जानिए बिहार के साथ ही अन्य प्रदेशों में प्रसिद्ध महादेव मंदिरों के बारे में जानें

गरीब नाथ मंदिर 

मुजफ्फरपुर में गरीब नाथ महादेव का मंदिर है। शिवलिंग जहां प्रकट हुए वह पहले जंगल था। सावन के महीने में श्रद्धालु यहां कांवड़ लेकर आते हैं। खास बात है कि यह बिहार की सबसे लंबी दूरी की कावड़ यात्रा है।

जानिए बिहार के साथ ही अन्य प्रदेशों में प्रसिद्ध महादेव मंदिरों के बारे में जानेंभोलेनाथ के भक्त सोनपुर के पास पहलेजा घाट से पवित्र गंगा जल कांवड़ में लेकर सोनपुर और हाजीपुर के रास्ते होते हुए पटना पहुंचते हैं। 65 किलोमीटर की यात्रा पैदल पूरी कर भक्त गंगाजल से महादेव का अभिषेक करते हैं।

बाबा गरीबनाथ शिवलिंग कब प्रकट हुआ इसके बारे में जानकारी मौजूद नहीं है। साल 2006 में बिहार राज्य धार्मिक न्यास पार्षद ने मंदिर का अधिग्रहण कर मंदिर की व्यवस्था के लिए 11 सदस्यों का एक ट्रस्ट बनवाया। मंदिर में मौजूद कल्पवृक्ष की पूजा शिवलिंग के प्राकट्य से भी पहले से होती है। 

हरी और हर का पौराणिक मंदिर

हरिहर नाथ, सोनपुर 

बिहार में पावन नारायणी नदी के तट पर भगवान हरी और हर का एक पौराणिक मंदिर है जो हरिहर नाथ के नाम से मशहूर है। पौराणिक कथाओं के अनुसार गज और ग्राह की लड़ाई में भगवान विष्णु ने स्वयं प्रकट होकर गज की सहायता की थी।

बाबा गरीब नाथ जाने वाले कांवड़ियां हरिहर नाथ पर भी जल चढ़ाते हैं। कार्तिक पूर्णिमा पर यहां मेला लगता है जो करीब एक महीने तक चलता है, जो सोनपुर मेला के नाम से विख्यात है। 

बैद्यनाथधाम, देवघर 
भारत के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक बाबा बैद्यनाथ शिवलिंग झारखंड के देवघर में मौजूद है। देवघर यानि जहां देवता निवास करते हैं। हिंदू मान्यता के अनुसार ज्योतिर्लिंग वह स्थान कहलाते हैं जहां भगवान शिव प्रकट हुए और ज्योति रूप में स्थापित हैं।

पौराणिक कथाओं के अनुसार जब शिव सती के शरीर को लेकर घूम रहे थे तो सती का हृद्य यहां गिरा था। इसलिए मान्यता है कि यहां पूजा करने वाले श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इसलिए इस शिवलिंग को कामना लिंग भी कहा जाता है। कथाओं के अनुसार सती के शरीर के 51 खंड हुए थे। यह अंग जहां गिरे, वहां शक्तिपीठ की स्थापना हुई।

सावन के महीने में श्रद्धालु यहां गंगाजल से बाबा का अभिषेक करते हैं। श्रद्धालु 105 किमी दूर सुल्‍तानगंज में पवित्र गंगा नदी से गंगाजल भरकर कांवर उठाते हैं पैदल यात्रा पूरी कर बाबा बैद्यनाथ का जलाभिषेक करते हैं।

सावन के महीने में देवघर में श्रावणी मेला लगता है और यहां का नजारा देखने लायक होता है। पूरा इलाका ‘बम-बम’ के नारों से गूंजता रहता है। बैद्यनाथधाम को बैजनाथ धाम भी कहा जाता है। 

