हरियाणा के आदमपुर में क्षेत्रीय दलों की हार से भाजपा और कांग्रेस खुश..

 हरियाणा के आदमपुर में क्षेत्रीय दलों की हार से भाजपा और कांग्रेस खुश हैं। कांग्रेस व भाजपा के लिए क्षेत्रीय दल राजनीतिक कांटा बन गए थे। इसके साथ ही आदमपुर उपचुनाव में क्षेत्रीय दलों के लिए बड़ा संकेत दिया है।

 राष्ट्रीय और प्रदेश स्तरीय मंचों पर क्षेत्रीय दलों का विरोध कर रही भाजपा व कांग्रेस के लिए आदमपुर उपचुनाव के नतीजे बेहद उत्साहित करने वाले हैं। भाजपा इसलिए खुश है, क्योंकि उसने पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल के परिवार को पूरी तरह से अपने रंग में रंग लिया और कांग्रेस को तरीके से पटखनी दी। कांग्रेस इसलिए उत्साहित है, क्योंकि भजनलाल के परिवार की जीत के बावजूद उसकी जीत का अंतर बहुत अधिक नहीं है। भाजपा व कांग्रेस दोनों इसलिए भी खुश हैं, क्योंकि आदमपुर उपचुनाव में क्षेत्रीय दलों के प्रति लोगों ने खास रुचि नहीं दिखाई। इसका मतलब साफ है कि 2024 के चुनाव में मुख्य मुकाबला क्षेत्रीय दलों की बजाय राष्ट्रीय दलों के बीच ही रहने वाला है।

दोनों राजनीतिक पार्टियां क्षेत्रीय दलों की बजाय राष्ट्रीय दलों को महत्व देने की पक्षधर

कांग्रेस और भाजपा दोनों ही क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियों को न केवल विकास में अवरोधक मानते हैं, बल्कि उन्हें ऐसी राजनीति के जन्मदाता की संज्ञा भी देते हैं, जिनका कोई भविष्य नहीं है। मतदाता ऐसे क्षेत्रीय दलों से सिर्फ ठगे जाते रहे हैं। प्रदेश में इनेलो, जजपा और आम आदमी पार्टी की गिनती क्षेत्रीय दलों में होती है। दिल्ली व पंजाब के बाद गोवा में आम आदमी पार्टी को क्षेत्रीय (राज्य) दल की मान्यता मिली है।

क्षेत्रीय दलों को देश के विकास में अवरोधक और सौदेबाज मानते हैं भाजपा-कांग्रेस के दिग्गज

जजपा ने हालांकि हरियाणा से बाहर दिल्ली, राजस्थान, पंजाब और गुजरात में अपना जनाधार बढ़ाने की कोशिश की है, लेकिन अभी उसे क्षेत्रीय पार्टी का लेबल हटाने में काफी इंतजार करना पड़ सकता है। इनेलो प्रदेश में लंबे समय से राजनीति कर रहा है। उसने दिल्ली, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में अपना जनाधार बढ़ाया, लेकिन पार्टी की टूट के बाद वह अभी तक अपने पांव पर दोबारा खड़ी नहीं हो पाई है।

हरियाणा में जजपा हालांकि भाजपा के साथ सरकार में साझीदार है, लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल भी नहीं है कि वह राष्ट्रीय पार्टी के समकक्ष पहुंच गई है। भाजपा के टिकट पर आदमपुर का उपचुनाव जीतने वाले भव्य बिश्नोई के दादा स्व. भजनलाल और पिता कुलदीप बिश्नोई ने भी हरियाणा जनहित कांग्रेस के नाम से क्षेत्रीय पार्टी बनाई थी, लेकिन वह ज्यादा दिन अस्तित्व में नहीं रह सकी।

गोपाल कांडा की हरियाणा लोकहित पार्टी का अस्तित्‍व ज्‍यादा नहीं रहा

इसी तरह, पूर्व मंत्री गोपाल कांडा की हरियाणा लोकहित पार्टी का अस्तित्व भी ज्यादा नहीं बना रह सका, क्योंकि ऐलनाबाद एक उपचुनाव में अपने भाई गोबिंद कांडा को भाजपा का उम्मीदवार बनाने के लिए गोपाल कांडा ने हलोपा का विलय भाजपा में कर दिया था। हालांकि गोपाल कांडा अभी भी हलोपा के संचालन का दावा कर रहे हैं।

इसी तरह, पूर्व सांसद राजकुमार सैनी की लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी का अस्तित्व न के बराबर है, जबकि पूर्व केंद्रीय मंत्री विनोद शर्मा की जनचेतना पार्टी के अब कोई मायने नहीं रह गए, जब उनके बेटे कार्तिकेय शर्मा को भाजपा के आशीर्वाद से राज्यसभा सदस्य बनाया जा चुका है।

2024 में मुख्य मुकाबला भाजपा व कांग्रेस में रहेगा

भाजपा व कांग्रेस नेताओं का मानना है कि क्षेत्रीय दलों के चुनाव लड़ने की स्थिति में जो विधायक चुनकर आते हैं, उनके द्वारा सरकार में शामिल होने अथवा सरकार में तोड़फोड़ के लिए मोल भाव करने की संभावना अधिक बढ़ जाती है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सरकार में जब कुलदीप बिश्नोई की हरियाणा जनहित कांग्रेस के टिकट पर चुनकर आए पांच विधायकों की बात नहीं बनी तो हुड्डा ने इन विधायकों को तोड़ लिया था।

प्रदेश की राजनीति में ऐसा एक बार नहीं, बल्कि कई बार हो चुका है। खुद भजनलाल, देवीलाल और बंसीलाल के साथ ओमप्रकाश चौटाला व भूपेंद्र सिंह हुड्डा जोड़तोड़ के इस खेल के माहिर राजनेता माने जाते हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि 2024 के चुनाव में क्षेत्रीय दलों की बजाय मुख्य मुकाबला भाजपा व कांग्रेस के बीच रहने वाला है।

राष्ट्रीय राजनीतिक दल के रूप में मान्यता की शर्तें

  • – किसी राजनीतिक दल को राष्ट्रीय दल के रूप में तब मान्यता दी जाएगी, जब वह निम्नलिखित शर्तों में से किसी एक को पूरा करेगा।
  • – लोकसभा चुनाव में कुल लोकसभा सीटों की दो प्रतिशत सीटों पर जीत हासिल हो तथा यह सीटें कम से कम तीन अलग-अलग राज्यों से हों।
  • – लोकसभा या राज्यों के विधानसभा चुनावों में चार अलग-अलग राज्यों से कुल वैध मतों के छह प्रतिशत मत प्राप्त करें तथा इसके अतिरिक्त चार लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज करें।
  • – यदि कोई दल चार या इससे अधिक राज्यों में राज्य स्तरीय दल के रूप में मान्यता प्राप्त करे।
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