्टिफिशियल पैर की भी व्यवस्था कर दी। बता दें कि मीरा के परिवार की हालत बेहद खराब है। मीरा का पैर एक हादसे में कट गया था। पहली कक्षा में पढ़ने वाली मीरा एक किलोमीटर तक एक ही पैर से पैदल स्कूल आती जाती है। घर के हालात इतने खराब हैं कि वह एक बैसाखी तक नहीं ले पा रही है।

मीरा की मां हादसे में पैर कटने के कुछ समय बाद उसे छोड़कर चली गई थी। वह चार भाई-बहन हैं। उसके पिता बीमार होने के कारण बिस्तर पर हैं। दादा को दिखाई नहीं देता, इसलिए परिवार की जिम्मेवारी उसकी दादी पर है, जो लोगों से मांग-मांग कर उनका पेट भरती है। इस हालत के बावजूद मीरा ने पढ़ाई का जज्बा कम नहीं होने दिया। मीरा की गिनती स्कूल के सबसे इंटेलीजेंट छात्रों में होती है।

बोहा के सरकारी प्राइमरी स्कूल के टीचर कुछ महीने पहले ड्रॉप आउट बच्चों के लिए सर्वे कर रहे थे। उनका मकसद था कि राइट टु एजुकेशन एक्ट के तहत स्कूल से वंचित रह गए बच्चों को दाखिल कराया जा सके। तभी कुछ दूर स्थित झुग्गियों में उन्हें मीरा और उसके भाई-बहन मिले। मीरा की एक टांग थी। यह देख टीचरों को खास उम्मीद नहीं थी कि बच्ची पढ़ पाएगी, लेकिन उन्होंने तीनों बच्चों का दाखिला कर लिया।

बच्चों की ड्रेस और किताबों का इंतजाम भी स्कूल की तरफ से कर दिया गया। टीचरों ने सोचा कि मीरा न सही, बाकी दो बच्चे स्कूल आ जाएं, वही बहुत है। लेकिन अगले ही दिन इलाके के लोग सुबह एक छोटी सी बच्ची को एक टांग पर सधे हुए ढंग और पूरी रफ्तार के साथ स्कूल बैग लिए ड्रेस में देखा तो वे हैरान रह गए। वो बच्ची मीरा थी, जिसे देखकर टीचरों की आंखें भर आईं, लेकिन बच्ची पर गर्व था।

स्कूल के प्रिंसिपल गुरमेल सिंह खुद दिव्यांग हैं, सो वे यह दर्द बखूबी समझते हैं। पढ़ाई के लिए मीरा का जज्बा देखने के बाद उन्होंने सारे स्टाफ को हिदायत दी कि यह हर हाल में यकीनी बनाया जाए कि मीरा को कोई परेशानी न आए। उसके बाद जैसे-जैसे दिन बीतते गए हर कोई मीरा के जज्बे और हौसले का मुरीद बनता गया। पहली क्लास में ही मीरा के साथ उसका भाई ओम प्रकाश भी पढ़ता है।

अब मीरा का बैग लाने और ले जाने की जिम्मेदारी उसने संभाल ली है। इस उम्र में ही उसे बड़े भाई की भूमिका का एहसास हो गया है। मीरा की टीचर परमजीत कौर ने भी उसकी मदद शुरू कर दी है। वह कोशिश करती हैं कि अगर संभव हो सके तो वह अपनी स्कूटी पर मीरा को स्कूल ले जाएं और वापसी में भी छोड़ दें। लेकिन रोजाना यह संभव नहीं हो सकता। मीरा को पढ़ने का बहुत शौक है। स्कूल आना मानो उसकी जिंदगी का सबसे अहम काम है।
 
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