टूटी झरना महादेव शिवलिंग
भगवान शिव का यह मंदिर रहस्य और कौतुहल से भरा है क्योंकि यहां शिवलिंग का जलाभिषेक स्वयं मां गंगा के करकमलों द्वारा होता है। झारखंड के रामगढ़ जिले में स्थित टूटी झरना मंदिर में स्थापित शिवलिंग का जलाभिषेक साल के बारह महीने और चौबीसों घंटे होता है।

भक्त बताते हैं कि इस मंदिर में पहुंचनेवाले फरियादियों की पुकार भगवान भोलेनाथ अवश्य सुनते हैं। स्थानीय लोग बताते हैं कि साल 1925 में अंग्रेजों ने यहां रेल लाइन बिछाने के लिए खुदाई शुरू की तो उन्हें जमीन के अंदर गुंबद जैसी चीज दिखी।

गहराई पर पहुंचने के बाद उन्हें पूरा शिवलिंग और शिवलिंग के ठीक ऊपर मां गंगा की मूर्ति मिली। गंगा मईया की इसी मूर्ति की हथेली पर से गुजरते हुए जल आज भी शिवलिंग का अभिषेक करता है। 

मोक्षदायिनी उज्जैन के महाकालेश्वर

महाकालेश्वर 

भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्यप्रदेश राज्य के उज्जैन नगर में है। इस नगरी का पौराणिक और धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्व जगजाहिर है। ऐसी मान्यता है कि महाकाल जहां स्थित हैं वह धरती का नाभि स्थल है या पृथ्वी का केंद्र है। पुराणों, महाभारत और महाकवि कालिदास की रचनाओं में भी इस मंदिर का अत्यंत सुंदर उल्लेख मिलता है। 

प्राचीन नगर उज्जैन मालवा क्षेत्र में क्षिप्रा नदी के पूर्वी किनारे पर स्थित है। प्राचीन समय में इसे उज्जयिनी कहा जाता था। उज्जैन हिन्दू धर्म की सात पवित्र तथा मोक्षदायिनी नगरियों में से एक है। अन्य छह मोक्षदायिनी नगरियां हैं – हरिद्वार, अयोध्या, वाराणसी, मथुरा, द्वारका और कांचीपुरम। यहाँ हिन्दुओं का पवित्र उत्सव कुम्भ मेला हर 12 वर्षों में एक बार लगता है। 

ज्योतिर्लिंग ओम्कारेश्व महादेव 

मध्य प्रदेश के इंदौर से 77 किलोमीटर दूर स्थित है ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग। ओम्कारेश्वर का शिवमंदिर भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में एक माना जाता है। भगवान शिव यहां ओमकार स्वरूप में विद्यमान हैं और मां नर्मदा स्वयं ॐ के आकार में बहती है।

यह एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है जो नर्मदा नदी के मध्य ओमकार पर्वत पर स्थित है। मान्यता है कि भगवान शिव प्रतिदिन तीनों लोकों में भ्रमण के बाद यहां विश्राम करते हैं। इसलिए हर रोज यहां भगवान शिव की शयन आरती की जाती है और श्रद्धालु खासतौर पर शयन दर्शन के लिए यहां आते हैं।

हिंदुओं में सभी तीर्थों के दर्शन के बाद ओम्कारेश्वर के दर्शन और पूजा का विशेष महत्व बताया गया है। तीर्थ यात्री सभी तीर्थों का जल लाकर यहां ओम्कारेश्वर महादेव का अभिषेक करते हैं, तभी सारे तीर्थ पूर्ण माने जाते हैं। 

भोजेश्वर महादेव मंदिर
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग 32 किलोमीटर की दूरी पर स्थित भोजेश्वर मंदिर को उत्तर भारत का ‘सोमनाथ’ भी कहा जाता है। भगवान शिव के इस मंदिर में आज भी अधूरा शिवलिंग स्थापित है।

भोजेश्वर या भोजपुर नाम से मशहूर इस मंदिर की स्थापना परमार वंश के राजा भोज ने करवाई थी। यह मंदिर वास्तुकला का अद्भुत नमूना है। यह मंदिर बेहद विशाल है और इसके चबूतरे की लंबाई ही करीब 35 मीटर है। 

