उत्तराखंड : मसाले और फ्लेवर उत्पादों में स्वाद बढ़ाएगी प्रदेश की दालचीनी
उत्तराखंड की दालचीनी आने वाले समय में मसालों और फ्लेवर उत्पादों में स्वाद बढ़ाएगी। पहली बार राज्य में दालचीनी की व्यावसायिक खेती के लिए चंपावत और नैनीताल जिले में छह हजार हेक्टेयर में दालचीनी वैली विकसित की जा रही है। इसके लिए सगंध पौध केंद्र सेलाकुई ने दालचीनी के दो लाख पौध की नर्सरी तैयार की है। अगले साल मानसून सीजन में किसानों को मुफ्त में पौधे उपलब्ध कराए जाएंगे।
किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए प्रदेश सरकार का सगंध पौध (एरोमा) की खेती को बढ़ावा देने पर फोकस है। खास बात यह है कि सगंध पौधों की खेती को जंगली जानवर व बंदर नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। प्रदेश सरकार ने बाजार में दालचीनी की मांग को देखते हुए चंपावत और नैनीताल जिले में दालचीनी वैली के लिए छह हजार हेक्टेयर भूमि चिह्नित की है।
दालचीनी पर किया सगंध पौध केंद्र शोध
अभी तक बाजार में चीन से केसिया व श्रीलंका का दालचीनी बिक रहा है। पहली बार उत्तराखंड में प्राकृतिक रूप से पाई जाने वाली दालचीनी पर सगंध पौध केंद्र शोध किया। जिसमें पाया गया कि उत्तराखंड की दालचीनी चीन की केसिया और श्रीलंका की दालचीनी से अच्छी गुणवत्ता की है।
सगंध पौध केंद्र सेलाकुई परिसर में दालचीनी की नर्सरी तैयार की जा रही है। अगले साल मानसून सीजन में नर्सरी में तैयार पौधों को किसानों को मुफ्त में उपलब्ध कराया जाएगा। प्रदेश सरकार ने 25 हजार किसानों को दालचीनी की खेती से जोड़ने का लक्ष्य रखा है।
पत्ते व छाल का होता है इस्तेमाल
दालचीनी के पत्ते व छाल का इस्तेमाल मसालों के साथ ही फ्लेवर युक्त उत्पादों में किया जा रहा है। इसके अलावा मधुमेह और अन्य दवाइयों में इसका प्रयोग किया जाता है। बाजार में दालचीनी के पत्ते 40 से 50 रुपये प्रति किलो और छाल के 300 से 350 रुपये प्रति किलो के दाम मिलते हैं। पौध लगाने के चार से पांच साल के भीतर पत्ते व छाल का उत्पादन शुरू हो जाता है।
उत्तराखंड में पाई जाने वाली दालचीनी में गुणवत्ता में ज्यादा अच्छी है। पहली बार राज्य में दालचीनी की व्यावसायिक खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसकी शुरुआत चंपावत व नैनीताल जिले की जा रही है। -नृपेंद्र सिंह चौहान, निदेशक सगंध पौध केंद्र