प्रो. यंग का बड़ा बयान, अब धरती से नहीं खत्म होगा कोरोना वायरस, बताया कारण…

कोरोना वायरस इस साल खत्म नहीं होगा. यानी इस साल के अंत तक यह वायरस मारा नहीं जा सकेगा. यह खौफनाक चेतावनी दी है उस डॉक्टर ने जिसने 2003 में फैली महामारी सार्स का इलाज खोजा था. सार्स भी कोरोना की तरह ही  एक वायरस था. 

हॉन्गकॉन्ग यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर यूएन क्वॉक यंग ने कहा है कि इस साल के अंत तक कोरोना वायरस खत्म नहीं होगा. क्योंकि अब यह पूरी दुनिया में फैल चुका है. प्रोफेसर यूएन क्वॉक यंग ने ही 2003 में पूरी दुनिया में फैली सार्स महामारी का इलाज खोजा था. इस समय वे कोरोना वायरस के इलाज को खोजने में लगे हुए हैं. प्रो. यंग ने बताया चीन की मीडिया को एक इंटरव्यू में बताया कि अब यह वायरस लगातार म्यूटेट हो रहा है.

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यानी यह खुद को लगातार बदल रहा है. हमारे पास इसके सबूत भी नहीं हैं. इसका कोई इलाज भी नहीं है. अभी रिसर्च हो रही है. पर नतीजा कुछ भी नहीं आया है. प्रो. यूएन क्वॉक यंग ने कहा कि स्थिति गर्मियों में थोड़ी सुधर सकती है लेकिन यह वायरस अब धरती पर से खत्म नहीं होगा. यह इस साल के अंत दुनिया भर के लोगों को डराता रहेगा. क्योंकि यह कमजोर होता है लेकिन फिर जैसे ही स्थितियां इसके अनुकूल होती हैं यह फिर तेज हो जाता है. 

प्रोफेसर ने बताया कि वायरस और उसके खत्म नहीं होने का सबसे बड़ा कारण है इतने ज्यादा लोगों का संक्रमित होना. यह वायरस शांत होता है फिर कुछ दिन बाद लोगों को संक्रमित कर रहा है. चीन और दुनिया के कई देशों में ठीक हुआ मरीजों को फिर से कोरोना संक्रमण की दिक्कत सामने आई है. पहले चीन ने दुनिया को डराया और अब पूरी दुनिया चीन को डरा रही है. 

प्रोफेसर यूएन क्वॉक यंग ने दुनियाभर के लोगों से अपील की है कि वे एक जगह से दूसरी जगह जाना बंद कर दें. खासतौर से उन इलाकों में तो कतई न जाएं जहां लोग संक्रमित हैं. 

प्रो. यूएन क्वॉक यंग ने कहा कि दुनियाभर के वैज्ञानिक दावा कर रहे हैं कि कोरोना वायरस अप्रैल तक खत्म हो जाएगा लेकिन ये सच नहीं है. यह वायरस अपने-आप को बदल रहा है.

प्रो. यूएन क्वॉक यंग ने कहा कि इस बीमारी से बचने का एक ही इलाज बचा है. मास्क लगाइए. हाथ साबुन या सैनिटाइजर से साफ करते रहिए. सार्वजनिक स्थानों पर भीड़ और लोगों से दूरी बनाकर रखिए.

प्रो. यूएन क्वॉक यंग ने कहा कि फिलहाल अभी हम सिर्फ हाइजीन और साफ-सफाई के जरिए वायरस के फैलने से रोक सकते हैं. इससे वैज्ञानिकों को रिसर्च करके वैक्सीन बनाने का समय मिलेगा.

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