एक हकीकत ये भी, 36 जिला मुख्यालयों में नहीं खिल सका कमल

भाजपा ने भले ही 16 में से 14 नगर निगमों में जीत का झंडा फहराकर एक नजर में यह संदेश दे दिया हो कि लोकसभा चुनाव से शुरू हुआ उसका जीत का सफर बदस्तूर जारी है। पर, सभी नतीजों पर नजर डालें तो इसकी नींव में गहरे निहितार्थ छिपे दिख रहे हैं।
एक हकीकत ये भी, 36 जिला मुख्यालयों में नहीं खिल सका कमलइस पर भाजपा के रणनीतिकारों को आज नहीं तो कल सोचना ही होगा। प्रदेश के 75 जिलों में से 36 जिला मुख्यालयों पर भाजपा जीत नहीं पाई है। महोबा नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष पद के लिए लड़ी भाजपा प्रत्याशी की तो जमानत ही जब्त हो गई। कुछ और बड़े नेताओं के यहां पार्टी की जमानत जब्त हुई है।

जीत के जश्न में भले ही राजनीतिक विश्लेषकों की नजर अभी इन पर न गई हो पर, देर-सबेर जरूर जाएगी। तब यह सवाल जरूर उठेगा कि आठ महीने पहले विधानसभा चुनाव में 33 जिलों में भाजपा के अलावा किसी दूसरी पार्टी का खाता न खोलने वाली जनता ने कई जिला मुख्यालयों के निकायों में भाजपा को क्यों नहीं जीतने दिया?

अगर प्रदेश की सभी नगर पालिका परिषदों के परिणाम देखें तो 198 में 38 से ज्यादा स्थानों पर भाजपा उम्मीदवार जमानत नहीं बचा पाए। इनमें केंद्रीय मंत्री उमा भारती की संसदीय सीट झांसी भी है, जहां तीन स्थानों पर भाजपा के अध्यक्ष पद के उम्मीदवारों को जमानत गंवानी पड़ी। केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा के क्षेत्र गाजीपुर की जमनिया में भी भाजपा उम्मीदवार की जमानत जब्त हो गई।

मेनका गांधी के जिला मुख्यालय में भाजपा को मिली हार

केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी के जिला मुख्यालय की सीट तो पार्टी हारी ही, इसी जिले की बीसलपुर सीट पर जमानत भी न बच पाई। केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति, कृष्णा राज, प्रदेश की मंत्री अनुपमा जायसवाल व मुकुट बिहारी वर्मा के यहां भी पार्टी हारी है। यहां तक कि साक्षी महराज भी अपने जिला उन्नाव मुख्यालय की सीट नहीं बचा पाए। गोंडा से कीर्तिवर्धन सिंह, एटा से राजवीर सिंह, सीतापुर से राजेश वर्मा, इटावा से अशोक दोहरे सहित कई सांसदों के जिला मुख्यालय की सीटें भी भाजपा हार गई।

ये सवाल भी हैं गंभीर
आखिर क्या वजहें हैं कि इन नेताओं के घर कमल नहीं खिल सका? इस पर भी विचार करना होगा कि विधायकों, सांसदों के परिवारीजनों को टिकट न देने का एलान करने वाली भाजपा ने समझौता करते हुए जब इनके ही लोगों या घर वालों को टिकट दे दिया तो फिर वे कैसे हार गए।

उन स्थानों पर पार्टी की हार की वजह क्या बनी जहां पुराने कार्यकर्ताओं की दावेदारी की अनदेखी करके पार्टी नेताओं ने अपनी पसंद या विधायकों, सांसदों अथवा पार्टी के अन्य किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति के कहने पर दूसरों को चुनाव में उतारा था। शाहजहांपुर इसका सटीक उदाहरण है।

यह सीट जीतने के लिए भाजपा ने कांग्रेस नेता और केंद्र में मंत्री रहे जितिन प्रसाद के भाई और भाभी को पार्टी में शामिल किया लेकिन इसके  बावजूद भाजपा यह सीट न जीत सकी। पश्चिम के छह जिलों में सात सांसदों और 26 विधायकों के होते हुए भी 73 निकायों में 62 उसके हाथ से निकल गए। गोंडा व सीतापुर में पार्टी प्रत्याशियों की हार कैसे हो गई जहां आठ महीने पहले भाजपा के विधायक जीते थे?

कहीं कार्यकर्ताओं की नाराजगी तो नहीं

इन नतीजों के पीछे कहीं न कहीं कार्यकर्ताओं की नाराजगी भी एक वजह लग रही है। ऐसा भी लगता है कि नेताओं के दावों के बीच पार्टी की गुटबाजी ने ये परिणाम दिए हैं। बहराइच से दो-दो मंत्री होने के बावजूद वहां एक भी अध्यक्ष पद की सीट भाजपा को न मिलना सामान्य मामला नहीं है।

इसके पीछे या तो कार्यकर्ताओं या फिर इन मंत्रियों से जनता में पनप रही नाराजगी बड़ी वजह नजर आती है। यही नहीं, भाजपा संगठन और सरकार में कुछ बड़े नेताओं के अपने घर के वार्डों में भाजपा को पराजय का सामना करना पड़ा है। इससे भी यह संकेत मिलता है कि कार्यकर्ताओं की नाराजगी कहीं न कहीं इसकी वजह बनी।

इन जगहों पर मिली भाजपा को जीत

अमेठी, अंबेडकर नगर की अकबरपुर नगर पालिका परिषद,  अमरोहा,  गाजीपुर, चंदौली, जालौन, देवरिया, बदायूं, बुलंदशहर, बस्ती, मैनपुरी,  महराजगंज, मिर्जापुर, लखीमपुर खीरी, ललितपुर, श्रावस्ती,  संतकबीर नगर की खलीलाबाद, सुल्तानपुर, सिद्धार्थनगर, सोनभद्र राबर्ट्सगंज, हमीरपुर, हाथरस, हापुड़ और बराबंकी सहित 24 नगर पालिका परिषदों में भाजपा काबिज हुई है।

इन जिलों में निर्दलीयों का दबदबा
आजमगढ़, एटा, औरैया, कन्नौज, कुशीनगर, कासगंज, प्रतापगढ़, पीलीभीत, बलिया, बहराइच, बागपत, शामली, संभल, भदोही की गोपीगंज और महोबा नगर पालिका परिषद सहित कुल 16 जिला मुख्यालय पर अध्यक्ष पद पर निर्दलीय प्रत्याशी विजयी हुए हैं।

इन जगहों पर सपा का कब्जा
इटावा, उन्नाव, गोंडा, फतेहपुर, बांदा, बिजनौर, रामपुर, शाहजहांपुर, सीतापुर और हरदोई जिला मुख्यालय सहित कुल 11 जिलों में स्थित नगर पालिका परिषदों में अध्यक्ष पद पर सपा काबिज हुई है।

बसपा ने जीती ये सीटें

बसपा ने अलीगढ़ और मेरठ नगर निगम में मेयर पद जीता है। कानपुर देहात अकबरपुर, जौनपुर, फर्रुखाबाद, बलरामपुर, मऊ जिले की नगर पालिका परिषद व  कौशाम्बी मंझनपुर नगर पंचायत सहित 8 जिला मुख्यालय पर बसपा काबिज हुई है।

कांग्रेस को सिर्फ दो सीट
कांग्रेस मुजफ्फरनगर और रायबरेली मुख्यालय पर स्थित नगर पालिका परिषदों को जीतने में सफल रही है।

 
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