दक्षिणी दिल्ली का पारिस्थितिक तंत्र खतरे में, कुसुमपुर पहाड़ी पर अतिक्रमण कर बना डाला जेजे क्लस्टर!
दक्षिणी दिल्ली के मध्य रिज में स्थित कुसुमपुर पहाड़ी में खदान मजदूर बस गए हैं। क्षेत्र पर धीरे-धीरे अतिक्रमण कर खदान मजदूरों ने पहाड़ी को जेजे क्लस्टर बना दिया है। इस तरह के विकास से क्षेत्र की जनसंख्या में वृद्धि के कारण पर्यावरणीय गिरावट आएगी। यह दक्षिण दिल्ली की पारिस्थितिक जीवन रेखा के लिए खतरा हो सकता है। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) में इससे जुड़ी एक शिकायत मिली है। दरअसल, संस्कृति, विरासत, पर्यावरण, परंपराओं के संरक्षण और राष्ट्रीय जागरूकता के संवर्धन के लिए सोसायटी ने अपनी याचिका में यह मुद्दा उठाया है।
आवेदन में शिकायतकर्ता ने कहा कि दक्षिणी मध्य रिज में स्थित कुसुमपुर पहाड़ी में दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) की प्रस्तावित सार्वजनिक निजी भागीदारी मॉडल 2019 पर इन-सीटू स्लम पुनर्विकास और पुनर्वास के खिलाफ शिकायत की है, जो 1992 की अरावली अधिसूचना का उल्लंघन है। आवेदक की दलील है कि वसंत विहार के उत्तर-पश्चिम में स्थित 692 एकड़ भूमि को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार को संरक्षित वन के रूप में अधिसूचित किया है। ऐसे में उस क्षेत्र में कोई भी गैर-वन गतिविधि की अनुमति नहीं है। आवेदक की दलील है कि खदान मजदूर कुसुमपुर पहाड़ी में बस गए हैं।
अधिकरण ने नोटिस जारी कर मांगा जवाब
अधिकरण ने प्रतिवादियों को ई-फाइलिंग के माध्यम से सुनवाई की अगली तारीख से कम से कम एक सप्ताह पहले हलफनामे के माध्यम से अपना जवाब दाखिल करने के लिए नोटिस जारी किया। साथ ही, प्रतिवादी संख्या 4 की ओर से वकील गिगी सी जॉर्ज का नोटिस स्वीकार किया। अदालत ने कहा कि कोई प्रतिवादी अपने वकील के माध्यम से उत्तर दाखिल किए बिना सीधे उत्तर दाखिल करता है, तो उसे ट्रिब्यूनल की सहायता के लिए वस्तुतः उपस्थित रहना होगा। साथ ही, अदालत ने आवेदक को निर्देश दिया कि वह अन्य प्रतिवादियों को सेवा प्रदान करे।
अधिकरण ने कहा, कुसुमपुर पहाड़ी में विकास कार्य की अनुमति नहीं
एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि कुसुमपुर पहाड़ी में और विकास कार्य की अनुमति नहीं है। अदालत ने संबंधित इलाके की इन-सीटू स्लम पुनर्वास योजना पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि इस योजना के तहत कुसुमपुर पहाड़ी में 2800 आवासीय इकाइयों का निर्माण किया जाना है, जोकि अनुमति नहीं है। पीठ में पीठ में न्यायिक सदस्य न्यायमूर्ति अरुण कुमार त्यागी और विशेषज्ञ सदस्य डॉ. ए सेंथिल वेल भी शामिल रहे। पीठ ने कहा कि याचिका में पर्यावरण मानदंडों के अनुपालन और अनुसूचित अधिनियम के प्रावधानों के कार्यान्वयन से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया है।