कर्नाटक में अभी खत्म नहीं हुई हैं चुनौतियां…!

कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा की सरकार गिरने के बाद भी जहां एक ओर कांग्रेस-जद एस की राह की चुनौतियां खत्म नहीं हुई हैं, वहीं दूसरी ओर सत्ता पाने के लिए हर तरह का प्रयास करने वाली बीजेपी के सामने अपनी छवि सुधारने की चुनौती है। कांग्रेस-जद एस पर सबसे पहली जिम्मेदारी विधानसभा के अंदर अपना बहुमत सिद्ध करने की है। फिर मुख्यमंत्री कुमारस्वामी के सामने दूसरी चुनौती अपना मंत्रिमंडल बनाने की है। यह ज्यादा मुश्किल काम है क्योंकि इसमें जाति, क्षेत्र, धर्म के समीकरणों के साथ बड़े नेताओं के अहम को भी संतुष्ट करना होगा।कर्नाटक में अभी खत्म नहीं हुई हैं चुनौतियां...!

इस गठबंधन में बहुत से ऐसे विधायक हैं जिनके क्षेत्र में बीजेपी नहीं बल्कि गठबंधन का सहयोगी दल ही मुख्य विपक्षी दल था। उन्हें अपने चुनाव क्षेत्र में दोनों दलों के कार्यकर्ताओं में समन्वय क़ायम करना हवा में बंधी रस्सी पर चलने से कम नहीं होगा। मसलन जद एस के जीटी देवगौड़ा ने चामुंडेश्वरी विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस के सिद्धारमैया को त्रिकोणीय मुकाबला होने के बावजूद 36000 से अधिक वोटों से हराया।

जीटी देवगौड़ा तो भले ही सिद्दारमैया को एक बार माफ़ कर दें लेकिन क्या जद एस अध्यक्ष एचडी देवगौडा अपना ‘अपमान’ भूल पाएंगे। चुनाव के दौरान कर्नाटक से प्रधानमंत्री बनने वाले एकमात्र राजनेता देवगौडा ने कई बार जिक्त्रस् किया कि उनके द्वारा राजनीति में लाए गए सिद्धारमैया ने सभी सरकारी दफ़्तरों से उनकी फोटो हटाने के आदेश दे दिए थे।

इसी तरह कांग्रेस-जद एस विधायकों को चार दिनों तक सुरक्षित रखने वाले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डीके शिवकुमार वोक्कालिगा समुदाय के एक बड़े नेता हैं। उनकी वोक्कालिंगा समुदाय के सबसे बड़े नेता तो देवगौडा और कुमारस्वामी के साथ कभी नहीं पटी। चुनाव के दौरान भी इन दोनों ने ख़ुद पर किए जा रहे सिद्धारमैया के हमलों को वोक्कालिंगा समुदाय का अपमान क़रार देते हुए इसका बदला कांग्रेस के हरा कर लेने की अपील की थी।

भितरघात से निपटना

कांग्रेस कई सीटें भितरघात की वजह से हारी। सिद्धारमैया, धरम सिंह, मल्लिकार्जुन खड़गे और एसएम कृष्णा जैसे बड़े नेताओं की आपस में नहीं बनती है। उनके अपने अपने गुट हैं। कई क्षेत्रों में दूसरे गुट को हराने में बीजेपी या जद एस से ज्यादा कांग्रेस के गुटों की ही भूमिका थी। क्या वे सरकार आराम से चलने देंगे?

तीन लोकसभा, दो विधानसभा उपचुनाव

विधानसभा चुनाव जीतने वाले तीन सांसदों – बीजेपी के बीएस येदियुरप्पा, श्रीरामुलु और जद एस के पुत्तुराजू – के लोकसभा से इस्तीफा देने से तीन लोकसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं। वहीं, दो सीटों से जीते कुमारस्वामी द्वारा एक विधानसभा सीट से इस्तीफा देने और एक उम्मीदवार की मृत्यु होने की वजह से एक अन्य सीट पर चुनाव नहीं हो पाया था। यानी जल्द ही दे विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होंगे। इनमें प्रदर्शन से मालूम चलेगा कि हाल की घटनाओं की जनता पर क्या प्रभाव पड़ा है।

बीजेपी की छवि का सवाल

मणिपुर, गोवा हो या बिहार और मेघालय, बीजेपी ने जोड़तोड़ के जरिए कई राज्यों में सरकार बनाई लेकिन उस पर खरीद-फरोख्त करने के आरोप कभी नहीं लगे। लेकिन कर्नाटक में न सिर्फ आरोप लगे बल्कि पांच ऑडियो रिकॉर्डिंग भी पेश की जा चुकी हैं जिनमें बीजेपी के वरिष्ठ नेता कांग्रेस और जद एस के विधायकों के पाला बदलने के लिये कई तरह के लालच दे रहे हैं। 

कांग्रेस नेताओं का कहना है कि उनके पास ऐसी दर्जन भर रिकॉर्डिंग और हैं। इसी तरह दो कांग्रेसी विधायकों ने आरोप लगाया कि बीजेपी ने उनकी अपहरण करा लिया था। इन आरोपों में सच्चाई है या नहीं, यह जांच का विषय है, लेकिन इनसे बीजेपी की शुचिता वाली छवि पर दाग तो लगा ही है। पार्टी को इससे निपटने की चुनौती है। 

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