इस मंदिर की सबसे खास बात यहां स्थापित शिवलिंग है जिसका निर्माण एक ही पत्थर से हुआ है। दूसरी बात जो इस मंदिर को खास बनाती है वह है इसका अधूरापन। मान्यताओं के मुताबिक इस मंदिर का निर्माण एक ही दिन में पूरा होना था।

लेकिन मंदिर निर्माण कार्य पूरा होने से पहले सूर्योदय हो गया और निर्माण कार्य बंद कर दिया गया। इसलिए यह मंदिर आज भी अधूरा ही है।
 

जटाशंकर महादेव मंदिर
पंचमढ़ी स्थित जटाशंकर महादेव मंदिर वह जगह है जहां भस्मासुर से बचने के लिए भगवान भोलेनाथ ने शरण ली थी। पौराणिक कथाओं के मुताबिक भोलेनाथ ने भस्मासुर की कड़ी तपस्या से प्रसन्न होकर उसे मनचाहा वरदान दे दिया।

भस्मासुर ने वरदान मांग लिया कि वह जिसके सिर पर हाथ रखे वह भस्म हो जाए। वरदान मिलते ही भस्मासुर ने वरदान की ताकत को आजमाने के लिए भोलेनाथ के ही पीछे पड़ गया। भस्मासुर से बचने के लिए महादेव ने जिन कंदराओं और गुफाओं में शरण ली वह स्थान पंचमढ़ी में हैं। इसलिए यहां महादेव के कई मंदिर हैं। 

मान्यता है कि पंचमढ़ी पांडवों की वजह से भी जानी जाती है। वनवास पूरा करने के बाद पांडवों ने एक वर्ष का अज्ञात यहां भी बिताया था। उनकी पांच कुटिया या मढ़ी या गुफाएं थी जिसकी वजह से इस जगह का नाम पंचमढ़ी पड़ा। 

लक्ष्मणेश्वर मंदिर
लक्ष्मणेश्वर मंदिर को छत्तीसगढ़ का काशी भी कहा जाता है। मान्यता है कि रावण के संहार के बाद लक्ष्मण जी ने रामचंद्र जी से इस मंदिर की स्थापना करवाई थी। मंदिर के गर्भगृह में लक्ष्मण जी द्वारा स्थापित लक्ष्यलिंग मौजूद है। इस मंदिर को लखेश्वर महादेव भी कहा जाता है क्योंकि इसमें एक लाख लिंग मौजूद हैं।

इस मंदिर में एक पातालगामी लक्ष्य छिद्र है जिसमें जितना भी जल डाला जाए वह उसमें समाहित हो जाता है। इन छिद्रों में एक ऐसा छिद्र भी है जिसमें हमेशा जल भरा रहता है। इसे अक्षय कुंड कहते हैं। 

छत्तीसगढ़ में लखेश्वर महादेव मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं और उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। कहा जाता है कि भगवान राम ने इस जगह खर और दूषण नाम के राक्षसों का संहार किया था इसलिए यह जगह खरौद ने नाम से मशहूर हुई। 

भूतेश्वर महादेव
छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में स्थित भूतेश्वर महादेव छत्तीसगढ़ में मौजूद सबसे बड़ा शिवलिंग माना जाता है। इस शिवलिंग की सबसे खास बात यह है कि हर साल इसका आकार बढ़ रहा है। स्थानीय लोगों के मुताबिक पहले यह शिवलिंग छोटा था।

धीरे-धीरे इसकी ऊंचाई एवं गोलाई बढ़ती जा रही है। श्रध्दालुओं का मानना है कि शिवलिंग हर साल करीब 10 इंच बढ़ता है। शिवलिंग जमीन से लगभग 85 फीट ऊंचा और 105 फीट गोलाकार है।  

गरियाबंद जिला मुख्यालय से 3 किमी दूर मरौदा गांव की पहाड़ियों पर स्थित इस मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। यह लोगों की आस्था का केंद्र है और इसे काशी की तरह पवित्र और पावन माना जाता है। 

 
 
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