मोदी सरकार 18 सितंबर से शुरू हो रहे विशेष सत्र में ला सकती है महिला आरक्षण विधेयक
मोदी सरकार संसद के विशेष सत्र में महिला आरक्षण विधेयक ला सकती है। विपक्षी गठबंधन इंडिया के घटक दलों को इसकी आहट है और इस पर अपनी सार्वजनिक प्रतिक्रिया देने से पहले उन्हें आरक्षण के फॉर्मूले को सामने रखे जाने का इंतजार है। हालांकि, उनका मानना है कि सत्ताधारी दल ने अपेक्षाकृत अधिक मतदाता संख्या वाले लोकसभा क्षेत्र में दो सदस्य (एक महिला व एक पुरुष) चुनने की व्यवस्था कर इस आरक्षण को लागू करने की पूरी तैयारी कर ली है। केंद्र सरकार ने 18-22 सितंबर के बीच संसद का विशेष सत्र बुलाया है। इसका विस्तृत कार्यक्रम अब तक जारी नहीं किया गया है। लेकिन, विपक्षी दलों का मानना है कि लोकसभा चुनाव में अपना पलड़ा भारी करने के लिए भाजपा एक से अधिक विधेयक ला सकती है।
इनमें सबसे ज्यादा लोकलुभावन महिला आरक्षण विधेयक माना जा रहा है। इस बारे में इंडिया के घटक दलों के शीर्ष नेताओं ने मंथन शुरू कर दिया है। विपक्षी नेताओं को आशंका है कि सत्ताधारी दल सियासी लाभ के लिए अपने मुफीद कोई फॉर्मूला ला सकता है। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के उस बयान से विशेष सत्र में महिला आरक्षण विधेयक लाए जाने की चर्चा को और बल मिला है, जिसमें उन्होंने कहा है कि वो दिन बहुत नजदीक है, जब संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं को बराबर प्रतिनिधित्व मिलेगा। बीआरएस नेता और तेलंगाना के सीएम केसी राव की बेटी कविता ने सपा समेत 47 राजनीतिक दलों को पत्र भेजकर अपील की है कि विशेष सत्र में लंबे समय से अटके महिला आरक्षण विधेयक को पारित कराने में मदद करें।
बता दें, यह बिल वर्ष 2010 में यूपीए सरकार ने राज्यसभा से पास करा लिया था, लेकिन क्षेत्रीय दलों के विरोध से लोकसभा में पास नहीं हो सका था। सपा, राजद समेत कई दलों का तर्क था कि महिला आरक्षण में भी ओबीसी व एससी-एसटी की महिलाओं को आरक्षण मिले, वरना इन सीटों पर सामान्य वर्ग ही काबिज हो जाएगा। महिला आरक्षण के मुद्दे पर इंडिया के घटक दलों में मतभेद सामने आ सकते हैं। क्योंकि, कांग्रेस जहां महिला आरक्षण का पहले ही समर्थन कर चुकी है, वहीं इंडिया में शामिल कई क्षेत्रीय दलों की मांग है कि महिला आरक्षण के भीतर जातिगत आरक्षण मिलना चाहिए।