राफेल सौदे को बदलने में केंद्र सरकार ने अपने ही बनाए मानकों का नहीं किया पालन

राफेल सौदे पर सरकार ने अपने ही नियमों का पालन नहीं किया। सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में दिए अपने लिखित जवाब में यह बात मानी है। सरकार ने रक्षा खरीद प्रक्रिया-2013 (डीपीपी) के 11 चरणों का ब्योरा दिया है। राफेल सौदे को बदलने में केंद्र सरकार ने अपने ही बनाए मानकों का नहीं किया पालन

इन नियमों में सेना द्वारा अपनी जरूरत बताना (एसक्यूआर), रक्षा खरीद काउंसिल द्वारा इस जरूरत को स्वीकार करना (एओएन), ऑफर मंगाना, तकनीकी मूल्यांकन कमेटी (टीईसी) से मूल्यांकन कराना, फील्ड ट्रायल, स्टाफ इवैलुएशन, तकनीकी ओवरसाइट कमेटी की रिपोर्ट, सीएफसी द्वारा सौदे के मूल्य का मोलभाव, वित्तीय अधिकारी द्वारा मंजूरी, ठेके या सप्लाई के आदेश जारी करना और अनुबंध के बाद सौदे की निगरानी शामिल हैं। लेकिन इस सौदे में सात नियमों का पालन नहीं किया गया। सरकार का तर्क है कि चूंकि ये सारी प्रक्रिया यूपीए सरकार द्वारा पूरी कर ली गई थी, इसलिए इनके दोबारा करने की जरूरत नहीं थी।
याचिकाकर्ता राज्यसभा सांसद संजय सिंह का कहना है कि जब पहला सौदा रद्द कर दिया गया, तो नए सौदे के लिए डीपीपी की पूरी प्रक्रिया नए सिरे से करनी चाहिए थी। जब सरकार ने माना है कि जहाज और उसमें लगे हथियार व उपकरण वे ही हैं जो यूपीए सरकार ने मंजूर किए थे तो ऐसे में 18 जहाज भी पहले सौदे की शर्तों के मुताबिक ही खरीदे जाने चाहिए थे। दूसरा सौदा सिर्फ 18 अतिरिक्त विमानों के लिए किया जाता। उन्होंने कहा कि नया सौदा करने की जल्दबाजी थी तो मंत्रिमंडल की सुरक्षा संबंधी समिति (सीसीएस) की बैठक सवा साल के बाद क्यों बुलाई गई।

जरूरत घटी क्यों
सरकार ने माना है कि 2010 से 2015 के बीच हमारे दुश्मनों ने 400 से ज्यादा अत्याधुनिक जहाज खरीदे। संजय सिंह का सवाल था कि इसके बावजूद हम केवल 36 जहाज ही क्यों खरीद रहे हैं। समय के साथ तो जरूरत बढ़नी चाहिए थी। जब वायुसेना ने 2001 में 126 विमानों की जरूरत बताई थी, तो इसे घटाकर 36 किसकी सलाह पर किया गया।

सौदा सात सालों में पूरा होगा
इतनी सख्त ज़रूरत के बाद भी हमें पहला राफेल अगले साल के अंत तक मिलेगा और सौदे का अंतिम विमान 2022 में। यानी सौदे की घोषणा के सात सालों बाद।

ऑफसेट कांट्रैक्ट बदला
सरकार ने माना कि उसने ऑफसेट कांट्रैक्ट के नियम 7.2 और 8.2 बदल दिए और अब कोई विदेशी कंपनी रक्षा मंत्री को यह बताने को बाध्य नहीं है कि वह ऑफसेट ठेके किसे दे रही है। संजय सिंह ने पूछा कि ऐसे में यदि विदेशी कंपनी किसी संदेहास्पद पृष्ठभूमि के व्यक्ति को ऑफसेट का ठेका देती है तो जिम्मेदारी किसकी होगी। 

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