वायुसेना दिवस: दुश्मनों पर काल बनकर टूटते हैं गरुड़ कमांडो, ये दस्ता है खास

गाजियाबाद । वायुसेना दिवस समारोह की सुरक्षा चौक-चौबंद रखने का जिम्मा पहली बार गरुड़ कमांडो के हाथों में रहेगा। किसी भी आपात स्थिति से निपटने और दुश्मनों को पलक झपकते ही मौत के मुंह में भेज देने वाले गरुड़ कमांडो का दस्ता वायुसेना दिवस समारोह में विशेष आकर्षण का केंद्र रहेगा।

गरुड़ कमांडो दुनिया के कुछ सबसे खतरनाक हथियारों से लैस होते हैं। इनके हथियारों में साइड आ‌र्म्स के तौर पर टावर टीएआर-21 असॉल्ट राइफल, ग्लॉक-17 और 19 पिस्टल, क्लोज क्वार्टर बैटल के लिए हेक्लर ऐंड कॉच एमपी-5 सब मशीनगन, एकेएम असाल्ट राइफल, एक तरह की एके-47 और शक्तिशाली कोल्ट एम-4 कार्बाइन शामिल हैं।

यह दस्ता बेहद खास है
टारगेट को ताइक्वांडो व विशेष हमला ट्रेनिंग से फेल कर देने की क्षमता वाला यह दस्ता बेहद खास है। देखने में सामान्य दिखने वाले सेना के इन जवानों का कोई तोड़ ही नहीं है। आसमान से देश की सरहदों की रखवाली का जिम्मा अपने कंधों पर उठाए भारतीय वायुसेना हर मुश्किल के आगे चट्टान बन खड़ी रहती है, तो उसमें वायुसेना के जांबाजों की स्पेशल गरुड़ फोर्स अब आतंकवाद से मुकाबले के लिए तैयार है।

सबसे लंबी होती है ट्रेनिंग
किसी भी भारतीय स्पेशल फोर्स की ट्रेनिंग का सबसे लंबा वक्त गरुड़ फोर्स में ही होता है। हर कमांडो को 72 हफ्ते के ट्रेनिंग कोर्स से होकर गुजरना पड़ता है। इसमें बेसिक ट्रेनिंग भी शामिल होती है। तीन सालों की ट्रेनिंग के बाद ही एक गरुड़ कमांडो पूरी तरह ऑपरेशनल कमांडो बनता है।

वर्तमान में लगभग 1080 जवान शामिल
2001 में जम्मू-कश्मीर में एयरबेस पर आतंकियों के हमले के बाद वायुसेना को एक विशेष फोर्स की जरूरत महसूस हुई थी। इसके बाद 2004 में एयरफोर्स ने अपने एयरबेस की सुरक्षा के लिए गरुड़ कमांडो फोर्स की स्थापना की। पठानकोट हमले के बाद हर एयरबेस की सुरक्षा के लिए गरुड़ कमांडो का इस्तेमाल किया जा रहा है। गरुड़ कमांडो फोर्स में वर्तमान में लगभग 1080 जवान शामिल हैं।

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