धन के पीछे भागने में कोई बुराई नहीं बस उसे हासिल कर अपने कब्जे में न रखें: देवदत्त पट्टनायक
हर कोई धनवान बनना चाहता है यानी धन की देवी लक्ष्मी को अपने वश में करना चाहता है। सुख-समृद्धि के सागर में डूब जाना चाहता है, लेकिन खुद को धन-धान्य से परिपूर्ण बनाने और स्वर्ग का आनंद लेने के चक्कर में कहीं आप दूसरों को नर्क में तो नहीं धकेल रहे हैं? धनी बनने के की महत्वाकांक्षा कहीं आपको दूसरों की जरूरतों के प्रति असंवेदनशील तो नहीं बना रही है?
अगर आप इन प्रश्नों से जूझ रहे हैं और आपके मन में इसको लेकर द्वंद्वं चल रहा है तो आपके लिए मशहूर लेखक और भारत के प्राचीन ग्रंथों के अध्येता देवदत्त पट्टनायक अपनी पुस्तक के साथ हाजिर हैं। उनकी इस पुस्तक का नाम है, `How To Become Rich` यानी धनवान कैसे बनें।
शायद आप भी उन लोगों में से हैं जिनके मन में यह कूट-कूटकर भर दिया गया है कि धन की आकांक्षा करना गलत है। कहीं आप भी इस भ्रम का शिकार तो नहीं हैं कि लक्ष्मी यानी धन की देवी के पीछे भागने से सरस्वती यानी विद्या की देवी नाराज हो जाती हैं।
अगर ऐसा है तो आपके लिए इस पुस्तक को पढ़ना निहायत जरूरी है। यकीन मानिए, इसे पढ़ने के बाद आप लक्ष्मी को लेकर बनी-बनाई गलत धारणाओं से मुक्त हो जाएंगे और उद्योगपतियों को शक की नजर से देखना बंद कर देंगे।
दरअसल, सैकड़ों सालों के विदेशी शासन खासकर अंग्रेजों की गुलामी ने हमें वेद और पुराण जैसे अपने प्राचीन धर्मग्रंथों से दूर कर दिया।
हालांकि देश को स्वतंत्र हुए 75 साल होने वाले हैं लेकिन अब भी हममें से बहुतों के अंदर अंग्रेजों की पिलाई घुट्टी भरी हुई है और हम अपनी आंखों पर पश्चिमी सभ्यता और संस्कृति की काली पट्टी बांधे घूम रहे हैं।
यही वजह है कि प्राचीन ग्रंथों को पढ़ना और उनसे अपने जीवन को संचालित करना कट्टरता, मूढ़ता और पिछड़ेपन की निशानी बन गया है।
इसमें कोई दोराय नहीं है कि समय के साथ भारतीय चिंतन परंपरा में कुछ गलत तत्वों का समावेश हो गया है, लेकिन हमारे अंदर आई इस विकृति को ही संस्कृति मान लेने की भूल न करें।
इस लिहाज से देखा जाए तो देवदत्त पट्टनायक की यह पुस्तक हमारी आंखों पर बंधी पश्चिमी सभ्यता की काली पट्टी को खोलने का काम करती है।
लेखक ने लक्ष्मी, महादेव, इंद्र, विष्णु, बृहस्पति, सत्यभामा, कुबेर, गणेश और हनुमान जैसे भारतीय परंपरा के मिथकीय चरित्रों के जरिए यह साबित किया है कि धन के पीछे भागने में कोई बुराई नहीं है।
बस, हमें इतना ध्यान रखना है कि हम उसे हासिल कर अपने कब्जे में न रखें क्योंकि लक्ष्मी चंचला होती है यानी वह एक जगह स्थिर नहीं रहती है। अगर हम उसे एक जगह रोक कर रखेंगे तो उससे फायदे के बजाय नुकसान ज्यादा होगा।
लक्ष्मी का सही अर्थ जानने के लिए हमें शब्दार्थ के बजाय भावार्थ पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। लक्ष्मी शब्द की उत्पत्ति लक्ष्य से हुई है।
हर व्यक्ति के जीवन में कोई न कोई लक्ष्य होता है। इस धरती पर पेड़-पौधे से लेकर पशु-पक्षी और इंसान, सभी का पहला लक्ष्य होता है अपनी भूख मिटाना। यह भूख ही हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है। नए बाजारों और नई वस्तुओं एवं सेवाओं की खोज करने की प्रेरणा देती है।
लगभग सौ पृष्ठों की इस पुस्तक में 12 अध्याय हैं और हर अध्याय में मिथकीय चरित्रों के जरिए धन कमाने, उसे सुरक्षित रखने से लेकर उसमें निरंतर बढ़ोतरी करने के सूत्र दिए गए हैं। आप भी इस पुस्तक को पढ़िए और अपने साथ अपने आसपास के लोगों का जीवन सुखमय बनाइए।