NDA शासनकाल में तीन गुना बढ़ा ‘केस-मुकदमों’ पर खर्च

एनडीए सरकार के शासनकाल में सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में लड़े जाने वाले मामलों के खर्च में तीन गुना की बढ़ोत्तरी हो गई है. हालांकि पीएम नरेंद्र मोदी बार-बार इस बात को कहते रहे हैं कि वो मुकदमों पर होने वाले खर्चों में कटौती करेंगे लेकिन पिछले तीन सालों में इसमें लगातार बढ़त देखी गई है.NDA शासनकाल में तीन गुना बढ़ा 'केस-मुकदमों' पर खर्च

इन मामलों पर 2014-15 में होने वाला खर्च 15.99 करोड़ था लेकिन 2017-18 के दौरान ये खर्च बढ़कर 47.99 करोड़ हो गया. सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2015-16 में ये खर्च 26.86 करोड़ था जबकि 2017-18 में यही खर्च 32.06 करोड़ था. इन खर्चों में वकीलों की फीस और कोर्ट के दूसरे खर्चे शामिल हैं. कानून एवं विधि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार कोर्ट में चल रहे सभी मामलों के लगभग 46 फीसदी मामले केंद्र या राज्य सरकारों के खिलाफ हैं.

पिछले साल विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद ने अन्य मंत्रालयों और राज्य के मुख्यमंत्रियों को लिखा था कि वो लिटिगेशन के मामलों को घटाने की कोशिश करें. पत्र में कहा गया था, ‘अब समय आ गया है जब मंत्रालय कोर्ट केस में कमी करें. ज्युडिशियरी को ज़यादातर समय सरकारी विभागों के खिलाफ मामले में जाता है. और अगर सोच समझ के केस दर्ज किया जाए तभी इस भार को कम किया जा सकता है. इसके पहले पीएम मोदी ने भी यही बात कही थी कि सरकार सबसे बड़ी याचिकाकर्ता है और इस बात पर जोर दिया था कि सरकार के ऊपर इस भार को कम किया जाए.

बाद में विधि मंत्रालय ने सभी मंत्रालयों और सरकारी विभागों में ‘इंटीग्रेटेड लीगल डिवीज़न’ बनाने का प्रस्ताव रखा था ताकि किसी मामले की शुरुआत में ही कानूनी सलाह दी जा सके और कोर्ट तक मामला पहुंचने से बचा जा सके. इस महीने की शुरुआत में सरकार ने कई कोर्ट में टैक्स के मामले में अपील करने की फीस बढ़ा दी है ताकि कई अनावश्यक के मामलों को कम किया जा सके. हालांकि लिटिगेशन के मामले में बढ़ते हुए खर्च को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि इस मामले में कोई खास प्रगति नहीं हुई है. वास्तव में हर विभाग और मंत्रालय की अपने तरह की समस्या है जिसके मद्देनज़र नियम बनाने की ज़रूरत है.

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