SC पंहुचा दिमागी बुखार का कहर , मरने वाले बच्चों की संख्या हुई 130
बिहार के अनेक जिलों में एक्यूट इन्सेफ्लाइटिस सिंड्रोम (एईएस) से मरने वाले बच्चों की संख्या अब 130 पर पहुंच गई है। वहीं सुप्रीम कोर्ट इस बीमारी को लेकर दायर हुई एक याचिका पर सोमवार को सुनवाई करने के लिए सहमत हो गया है। याचिका में बीमारी से पीड़ित बच्चों के इलाज के लिए चिकित्सा विशेषज्ञों की एक टीम का गठन करने की तत्काल मांग की गई है। सुप्रीम कोर्ट 24 जून को सुनवाई के लिए सहमत हो गया है।
130 में से 112 मौत अकेले मुजफ्फरपुर में ही हुई हैं। यहां लोग अपने बच्चों को मुजफ्फरपुर के श्री कृष्ण मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (एसकेएमसीएच) अस्पताल ला रहे हैं। लोग आरोप लगा रहे हैं कि उनके बच्चों को अस्पताल में भर्ती नहीं किया जा रहा है। लोगों का कहना है कि उन्हें कभी उनके बच्चों के लिए ओआरएस भी नहीं दिया गया।
यहां आ रहे माता-पिता का कहना है, “किसी ने हमें ओआरएस के बारे में कुछ भी नहीं बताया है और ना ही दिया है। हमें एईएस के लक्षण भी नहीं पता हैं। हमारे बच्चे 4-5 दिनों से बुखार में तप रहे हैं। डॉक्टरों ने हमें बच्चों के लिए दवाईयां लाने को कहा। और कहा कि अगर बच्चों का बुखार नहीं जाता है तो उन्हें भर्ती किया जाएगा। हमारे पास पैसे नहीं हैं।”
एसकेएमसीएच अस्पताल के सुप्रिटेंडेंट सुनील कुमार शाही का कहना है, “अभी तक 372 बच्चे भर्ती हुए हैं। जिनमें से 118 को अस्पताल से छुट्टी मिल गई है। 57 को जल्द छुट्टी मिल जाएगी। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमने एईएस से 93 जिंदगियां खो दी हैं।” एसकेएमसीएच अस्पताल में इस बीमारी से 93 बच्चों की मौत हुई है और केजरीवाल अस्पताल में 19 बच्चों की मौत हुई है।
दो वकीलों द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में मांग की गई है कि बीमारी से प्रभावित इलाकों में केंद्र और बिहार सरकार को 500 आईसीयू बनाने का आदेश दिया जाए। प्रभावित इलाकों में मेडिकल एक्सपर्ट टीम भेजने के निर्देश दिए जाएं। और 100 मोबाइल आईसीयू मुजफ्फरपुर भेजे जाएं। इसके साथ ही मेडिकल बोर्ड का गठन भी किया जाए।
मानवाधिकार आयोग ने मांगी रिपोर्ट
इस मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और बिहार सरकार से रिपोर्ट दाखिल करने को लेकर नोटिस जारी किया है। बताया जा रहा है कि मुजफ्फरपुर के अलावा अन्य जिले भी बीमारी के प्रभावित हुए हैं।
आयोग ने इसे लोकर भी रिपोर्ट मांगी है कि भर्ती बच्चों को किस तरह का इलाज दिया जा रहा है और पीड़ित परिवारों को राज्य सरकार ने किस तरह की सहायता उपलब्ध कराई है। ये जवाब चार हफ्तों में मांगा गया है।