तापमान 1.5 डिग्री रखने का बजट तीन वर्ष में हो सकता है खत्म, मुश्किल होगा ग्लोबल वार्मिंग रोकना

वैज्ञानिकों के अंतरराष्ट्रीय समूह ने चेतावनी दी है कि अगर दुनिया आज के हिसाब से बेतहाशा कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ती रही तो ग्लोबल वार्मिंग रोकने के लिए तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस सीमा तक रखने का कार्बन बजट महज तीन साल में खत्म हो जाएगा। कार्बन बजट पृथ्वी यानी हमारे वातावरण में छोड़ी गई सीओ-2 की अधिकतम मात्रा है, ताकि तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस के सीमा में रहे। दुनिया देशों के लिए यह सीमा 2015 के पेरिस समझौते में तय की गई थी।
हालांकि, वैज्ञानिकों ने कहा, कार्बन बजट को पार करने का मतलब यह नहीं है कि 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा तुरंत पार हो जाएगी। इसका मतलब है, दुनिया जल्द इसे पार करने की राह पर है। अर्थ सिस्टम साइंस डाटा जर्नल में प्रकाशित नवीनतम वैश्विक जलवायु परिवर्तन के संकेतक अध्ययन में यह देखा गया कि अगर सीओ-2 उत्सर्जन का वर्तमान स्तर पर जारी रहा तो 2048 तक 2 डिग्री सेल्सियस का कार्बन बजट पार हो सकता है।
मानवीय गतिविधियों ने बढ़ाया तापमान
वैज्ञानिकों के मुताबिक, मानवीय गतिविधियों की वजह से एक दशक में हर साल लगभग 53 अरब टन कार्बन डाइऑक्साइड वायुमंडल में छोड़ी गई है। यह मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधन के जलने और वनों की कटाई सेे हुआ है। बीते 10 वर्षों में पृथ्वी का तापमान औद्योगिक युग की शुरुआत से पूर्व के मुकाबले 1.24 डिग्री से अधिक था।
क्या कहना है वैज्ञानिकों का
वैज्ञानिकों का कहना है कि इस गर्मी में 1.22 डिग्री सेल्सियस का इजाफा मानवीय गतिविधियों का नतीजा है। वर्ष 2024 रिकॉर्ड पर सबसे गर्म वर्ष था और यह पहला कैलेंडर वर्ष था जिसमें वैश्विक औसत तापमान 1850-1900 बेसलाइन से 1.5 डिग्री अधिक था। यह वह वक्त था जब जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल जैसी मानवीय गतिविधियों ने जलवायु पर बेहद अधिक असर डालना शुरू किया था।
ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 43 फीसदी से अधिक की कटौती का वक्त
बीते महीने ही विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने कहा था कि 70 फीसदी संभावना है कि 2025 और 2029 के बीच औसत वैश्विक तापमान पूर्व औद्योगिक स्तरों से 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक बढ़ जाएगा। जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र अंतर सरकारी पैनल ने 2022 में कहा, औद्योगिक क्रांति के बाद से तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस के भीतर रखने के लिए दुनिया को 2019 के स्तर की तुलना में 2030 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 43 फीसदी की कटौती करनी चाहिए।