आस्था की लगाई डूबकी, खूब उड़ाएं पतंग

स्नान, दान-पुण्य कर मनाया मकर संक्रांति, खुशहाली की प्रार्थना की गयी, भक्काटे की शोर के बीच खूब उड़ीं पतंगें, लाखों श्रद्धालुओं ने गंगा में डुबकी लगा कर उत्तरायण सूर्य को किया नमस्कार, भोर से ही गंगा घाटों पर आस्था हिलोरें लेती नजर आई

सुरेश गांधी

वाराणसी : शहर से लेकर देहात तक में शुक्रवार को मकर संक्रांति का पर्व धूमधाम से मनाया गया। हर हर बम बम और जय गंगा मईया के साथ ही बधइया बजने और मंदिर में घंट घड़ियालों के शोर के बीच स्नान का दौर शुरू हुआ तो दिन चढ़ने तक लोगों की आस्था की कतार टूटती कहीं से नजर नहीं आई। दोपहर तक मकर संक्रांति की पुण्य की डुबकी लाखों लोगों ने लगाई उत्तरायण सूर्य को प्रणाम किया। आस्था की कतार मंदिरों में भी बनी रही। इस मौके पर लोगों ने जरुरतमंदों को दान पुण्य किए। साथ ही पकवानों का जमकर लुत्फ उठाया। वही पतंगबाजी लोगों के सिर चढ़कर बोली। वो काटा… वो काटा… हुर्रेर्रेर्रे की आवाजें दिनभर गूंजती रहीं। मानों समूचा शहर छतों पर जा चढ़ा हो। दिनभर डीजे और ढोल की धुनों के बीच शहर भर में पतंगबाजी की धूम रहीं। युवक-युवतियों के बीच पेंच लड़ाने का क्रेज देखते ही बना। हर पतंग के कटने पर सिर्फ एक ही आवाज गूंजी भाक्काटा…।

संक्रांति के स्नानार्थियों की संख्या वैसे तो सभी घाटों पर रही मगर सड़क मार्ग से सीधे जुड़े दशाश्वमेध घाट, प्रयाग घाट, शीतलाघाट, आरपी घाट, गायघाट, मीरघाट, सिंधिया घाट, अस्सी घाट व पंचनद तीर्थ के रूप में मान्य पंचगंगा घाट पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु डुबकी लगाने पहुंचे। पंचगंगा घाट के ऊपर प्रतिष्ठित बिंदु माधव मंदिर में भी श्रद्धालु पहुंचे। मकर संक्रांति के साथ ही प्रकृति ने भी भरपूर अंगड़ाई ली। नए मौसम, नई फसल, नए पत्र-पुष्पों और नई ताजगी का उपहार प्रभु के चरणों में अर्पित कर आस्थावानों ने अपनी कृतज्ञता व्यक्त की। दूर-दराज से मोक्षदायिनी काशी में पहुंचे श्रद्धालुओं ने भी रस्म के अनुसार गंगा स्नान के बाद बाबा विश्वनाथ के दरबार में हाजिरी लगाई। मान्यता है कि बाबा भोलेनाथ की नगरी में मकर संक्रांति के पावन पर्व पर गंगा स्नान कर तिल-गुड़ दान करने से सुख व शांति संग अक्षय फल की प्राप्ति होती है। भारी भीड़ के चलते काशी विश्वनाथ मंदिर के प्रवेश द्वार पर लंबी लाइन लगी और दिन भर गलिया जाम रहीं। मंडियां और बाजार हमेशा की तरह सामग्रियों से पटे रहे मगर आज रुतबा किसी का था तो तिल-गुड़ से निर्मित लड्डू, तिलवा, तिलकुट सहित अन्य आइटम का।

दशाश्वमेध, गोदौलिया, चेतगंज, जगतगंज, विश्वेश्वरगंज, सोनारपुरा, लंका, सुंदरपुर, वरुणापार क्षेत्र मेंभोजूबीर, अर्दली बाजार, पांडेयपुर, पहड़िया में तो तिल-गुड़, लइया, पट्टी, चूड़ा की अस्थाई दुकानें पग-पग पर दिखीं। आसमान में सूर्य की लालिमा फूटने के साथ मकर संक्रांति पर घरों में चहल पहल शुरू हो गई थी। स्नान करने के बाद बच्चे अपनी-अपनी पतंगों के साथ घर के छतों पर डट गए तो कई मैदानों में दोस्तों के साथ मिलकर पतंगबाजी के हुड़दंग में मशगूल रहे। धूप खिलने के साथ पतंगबाजी का रंग और परवान और चढ़ा। हर ओर रंग-बिरंगी पतंगे तितलियों की भांति आसमान में थिरकती दिखाई दीं। सुबह आठ बजे से छतों पर डीजे की धुन पर वह काटा वह मारा की गूंज पूरे दिन तक जारी रही। कई जगहों पर युवा डीजे की धुन पर थिरकते नजर आए। छत पर पतंग उड़ा रहे युवाओं ने खूब सेल्फियां ली और उसे सोशल मीडिया पर दोस्तों के साथ शेयर करते रहे। मकर संक्रांति का उल्लास, उमंग और उत्साह घरों और मैदानों तक ही सीमित नहीं था, युवाओं की टोलियों ने गंगा किनारे भी इकट्ठा होकर पतंगबाजी का लुत्फ उठाया। गंगा किनारे पतंगबाज कभी-कभी पतंग को नदी के सतह तक ले आते थे और अचानक फिर से मंझे पर झटका देते ही आसमान की ओर उड़ान भर लेती थी।

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