नोटबंदी से पड़ा था 6 माह तक असर, RBI बन गया था रिवर्स बैंक ऑफ इंडिया
नोटबंदी से नए साल पर सबसे पहले देश भर में स्वागत के लिए होने वाली पार्टियों पर असर पड़ा था। तब बहुत ज्यादा जोश के साथ नए साल का स्वागत नहीं हुआ था। इसके अलावा कैश की उपलब्धता भी पूरे देश में ठीक नहीं हो पाई थी।
पुराने नोट जमा करने की तारीख में किया था बदलाव
नोटबंदी के वक्त पीएम नरेंद्र मोदी ने घोषणा की थी बंद हुए 500 और 1000 के नोट को लोग 31 मार्च 2017 तक बदल सकते हैं। लेकिन दिसबंर खत्म होने से कुछ दिन पहले ही आरबीआई ने इसको घटाकर के 31 दिसंबर आखिरी तारीख कर दी थी।
इससे लोगों में काफी रोष व्याप्त हो गया था। इसके बाद आरबीआई ने कहा कि केवल एनआरआई या फिर उन लोगों को नोट जमा करवाने का मौका मिलेगा जो नोटबंदी के समय देश से बाहर थे।
लेकिन आरबीआई की चिट्ठी में कहा गया कि 500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों में 5000 रुपये से अधिक रकम जमा करने वालों को बताना होगा कि अभी तक वे ऐसा क्यों नहीं कर पाए।
जेटली ने कहा था कि कोई व्यक्ति एक बार में कितनी भी रकम जमा करा सकता है, उससे बैंक के अधिकारी पूछताछ नहीं करेंगे। वहीं रिजर्व बैंक का कहना था कि 30 दिसंबर तक एक खाते में 5000 रुपये से अधिक के पुराने नोट जमा करने वालों से बैंक अधिकारी पूछताछ करेंगे।
उससे दो बैंक अधिकारी सवाल करेंगे कि अभी तक वह इतनी रकम जमा क्यों नहीं करा पाए थे। यही नहीं, इस पूछताछ का रिकॉर्ड भी रखा जाएगा ताकि बाद की जांच प्रक्रिया में इसका इस्तेमाल किया जा सके।
पेट्रोल पंपों पर लगने लगा था सर्विस चार्ज
नोटबंदी के बाद शुरुआत में पेट्रोल पंप पर डेबिट-क्रेडिट कार्ड से पेट्रोल-डीजल भरवाने पर किसी प्रकार का कोई सर्विस चार्ज नहीं लगता था। इसकी अवधि 50 दिनों की थी। पेट्रोल पंपों ने डेबिट और क्रेडिट कार्ड से भुगतान स्वीकार न करने के अपने फैसले पर अमल 13 जनवरी तक टाल दिया था।
बैंकों की ओर से उपभोक्ताओं के बजाय पेट्रोल पंपों पर ट्रांजेक्शन चार्ज लगाने के विरोध में पेट्रोल पंप मालिकों ने यह फैसला किया था। गौरतलब है कि नोटबंदी के बाद कैशलेस लेनदेन को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने कार्ड से पेट्रोल-डीजल की खरीद पर उपभोक्ताओं से वसूला जाने वाला मर्चेंट डिस्काउंट रेट (एमडीआर) को खत्म कर दिया था।
लेकिन, नोटबंदी की 50 दिनों की अवधि खत्म होने के बाद बैंकों ने एमडीआर पेट्रोल पंप मालिकों पर लगाने का फैसला किया था। वैसे बैंकों के इस फैसले से सीधे उपभोक्ताओं पर कोई बोझ नहीं पड़ेगा।