ओली ने चीन को दिया झटका, अब नेपाल….
कभी भारत के साथ सीमा विवाद और चीन से करीबी तो कभी आंतरिक नीतियों के कारण अपने ही पार्टी नेताओं का विरोध, नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली का कार्यकाल हमेशा विवादों में घिरा रहा। वह अपनी नीतियों से न तो देश की जनता को संतुष्ट कर सके, न ही पार्टी और मित्र राष्ट्रों को। अब जबकि नेपाल की संसद भंग हो चुकी है, उनकी ही पार्टी के दिग्गज नेता इसे असंवैधानिक करार दे रहे हैं। नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के नेता ही संसद भंग किए जाने को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की बात कह रहे हैं।
सरकार में बढ़ा चीन का दखल
जानकार बताते हैं कि कम्युनिस्ट पार्टी को सत्ता में लाने के लिए चीन ने हरसंभव कोशिश की थी। इसके जरिये वह अपना हित साधना चाहता था। जब कम्युनिस्ट पार्टी के दोनों धड़ों में बिखराव की स्थिति पैदा हुई तो चीन ने नेपाल की ओली सरकार में दखलअंदाजी बढ़ा दी। राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने स्थिति को काबू में करने के लिए विश्वस्त राजनयिक होउ यांकी को काठमांडू में तैनात कर दिया। यांकी ने मनमुटाव दूर करने के लिए दोनों धड़ों पर दबाव बनाना शुरू कर दिया। यांकी की नेपाल की सरकार में पकड़ इतनी मजबूत थी कि वह सभी प्रोटोकॉल को तोड़ती हुई राष्ट्रपति से भी मिल लेती थीं। अधिकारियों ने इस पर आपत्ति भी जताई थी।
भारत के प्रति रही कड़वाहट
वर्ष 2015 में नेपाल का नया संविधान लागू हुआ। केपी शर्मा ओली प्रधानमंत्री बने। देश को सात प्रांतों में विभाजित किया। जुलाई, 2016 में दूसरी पार्टियों ने समर्थन वापस ले लिया। उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। ओली ने तब इसके लिए भारत को जिम्मेदार ठहराया था। ऐसा इसलिए, क्योंकि नेपाल के नए संविधान को लेकर भारत ने आपत्ति जताई थी। भारत का कहना था कि इसमें मधेशी और थारू लोगों की मांगों को शामिल नही किया गया। इसी दौरान मधेशी व अन्य अल्पसंख्यकों ने नाकाबंदी कर दी और 135 दिनों तक भारत-नेपाल के बीच सड़क मार्ग बाधित रहा। ओली ने इसे मुद्दा बनाया और वर्ष 2017 के चुनाव में जीत मिलने के बाद फिर प्रधानमंत्री बने। इससे पहले वह 11 अक्टूबर, 2015 से तीन अगस्त, 2016 तक बतौर प्रधानमंत्री देश की कमान संभाल चुके हैं।
सत्ता के लिए हुआ दो पार्टियों का विलय
नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) का जन्म ओली के नेतृत्व वाली सीपीएन-यूएमएल और पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड के नेतृत्व वाली सीपीएन (माओ सेंटर) के मई 2018 में विलय से हुआ। ओली पीएम बने और सर्वोच्च निर्णय लेने वाली पार्टी की 15 सदस्यीय समिति में प्रचंड गुट के नौ सदस्य शामिल हुए। वर्ष 2017 में जीत के बाद ओली ने राजनीतिक स्थिरता सुनिश्चित करने, भ्रष्टाचार और गरीबी से लड़ने का प्रण लिया था, लेकिन वह जनता की उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे। उधर, पिछले कुछ महीनों से प्रचंड खेमा ओली को सत्ता से हटाने के लिए लगातार दबाव बना रहा था।