तीन राज्यों की सियासी बिसात में भाजपा ने बनाई शुरुआती बढ़त, कांग्रेस को लगा बड़ा झटका

नई दिल्लीः कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी जब राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी और खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरने के लिए नए मुहावरे गढ़ रहे थे, उसी समय उनकी पार्टी के लिए मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ से बुरी खबर आई. खबर यह है कि मध्य प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी ने अपने प्रत्याशियों की सूची जारी कर दी और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस से बगावत कर जनता कांग्रेस बनाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी से बसपा ने गठबंधन कर लिया.

यानी तीन राज्यों में भाजपा विरोधी ताकतों और खासकर बसपा से गठबंधन करने की कांग्रेस की उम्मीदों को फिलहाल झटका लग चुका है. कांग्रेस लगातार दावा कर रही थी कि बसपा के साथ उसका सैद्धांतिक समझौता हो चुका है और इसकी बारीकियों पर विचार चल रहा है. मध्य प्रदेश में कांग्रेस के प्रभारी दीपक बावरिया और वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ कई बार इस बात को दुहरा चुके थे.

लेकिन जिस तरह से बसपा ने एक झटके में अपना अलग रास्ता और खासकर कांग्रेस की जमीन हिलाने वाला रास्ता पकड़ा है,  उससे लगता है कि कांग्रेस एक बार फिर बातचीत की मेज पर ढेर हो गई.

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उधर, छत्तीसगढ़ में भले ही भाजपा तीन बार से सत्ता में हो, लेकिन यहां कांग्रेस और भाजपा के बीच वोटों का अंतर बहुत कम रहा है. ऐसे में विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री रहे अजीत जोगी का कांग्रेस से अलग होकर अपनी पार्टी बनाना, कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका था. और अब बसपा ने भी अजीत जोगी की पार्टी से गठबंधन की घोषणा की है. जाहिर है आदिवासी बहुल प्रदेश की यह नई जुगलबंदी कांग्रेस की ही उलझन बढ़ाएगी.

कांग्रेस की नाक के नीचे दो प्रदेशों में हुआ यह घटनाक्रम बता रहा है कि राहुल भले ही पूरे जोश से घूम रहे हों और अपनी पार्टी को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हों, लेकिन चुनावी कूटनीति में उनकी पार्टी अभी से नाकाम होने लगी है.

इन नए घटनाक्रम के बाद दलितों का संभावित वोट कांग्रेस के हाथ से फिसलता दिख रहा है. बहुत संभव है कि आगामी लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी यही रुख उत्तर प्रदेश में भी दिखाए. ऐसा होने पर कांग्रेस की विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश कमजोर पड़ सकती है.

एक तरफ कांग्रेस दलितों को अपनी तरफ लाने की रणनीति में नाकाम दिख रही है, तो दूसरी तरफ मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने हाल ही में खुद से नाराज हुए सवर्ण वोटरों को पटाने की पहल शुरू कर दी है. शिवराज सिंह चौहान ने घोषणा की है कि एससी एसटी उत्पीड़न निरोधक कानून में गिरफ्तारी तब तक नहीं होगी, जब तक कि पुलिस मामले की जांच न कर ले. कानून की इसी प्रक्रिया को लेकर मध्य प्रदेश में पिछले दिनों सवर्णों ने प्रदर्शन किया था.

बहुत संभव है अगले चरण में चौहान सपाक्स जैसी सवर्ण पार्टियों के साथ भी किसी तरह की डील कर लें. इस तरह बिसात बिछने से पहले ही भाजपा कांग्रेस के मोहरों को अपनी ओर मिला सकती है. और उस संभावित व्यूह को भंग कर सकती है, जो अभी सिर्फ कांग्रेस की कल्पना में ही है.

ऐसे में राहुल गांधी को अपनी रणनीति पर विचार करना चाहिए कि एक तरफ वे मोदी पर शब्दबाण फेंक रहे हैं, तो दूसरी तरफ पीएम मोदी की पार्टी उनकी जमीन खिसकाती जा रही है. भाजपा जब पन्ना प्रमुख और हर बूथ पर एक मोबाइल से प्रबंधन के स्तर पर पहुंच गई है, तब कांग्रेस पूरे प्रदेश में गठबंधन की शक्ल ही तय नहीं कर पा रही है.

अगर कांग्रेस को इस लड़ाई में रहना है तो उसे कुछ अप्रत्याशित करना होगा. क्योंकि प्रत्याशित चीजों की काट जो भाजपा के पास पहले से ही है.

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