बिहार: गया बार एसोसिएशन के चुनाव के पूर्व निर्वाचन पदाधिकारी के चयन पर हंगामा
निवर्तमान कमेटी ने भीम बाबू को निर्वाचन पदाधिकारी चुन लिए जाने की बात बताई। जबकि रतन सिंह के समर्थक अधिवक्ताओं ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि भीम बाबू को जिस कमेटी ने निर्वाची पदाधिकारी घोषित किया है वो कमेटी ही अमान्य व गैरकानूनी है।
गया बार एसोसिएशन के चुनाव की घोषणा कर दी गई है। इस चुनाव को निष्पक्ष तरीके से संचालन के लिए शुक्रवार को जीबीए की एक बैठक एसोसिएशन के सेंट्रल हॉल में हुई। बैठक में निर्वाचन पदाधिकारी के चयन को लेकर अधिवक्ताओं ने दो अधिवक्ताओं के नाम का प्रस्ताव रखा। जिसमें एक भीम बाबू और दूसरा रतन कुमार सिंह का नाम आया। इसके बाद एसोसिएशन के पिछले आठ सालों के आय-व्यय का ब्यौरा मांगा गया।
निवर्तमान कमेटी की तरफ से इसका ब्यौरा प्रस्तुत किया गया। जिसे अधिवक्ताओं के एक गुट ने स्वीकृति प्रदान कर दी, जबकि दूसरे गुट के अधिवक्ताओं ने इसे अस्वीकार करते हुए कथित लूट की संज्ञा देते हुए हंगामा शुरू करने लगे। इस बीच आय-व्यय के ब्यौरे को निवर्तमान कमेटी (जिसे विरोधी गुट अमान्य कमेटी मान रहे हैं) ने पारित कर दिया। इसके पश्चात निष्पक्ष और लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव को संचालित करने के लिए एक निर्वाचन पदाधिकारी के चयन के लिए वरीय अधिवक्ता भीम बाबू और रतन सिंह के नाम का प्रस्ताव रखा गया।
निवर्तमान कमेटी के समर्थक अधिवक्ताओं ने अधिवक्ता भीम बाबू को निर्वाचन पदाधिकारी के नाम को ध्वनिमत से पारित कर दिया। इस पर रतन सिंह के समर्थक अधिवक्ताओं ने इनके निर्वाचन पदाधिकारी बनाने को लेकर नारेबाजी शुरू कर दी। यहां तक कि माइक छीनने का आरोप लगाते हुए इसे अलोकतांत्रिक प्रक्रिया अपनाने की बात होने लगी।
निवर्तमान कमेटी ने भीम बाबू को निर्वाचन पदाधिकारी चुन लिए जाने की बात बताई। जबकि रतन सिंह के समर्थक अधिवक्ताओं ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि भीम बाबू को जिस कमेटी ने निर्वाची पदाधिकारी घोषित किया है वो कमेटी ही अमान्य व गैरकानूनी है।
बता दें कि निवर्तमान कमेटी की ओर से कोई प्रेस विज्ञप्ति जारी नहीं किया गया है। गया बार एसोसिएशन के नाम से बने व्हाट्सएप ग्रुप पर भीम बाबू के निर्वाचन पदाधिकारी के चुन लिए जाने की बात कही गई है, लेकिन अधिकृत रूप से किसी तरह के प्रेस विज्ञप्ति जारी नहीं किया गया है। वहीं रतन सिंह अधिवक्ता को निर्वाचन पदाधिकारी बनाए जाने के समर्थन में करीब पांच दर्जन से अधिक अधिवक्ताओं ने संयुक्त हस्ताक्षर करते हुए भीम बाबू को निर्वाचन पदाधिकारी बनाए जाने का विरोध किया है।