बुंदेलखंड के युवाओं ने अपने परिवार की भूख मिटाने के लिए छोड़ रहें है गांव
आदिवासी पप्पू (23) के गांव में पानी का संकट अभी से गहराने लगा है, कुएं सूख चले हैं, खेती की जमीन खाली पड़ी है। साथ ही गांव और आसपास कहीं काम नहीं है। वह अपने कुछ युवा साथियों के साथ अपने और परिवार के अन्य सदस्यों की भूख मिटाने का इंतजाम करने दिल्ली जा रहे हैं। पप्पू बुंदेलखंड के छतरपुर जिले की बिजावर तहसील के अमरपुर गांंव के निवासी हैं। वह बताते हैं, ‘कभी ऐसा सूखा नहीं देखा, मौसम ठंड का है और पीने के लिए पानी की समस्या खड़ी होने लगी है। कुएं सूख चले हैं, तालाब में पानी मुश्किल से जानवरों के पीने लायक बचा है।’
बुंदेलखंड वह इलाका है, जिसमें मध्यप्रदेश के छह जिले छतरपुर, टीकमगढ़, पन्ना, दमोह, सागर व दतिया उत्तर प्रदेश के सात जिलों झांसी, ललितपुर, जालौन, हमीरपुर, बांदा, महोबा, कर्वी (चित्रकूट) आते हैं। कुल मिलाकर 13 जिलों से बुंदेलखंड बनता है। इस बार मानसून ने पूरे बुंदेलखंड के साथ दगा किया है। एक तरफ मानसून ने साथ नहीं दिया तो दूसरी ओर सरकारों की ओर से वह प्रयास नहीं किए गए, जिनके जरिए बरसे पानी को रोका जा सकता। वैसे भी यह इलाका बीते तीन सालों से सूखे की मार झेल रहा है।
सामाजिक कार्यकर्ता पवन राजावत कहते हैं, ‘पूरे बुंदेलखंड की हालत खराब है। इस इलाके की पहचान गरीबी, सूखा, पलायन बन चुकी है, मगर इस बार के हालात तो और बुरे हैं। अब डर यह सताने लगा है कि कहीं यह इलाका भुखमरी के क्षेत्र के तौर पर न पहचाना जाने लगे। सबसे बुरा हाल उन गांव का है, जहां तालाब थे मगर खत्म हो चुके हैं, जलस्रोत सूख गए हैं। खेती के कोई आसार नहीं है। हर तरफ खेत मैदान में बदले हुए हैं।’
राजनगर के डहर्रा गांव के काली चरण का परिवार कभी जमीन का मालिक हुआ करता था, मगर अब नहीं है, क्योंकि उनकी जमीन बांध निर्माण के लिए अधिग्रहित की जा चुकी है। वह बताते हैं, ‘जमीन अधिग्रहण पर उन्हें मुआवजा इतना मिला कि एक मकान भी नहीं बन सकता। वह अब भूमिहीन हो गए हैं। गांव में काम है नहीं, परदेस न जाएं तो क्या करें। नेता और सरकार तब आती है जब चुनाव होते हैं।’ बुंदेलखंड की पहचान कभी पानीदार इलाके के तौर पर हुआ करती थी। यहां 20,000 से ज्यादा तालाब थे, मगर आज यह आंकड़ा 7,000 के आसपास सिमट कर रह गया है। पानी के अभाव में न तो खेती हो पा रही है और न ही दूसरे धंधे। इसका नतीजा है कि बड़ी तादाद में पलायन का दौर चल पड़ा है।