काशी में शुरू हुई ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य की चयन प्रक्रिया

धर्मनगरी काशी में ज्योतिष पीठ के अगले शंकराचार्य की नियुक्ति प्रक्रिया आरंभ हो गई है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर शंकराचार्य के चयन के लिए नामित भारत धर्म महामंडल ने द्वारिका-शारदा पीठ, शृंगेरी पीठ और पुरी पीठ के शंकराचार्यों से नए शंकराचार्य के नाम पर अनुशंसा मांगी है। मंगलवार शाम हुई महामंडल की बैठक में निर्वाचक मंडल का गठन करने पर चर्चा की गई।
काशी में शुरू हुई ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य की चयन प्रक्रिया इस बीच काशी विद्वत परिषद नए शंकराचार्य के नाम पर सहमति बनाने के लिए 28 नवंबर को विद्वानों की बैठक करेगी। बीते 22 सितंबर को हाईकोर्ट ने कहा था कि भारत धर्म महामंडल, विद्वत परिषद के साथ तीनों पीठों के शंकराचार्य योग्य विद्वान को ज्योतिष पीठ के नए शंकराचार्य के पद पर अभिषिक्त करने का निर्णय लें।

ज्योतिष पीठ के घोषणापत्र में गुरु-शिष्य परंपरा में मठाम्नाय अनुशासन के आधार पर संन्यासी को शंकराचार्य के पद पर आसीन कराने का विधान है।
1953 में स्वामी ब्रह्मानंद के देहावसान के बाद उनके स्थान पर वसीयतनामा के आधार पर शांतानंद सरस्वती, द्वारका प्रसाद शास्त्री, विष्णुद्वानंद सरस्वती और परमानंद सरस्वती को आचार्य पद के लिए नामित किया गया था लेकिन ये सभी उत्तराधिकारी न्यायालय के परीक्षण में अयोग्य पाए गए

इस पद पर धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज के नाम का भी प्रस्ताव किया गया था लेकिन उनके स्वीकार न करने पर 25 जून, 1953 को स्वामी कृष्णबोधाश्रम का अभिषेक किया गया। 20 मई, 1973 को कृष्णबोधाश्रम के देहावसान के बाद 12 सितंबर, 1973 को इस पद पर ब्रह्मानंद के शिष्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का अभिषेक किया गया था।

भारत धर्म महामंडल ने इसका अनुमोदन कर दिया था लेकिन बाद में विवाद खड़ा हो गया। 1989 में स्वामी वासुदेवानंद ने खुद को ब्रह्मानंद की शिष्य परंपरा का संन्यासी बताते हुए पीठ का शंकराचार्य घोषित कर दिया। इस पर न्यायालय में विवाद चलने लगा।

जान‌िए चार पीठों के बारे में, क्या है ‌इसका महात्म

 2015 में सिविल जज इलाहाबाद ने वासुदेवानंद को अयोग्य घोषित करते हुए दंड, छत्र, चंवर धारण करने पर रोक लगा दी थी। इसके बाद 22 सितंबर को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वासुदेवानंद और स्वरूपानंद दोनों को अयोग्य ठहराते हुए नए सिरे से शंकराचार्य का चयन करने का आदेश दिया है।

आदि शंकराचार्य ने सनातन धर्म की रक्षा के लिए चारों दिशाओं में चार पीठों की स्थापना की थी। उत्तर में बद्रीनारायण धाम के निकट ज्योतिष्पीठ, पूरब में पुरी गोवर्धन पीठ, पश्चिम में द्वारिका-शारदा पीठ और दक्षिण के मैसूर में शृंगेरी पीठ।

ज्योतिष्पीठ की दुर्दशा पर वर्ष 1902 में भारत धर्म महामंडल के संस्थापक स्वामी ज्ञानानंद का ध्यान गया था। उन्होंने पीठ की रक्षा के लिए संतों का एक शिष्टमंडल बद्रिकाश्रम भेजकर टेहरी गढ़वाल के तत्कालीन कलेक्टर जेम्स क्ले की मदद से भूमि क्रय कराई थी।
1941 में तीनों पीठों के शंकराचार्यों की सहमति से इस पीठ पर स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती का अभिषेक कराकर शंकराचार्य घोषित किया गया था। 

 
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